जाणता राजा छत्रपति शिवाजी महाराज

जाणता राजा छत्रपति शिवाजी महाराज
X
अरविंद जयतिलक

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ एक बार फिर ऐतिहासिक क्षण का गवाह बनने जा रही है। राजधानी स्थित जनेश्वर मिश्र पार्क में छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित महानाट्य 'जाणता राजाÓ का मंचन होने जा रहा है। रंगमंच सज चुका है और छत्रपति शिवाजी की शौर्य गाथा से दर्शक अभिभूत होंगे।

जाणता राजा एक बार दहाड़ते नजर आएंगे कि 'जो लोग बुरे से बुरे समय में भी अपने लक्ष्य की ओर लगातार काम करने के लिए दृढ़ संकल्पित होते हैं उनके लिए समय स्वयं बदल जाता है।Ó छत्रपति महाराज ने इसी विचार के दम पर अपने शौर्य, बुद्धिमता और निडरता से भारत राष्ट्र की अप्रतिम सेवा की। उन्होंने अन्याय के खिलाफ तनकर प्रतिरोध का प्रस्तावना रचा और उसे मूर्त रुप देकर अपनी प्रजा को संगठित किया। उनकी सोच थी कि 'स्वतंत्रता एक वरदान है जिसे पाने का अधिकारी हर कोई है।Ó वे अपने लोगों का हौसला बढ़ाते हुए कहते थे कि 'जब हौसले बुलंद हों तो पहाड़ भी एक मिट्टी का ढ़ेर लगता है।Ó ऐसे महानायक थे हमारे जाणता राजा छत्रपति शिवाजी महाराज। शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ। उनके पिता शाहजीराजे भोंसले एक शक्तिशाली सामंत राजा थे। उनकी माता जीजाबाई जाधवराव कुल में उत्पन असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी। 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वे छत्रपति बने। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर विद्या में अनेक नवाचार किए तथा छापामार युद्ध गोरिल्ल युद्धनीति की नई शैली विकसित की। उन्होंने प्राचीन हिंदू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को जीवंतता प्रदान की। मराठी और संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। रोहिदेश्वर का दुर्ग सबसे पहला दुर्ग था जिसपर शिवाजी महाराज ने सबसे पहले अधिकार जमाया। उसके बाद तोरणा, राजगढ़, चाकन, कोंडना सरीखे अनेक दुर्गों पर अपना परचम लहराया। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मुगलों की नाक में दम कर दिया।

शिवाजी महाराज के समय जो दौर था वह बाहरी आक्रमणकारियों का था। उन आक्रमणकारियों का मकसद भारतीयता के पोषित मूल्यों को उखाड़ फेंकना था। भारतीय पंथों-परंपराओं को तहस-नहस करना था। मठ-मंदिरों के अस्तित्व को मिटा डालना था। लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज तनिक भी विचलित नहीं हुए। वे अपनी सर्जनात्मक जिद् पर डटे रहे। उनका ध्येय एक महान मराठा साम्राज्य की नींव डालना भर नहीं था। बल्कि भारतीय जनमानस में व्याप्त हीन भावना खत्म कर उनमें विजेता का भाव पैदा करना था। उन्होंने अपने संकल्पों को आकार देकर हिंदू पद पादशाही की नींव डाली। उसी का परिणाम रहा कि 1761 में मुगलिया सल्तनत की सांसें थम गई और मराठा पताका फहर उठी। विचार करें तो छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू पद पादशाही भारत की भावी पीढ़ी के लिए सुशासन और सेवाभाव का चिरस्मरणीय प्रेरणास्रोत है। जिस जवाबदेही, पारदर्शिता, सहभागिता और नवाचार को आज हम आधुनिक भारत के सुशासन का परम लक्ष्य मानते हंै वह शिवाजी महाराज के सुशासन और सेवा भाव का बीज मंत्र रहा। हाशिए के लोगों को न्याय और अधिकार से सुसज्जित करने का कवच रहा। समाज के बेसहारा और जरुरतमंद लोगों की सेवा का सतत प्रवाह रहा। आज की तारीख में वे संस्थाएं और संगठन बधाई के पात्र हैं जो जाणता राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्श मूल्यों और विचारों से प्रेरित होकर मानवता की सेवा का व्रत और बीड़ा उठाए हैं। वे लोग विशेष बधाई के पात्र हैं जो छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन और संघर्ष को नाटक मंचन कर राष्ट्र की भावी पीढ़ी में चेतना और देशभक्ति का प्रसार कर रहे हैं। गौर करें तो भारत का सनातन और चिरंतन मूल्य सेवा धर्म है। हमारे सभी शास्त्र, पुराण, उपनिषद्, महाकाव्य और स्मृति ग्रंथ मानवता की नि:स्वार्थ सेवा पर बल देते हैं। सेवाभाव हमारे लिए आत्मसंतोष भर नहीं है। बल्कि लोगों के बीच अच्छाई के संदेश को स्वत: उजागर करते हुए समाज को नई दिशा और दशा देने का काम करता है। सेवा भाव के जरिए समाज में व्याप्त कुरीतियों और विद्रूपताओं को समाप्त किया जा सकता है।

छत्रपति शिवाजी महाराज अक्सर कहते थे कि हम सेवा भाव का यह कार्य छोटे-छोटे प्रयासों से कर सकते हैं। आज हम इन प्रयासों के जरिए जाणता राजा छत्रपति शिवाजी महाराज के सपने को पूरा कर सकते हंै।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Next Story