क्या सामाजिक न्याय का एक ही आधार जातिगत गणना?

क्या सामाजिक न्याय का एक ही आधार जातिगत गणना?
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विदेशी अखबारों के झरोखे से: डॉ. सुब्रतो गुहा

आतंकियों पर बरसता प्यार: संयुक्त राष्ट्रसंघ साधारण सभा ने एक सौ बीस बनाम चौदह के बहुमत से एक प्रस्ताव पारित कर दिया, जिसमें इजराइल को गाजा पट्टी में युद्ध और हिंसा तुरंत बंद कर युद्ध विराम लागू करने को कहा गया है, परन्तु सात अक्टूबर को इजराइल पर हमला कर एक हजार चार सौ निर्दोष इजराइली नर-नारी एवं शिशुओं की निर्मम हत्या करने वाले इस्लामी जिहादी आतंकी संगठन हमास के विरुद्ध निंदा का एक शब्द भी नहीं है और हमास द्वारा अगवा किए गए दो सौ उन्नीस इजराइली बंधकों को हमास द्वारा छोड़े जाने का भी इस प्रस्ताव में कोई उल्लेख नहीं है। संयुक्त राष्ट्रसंघ साधारण सभा द्वारा पारित इस घोर पक्षपातपूर्ण प्रस्ताव के बाद आक्रोशित होकर संयुक्त राष्ट्रसंघ में इजराइल के स्थाई प्रतिनिधि गिलाड एरडान ने कहा - संयुक्त राष्ट्रसंघ साधारण सभा के इस प्रस्ताव का लक्ष्य यही है कि इजराइल हमास आतंकियों से अपनी सुरक्षा करना बंद कर दे, ताकि हमास आतंकी इजराइल व इजराइलियों को जलाकर समाप्त कर दे। उधर इजराइली विदेश मंत्री एली कोहने ने बयान जारी किया- इजराइल संयुक्त राष्ट्रसंघ साधारण सभा के इस पारित प्रस्ताव को पूरी तरह अस्वीकार एवं खारिज करता है तथा हमास के समूल विनाश होने तक युद्ध चलेगा।

- द यरुशलम पोस्ट, इजराइल

(टिप्पणी- संयुक्त राष्ट्रसंघ साधारण सभा द्वारा पारित प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं होते, केवल संयुक्त राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव ही बाध्यकारी होते हैं, परन्तु सुरक्षा परिषद के तीन स्थाई सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन एवं फ्रांस सुरक्षा परिषद् में इजराइल के विरुद्ध पारित प्रस्तावों को अपने वीटो शक्ति का उपयोग कर निरंतर निष्प्रभावी करते रहे हैं। विचित्र किन्तु सत्य यही है कि दुनिया के अधिकांश देशों एवं संगठनों ने इस्लामी देशों तथा इस्लाम धर्म के अनुयायियों को एक अति शक्तिशाली कार्ड जारी किया है, जिसे विक्टिम कार्ड कहते हैं, जिसके अनुसार विश्व में कहीं भी कभी भी मुस्लिम और गैर मुस्लिमों के बीच युद्ध या संघर्ष की स्थिति में मुस्लिम ही हमेशा निर्दोष एवं पीड़ित पक्ष मान्य किया जाएगा, फिर वह मुस्लिम भले ही जिहादी आतंकी ही क्यों न हो। अब अपने दम पर जिहादी आतंक से आरपार की लड़ाई की इजराइली प्रतिबद्धता निश्चित ही सभ्य समाज के लिए प्रेरणादायी है।)

याद आया प्रदूषण

भारत की राजधानी नई दिल्ली फिर से भयावह वायु प्रदूषण की चपेट में है। दिल्ली के निवासी इस प्रदूषण का अनुभव अपनी सांसों और आंखों से कर पा रहे हैं। मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति अत्यधिक गंभीर हो जाएगी। उधर दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के मंत्री गोपाल राय ने दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति का हवाला देते हुए मीडिया से कहा कि प्रदूषण नियंत्रण हेतु कठोर कमद उठाए जाएंगे।

