त्रेतायुग में कान्हा की हो गई थी बांसुरी
भगवान श्रीकृष्ण के धारण किए गए प्रतीकों में बांसुरी हमेशा से जिज्ञासा का केंद्र रही है। हालांकि सर्वाधिक लोग भगवान की बांसुरी से जुड़े हुए रहस्यों और तथ्यों को नहीं जानते हैं। सच्चाई यह है, भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी में जीवन का सार जुड़ा है। बांसुरी में कोई गांठ नहीं होती है। वह खोखली होती है। इसका अर्थ यह है, आप अपने अन्दर किसी प्रकार की गांठ मत रखिए। चाहे कोई आपके साथ कैसा ही व्यवहार करे, लेकिन आप बदले की भावना मत रखिए। बांसुरी का दूसरा गुण यह है, बांसुरी बिना बजाए बजती नहीं है यानी जब तक ना कहा जाए, तब तक मत बोलिए। आपके बोल अनमोल हैं। बांसुरी की एक और ख़ासियत है, बांसुरी जब भी बजती है तो मधुर ही बजती है। इसका अभिप्राय: यह है, जब भी बोलिए मीठा बोलिए।
श्रीकृष्ण की बांसुरी में पूर्वजन्म की कहानी का रहस्य भी छिपा है। एक बार कान्हा यमुना किनारे बांसुरी बजा रहे थे। मुरली की मधुर तान सुनकर उनके आसपास गोपियां आ गईं और उन्हें बातों में लगाकर श्रीकृष्ण की प्रियतम बांसुरी को अपने पास रख लिया। गोपियों ने बांसुरी से पूछा, आखिर पिछले जन्म में आपने कौन-सा पुण्य कार्य किया था कि आप केशव के गुलाब पंखुरी सरीखे होठों पर स्पर्श करती रहती हो? बांसुरी ने मुस्कराकर जवाब दिया, श्रीकृष्ण के समीप आने लिए मैंने जन्मों इंतजार किया है। बात त्रेतायुग की है, भगवान श्रीराम वनवास कर रहे थे। उसी दौरान मेरी उनसे भेंट हुई थी। श्रीराम के आसपास बहुत से मनमोहक पुष्प और फल थे, लेकिन उनकी तुलना में मुझमें कोई गुण नहीं था। बावजूद इसके भगवन ने मुझे दीगर पौधों की मानिंद महत्व दिया। कोमल चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अनुभव होता। उन्होंने मेरी कठोरता की कोई परवाह नहीं की। सच बताऊं, उनके हृदय में मेरे प्रति अथाह प्रेम था, क्योंकि जीवन में पहली बार किसी ने मुझे इतने प्रेम से स्वीकारा था। इसी के चलते मैंने आजीवन उनके साथ रहने की कामना की, परन्तु उस काल में श्रीराम मर्यादा में बंधे थे, इसीलिए उन्होंने द्वापरयुग में अपने साथ रहने का वचन दिया। नतीजतन श्रीकृष्ण ने अपना वचन निभाते हुए मुझे अपने समीप ही रखा। बांसुरी की पुनर्जन्म की कहानी सुनकर सभी गोपियां भाव विभोर हो गईं। भागवत पुराण में श्रीकृष्ण के प्रतीकों और बांसुरी से जुड़ी ऐसी ही कहानियाँ सुनने और पढ़ने को मिलती हैं।
ढोल, मर्दन, झांझ, मंजीरा, नगाड़ा, पखावच और एक तारा में सबसे प्रिय बांस निर्मित बांसुरी श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है। इसे वंसी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहते हैं। बांसुरी से निकलने वाला स्वर मन-मस्तिष्क को सुकून देता है। मान्यता है, जिस घर में बांसुरी रहती है, वहां के लोगों में परस्पर प्रेम तो बना ही रहता है, साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है। बांसुरी के संबंध में एक और मान्यता है, जब बांसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है तो बुरी आत्माएं दूर भाग जाती है। जब इसे बजाया जाता है तो घरों में शुभ चुम्बकीय प्रवाह का प्रवेश होता है। ऐसा भी कहा जाता है, द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो सभी देवी-देवता उनसे मिलने आए। भगवान शिव के मन में भी श्रीकृष्ण से मिलने की लालसा हुई। जब वह बाल कृष्ण से मिलने लिए पृथ्वी पर आने लगे तो उन्हें ध्यान आया, संग में उपहार भी लेकर जाना चाहिए लेकिन उपहार ऐसा अनुपम हो, जिसे केशवमूर्ति हमेशा अपने साथ रखें। भगवान शिव को याद आया कि ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी उनके पास है। भगवान शिव ने उस हड्डी को घिसकर एक बेहद ही सुंदर, आकर्षक, मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। वह बांसुरी लेकर बाल कृष्ण से मिलने गोकुल जा पहुंचे। भगवान शिव ने श्रीकृष्ण को बांसुरी उपहार स्वरूप दी और उन्हें अपना आशीर्वाद दिया। कहते हैं, भगवान उसी बांसुरी को अपने पास रखते थे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)