मोटे अनाज की अंतरराष्ट्रीय पहचान भारत के नाम

मोटे अनाज की अंतरराष्ट्रीय पहचान भारत के नाम
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डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

हरित क्रांति समय की मांग थी और आज भी है। पर अब समूची दुनिया में रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले दुष्परिणामों और नित नई बीमारियों से त्रस्त होने के कारण विकल्प तलाशा जाने लगा है और मोटे अनाज को दुनिया के देश बेहतर विकल्प और आशा के रूप में देख रहे हैं। मोटा अनाज यानि श्रीअन्न आज दुनिया की पसंद बनता जा रहा है। दूरगामी सोच का ही परिणाम है कि आज समूची दुनिया 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट ईयर के रूप में मना रही है। मोटे अनाज के महत्व और पोषकता को देखते हुए ही इसे श्रीअन्न कहकर पुकारा गया। देखा जाए तो जब 2018 में भारत ने मोटे अनाज को पोषक अनाज घोषित करने के लिए विश्वव्यापी अभियान चलाया तब पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे कि संयुक्त राष्ट्र संघ मोटे अनाज के महत्व को समझते हुए 2023 को इंटरनेशनल मिलेट ईयर घोषित कर देगा। यह भी लगभग असंभव लगता था कि दुनिया के देश इतनी जल्दी मोटे अनाज के प्रति जागरूक होंगे। दरअसल हमारे खान-पान के चलते लोग एक के बाद एक बीमारियों से दो-चार होने लगे हैं, ऐसे में मोटा अनाज एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है। पर जिस तरह से अभियान चलाकर मोटे अनाज को प्रमोट किया गया है उससे देश-विदेश में मोटे अनाज का गुणगान होने लगा है।

दरअसल गई शताब्दी के छठें-सातवें दशक तक हमारे यहां खासतौर से गांवों का मुख्य भोजन मोटा अनाज ही रहा है। 1960 के दशक में खाद्यान्न संकट के विकल्प के रूप में हरित क्रांति का दौर आरंभ हुआ और ऐसे में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाना पहली प्राथमिकता बनी और इसके लिए गेहूं को प्रमुख विकल्प माना गया। इसके बाद एक ओर गेहूं के आयात, गेहूं के उत्पादन बढ़ाने और उत्पादन बढ़ाने के नाम पर रासायनिक उर्वरकों का दौर शुरू हुआ। रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रचार तंत्र को एग्रेसिव किया गया और आज हमारे कृषि वैज्ञानिकों, नीति नियंताओं और अन्नदाता की मेहनत से देश खाद्यान्न को लेकर आत्मनिर्भर बन गया है।

हमारे देश से बीते साल 2.69 करोड़ डॉलर का मोटा अनाज अमेरिका को निर्यात किया गया है। मोटे रूप से 13 प्रकार के अनाज को मोटे अनाज के रूप में माना जाता है। इनमें से प्रमुख रूप से 8 अनाजों- बाजरा, रागी, कुटकी, संवा, ज्वार, कंगनी, चेना और कोंदों को माना जाता है। कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के वर्ष 2023-24 के पहले अनुमान के अनुसार खरीफ पोषक मोटे अनाजों का उत्पादन 351.37 लाख टन अनुमानित है जोकि 350.91 लाख टन औसत मोटे अनाजों की तुलना में थोड़ा-सा अधिक है। वर्ष 2023-24 के दौरान श्री अन्न का उत्पादन 126.55 लाख मीट्रिक टन अनुमानित है।

मोटे अनाज को प्रमोट करने के विश्वव्यापी प्रयास आरंभ हो गए हैं। युवा एंटरप्रोन्योर स्टार्टअप्स के माध्यम से आगे आ रहे हैं। लोगों को मिलेट रेसिपी भाने भी लगी है। लोग इनके महत्व को समझने लगे हैं। मोटा अनाज खासतौर से बाजरा खरीफ की प्रमुख फसल है। अब आसानी से समझा जा सकता है कि खरीफ की फसल पक कर तैयार हो जाती है तो उस समय तक सर्दी का मौसम आरंभ हो जाता है। सर्दी में बाजरा कितना स्वास्थ्यवर्धक होता है इसको बताने की आवश्यकता नहीं है तो गरमी में बाजरे की राबड़ी की अपनी पहचान है। समय का बदलाव देखिए कि गांव-गरीब का भोजन आज पंच सितारा होटलों में लक्जरी व्यंजन बन चुका है। शादियों में बाजरे की खिचड़ी या छाछ-राबड़ी प्रमुखता से परोसी जाने लगी है तो इसका मतलब भी समझना होगा।

देश में कृषि क्षेत्र में निरंतर सुधार हो रहे हैं। कृषि बजट में साल दर साल उल्लेखनीय बढ़ोतरी की जा रही है। अब कृषि वैज्ञानिकों के सामने नई चुनौती मोटे अनाज की उन्नत व गुणवत्तापूर्ण किस्में विकसित करने की है जिसे सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है, इस क्षेत्र में शोध और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा रहा है और किसानों को मोटे अनाज के उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक प्रेरित करने के समन्वित प्रयास किए जा रहे हैं। आज दुनिया के देश मोटे अनाज को एक बार फिर से भविष्य का अनाज देख रहे हैं तो फिर देश दुनिया में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ाने के समन्वित प्रयास किये जा रहे हैं।

(लेखक स्तंभकार हैं)

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