- इन्डीपेन्डेन्ट, लंदन, ब्रिटेन

(टिप्पणी- वैज्ञानिकों तथा मौसम विशेष ने परीक्षणों के उपरांत इस तथ्य को प्रमाणित किया है कि दिल्ली में शीतकालीन वायु प्रदूषण और कोहरे का सबसे बड़ा कारण है रबी की शीतकालीन फसल के बाद हरियाणा और मुख्य रूप से पंजाब के किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर पराली जलाना। इसलिए मार्च 2022 में पंजाब राज्य के विधानसभा चुनाव के समय आम आदमी पार्टी अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल ने घोषणा की थी कि पंजाब में उनकी पार्टी की सरकार बनने पर पंजाब के किसानों द्वारा पराली जलाकर दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ाने की समस्या का समाधान कर देंगे। दस मार्च 2022 को पंजाब विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत से आम आदमी पार्टी सरकार बनने के बाद पंजाब के किसानों को नाराज नहीं करने के उद्देश्य से केजरीवाल ने पराली जलाने के प्रसंग का उल्लेख बंद कर दिल्ली में शीतकालीन वायु प्रदूषण के लिए दीपावली उत्सव के पटाखों को जिम्मेदार ठहरा दिया। जरा सोचिए, ऐसा क्यों होता है कि हमारे सेकुलर झंडाबरदारों को नवंबर में दीपावली से पूर्व वायु प्रदूषण सितंबर में गणपति मूर्ति विसर्जन, अक्टूबर में दुर्गा मूर्ति विसर्जन तथा मार्च में होली के समय ही जल प्रदूषण की चिंता क्यों अचानक सताने लगती है? इनकी नजर में इस्लामी उत्सव शबे बारात में पूरी रात आतिशबाजी और पटाखे चलने पर वायु प्रदूषण नहीं होता, नदियों और तालाबों में मोहर्रम के ताजिए ठंडे करने पर जल प्रदूषण तो होता ही नहीं है। नजरिया विचित्र विचारक विचित्र।)

हिन्दू समाज विघटन के सामाजिक न्याय

भारत में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी सरकार के हिन्दुत्व एजेंडा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, क्योंकि विपक्षी दलों ने हिन्दू जातियों की जनगणना कर जातिगत आधार पर सुविधाएं निर्धारण का शक्तिशाली हथियार चला दिया है। प्रगतिशील राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जातिगत आधार पर ही सुविधाओं के आवंटन से सामाजिक न्याय सुनिश्चित होगा तथा हिन्दू धर्म एवं हिन्दू धर्मावलंबियों को एकत्रित स्वरूप में लाकर हिन्दुत्व राजनीति पर भी रोक लगेगी। इससे चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

- साउथ चायना मोर्निंग पोस्ट, हांगकांग

(टिप्पणी - भारत में अंतिम बार जातिगत जनगणना ब्रिटिश शासनकाल में सन 1931 में हुई थी तथा 1947 में मिली आजादी के बाद आजाद भारत में किसी भी पार्टी की सरकार ने जातिगत जनगणना नहीं की। क्या यह सभी सरकारें सामाजिक न्याय की विरोधी थी? अब अचानक 2023 में जातिगत जनगणना को सामाजिक न्याय का एकमात्र आधार कैसे और क्यों बताया जा रहा है? स्पष्ट है कि अलग-अलग जातिगत पहचान वाले हिन्दू भारत में अल्पसंख्यक हैं, जबकि जातिगत भावनाओं से ऊपर उठकर अपनी धार्मिक पहचान पर गर्व कर- 'गर्व से कहो हम हिन्दू हैÓ का उद्घोष करने वाला हिन्दू बहुसंख्यक है। एजेंडा स्पष्ट है अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यक और बहुसंख्यक को अल्पसंख्यक बनाना।)

(लेखक अंग्रेजी के सहायक प्राध्यापक हैं)

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