चीन की साजिशें वक्त से पहले समझें हम
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का ऑस्ट्रेलिया से प्रेस वार्ता में दिया गया बयान कि भारत व मध्यपूर्व को जोड़ने वाला रेल रोड बंदरगाहों का आर्थिक कॉरीडोर हमास के आक्रमण का एक कारण हो सकता है, अतिगंभीर आशंकाओं को व्यक्त कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति लालबुझक्कड़ नहीं हैं। उनके पास यह कहने के पर्याप्त कारण होंगे। इस आइमेक कॉरीडोर के अस्तित्व में आने पर व्यापार व परिवहन का समय व व्यय आधा रह जाएगा। इससे पता चलता है कि चीन अपने यूरोपीय व मध्यपूर्व के रोड व बेल्ट की सफलता के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है। भारत के लिए यह चेतावनी की घंटी है तो हमास एक मोहरे का रोल निभा रहा है। गिरफ्त में आये जेहादियों ने बताया है कि उन्हें यहूदियों की हत्याओं व अपहरण के स्पष्ट आदेश थे। अब जब इजराइली प्रतिक्रिया में गाजा में मौतें हो रही हैं तो यूरोप अमेरिका तक में हर जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। अरब देश फिलिस्तीन के साथ एकजुटता का एहसास तो दे रहे हैं लेकिन शरण देने को कोई तैयार नहीं। अमेरिका द्वारा बड़े प्रयास से कराया जा रहा अरब इजराइली अब्राहम समझौता अब एक झटके में रद्दी कागज भर रह गया है। आतंकवाद जिन घोर घृणाओं पर पलता है उसके अभियान में हमास को महारत हासिल है। 26/11 मुंबई में हमारी सरकार की असहायता पूरे विश्व ने देखी थी। बहरहाल वे दिन तो चले गये। आज देश जवाबी आक्रमण में सक्षम हो चुका है।
जो चीन अपने एक प्रोजेक्ट के लिए मध्यपूर्व को भीषण युद्ध में धकेल सकता है वह भारत के इस चुनावी वर्ष में विभाजनकारी शक्तियों के साथ मिल कर क्या कुछ कर सकता है, यह चिंताजनक है। हमारी समस्या विभाजनकारी व आतंकी एजेंडे के राजनैतिक संरक्षण की है, यह देश के सभी बाह्य व आंतरिक शत्रु बखूबी जानते हैं।
उधर गाजा पर जमीनी आक्रमण कभी भी हो सकता है। सुरंगों में बैठे हमास के लड़ाकों को इजराइलियों का इंतजार है। फिलहाल एक लम्बे नगर-युद्ध की पटकथा लिखी जा चुकी है। यही गाजापट्टी इजराइल के प्रधानमंत्री एरियल शैरोन ने वर्ष 2005 में आपसी सौहार्द का वातावरण बनाने के लिए पीएलओ के सदर यासिर अराफात को हस्तगत कर दिया था। एक वर्ष बाद ही हुए चुनावों में जब कट्टरपंथी हमास को सत्ता मिली तो हमास एक ऐसा जिन्न बन गया जिसे गाजापट्टी नाम का एक देश भी मिल गया था। यह भी है कि वहां रहने वाले 23 लाख फिलिस्तीनियों में से मात्र 31 प्रतिशत ही आज हमास समर्थक रह गये हैं, शेष बेआवाज फिलिस्तीनी हमास के बंधुआ भर हैं।
यहां कांग्रेस पार्टी ने तो प्रस्ताव परित कर फिलिस्तीन के पक्ष में अपना समर्थन घोषित कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदीजी ने हमास की आतंकी हिंसा की आलोचना करते हुए कहा है कि देश इस संकट के समय इजरायल के साथ है। साथ ही हमारे विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत किसी प्रकार के आतंकवाद के विरुद्ध व दो राज्यों के फार्मूले का समर्थक है।
साम्प्रदायिक विभाजन में सनातन धर्म को लक्ष्य बनाने वाले हिंदू विरोधी दल अपने एलायंस के साथ हमास के साथ खड़े हैं। चुनाव आ रहे हैं, बिहार की जातीय जनगणना, हिंदू समाज के जातीय विभाजन का बीजारोपण करने के साथ अल्पसंख्यक समाज को सबसे बड़े समूह के रूप में घोषित कर चुकी है। अवैध रूप से बड़ी संख्या में आकर बसे हुए बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं की संख्या कितनी है, इस पर यह जातीय जनगणना मौन है। जनता एवं सरकार को विकास की योजनाओं की दृष्टि क्या यह जानना आवश्यक नहीं है कि आखिर कितने अवैध आप्रवासी, बिहार की अल्पसंख्यक आबादी में शामिल है ? दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों में इन अवैध बांग्लादेशियों रोहिंग्याओं की बड़ी भूमिका थी। वामपंथी विचारतंत्र पूरी तरह से जेहादी सोच के साथ खड़ा है।
पीएफआई जैसे प्रतिबंधित संगठन का 2047 तक भारत के इस्लामीकरण का जेहादी लक्ष्य हमास के एजेंडे से भिन्न तो नहीं हैं।वामपंथियों के लिबरेटेड स्वायत्त क्षेत्र के विचार के अनुकूल बहुत से मजहबी वर्चस्व के क्षेत्र बन रहे हैं। सत्ता की राजनीति साध रहे भारत के नेतागण इन सब से निर्विकार अपने जातीय साम्प्रदायिक एजेंडे में व्यस्त हैं।
विश्व में रोहिंग्याओं की कुल आबादी में से मात्र 6 लाख अब म्यांमार में रह गये हैं। कुछ बांग्लादेश में हैं व शेष के लिए एकमात्र शरणदाता भारत ही मिला। तत्कालीन राज्य सरकार के षड़्यंत्र से वे जम्मू तक फैलते गये थे। बाकी रोहिंग्या भारतीय जनसमुद्र में कहां गये, कोई पता नहीं। भारत की सीमाओं में बसे करोड़ों अवैध बांग्लादेशी नानस्टेट एक्टर कभी भी जेहादी संगठनों के काम आ सकते हैं।
देश में लगभग 60 जनपद ऐसे हैं जो आबादी के अनुपात के अनुसार साम्प्रदायिक रूप से अतिसंवेदनशील हैं। इनमें बहुत से सीमाओं पर स्थित हैं जहां आबादी का तेजी से बदलता हुआ अनुपात गाजा जैसी पट्टी का स्वरूप बना रहा है! नेपाल सीमापट्टी साम्प्रदायिक अभयारण्य बन जाएगी। आईएसआईएस व अलकायदा के भारतीय माड्यूलों की तरह हमास की भी कोई भारतीय शाखा अस्तित्व में आ जाए तो आश्चर्य न होगा। भारत विरोधी पाकिस्तान को तुर्किए का साथ मिल गया है।
अब आवश्यकता एनआरसी/सीएए की व्यवस्था के अनुसार अवैध आप्रवासियों को चिन्हित करने की है। जनपदों के स्तर से जनगणना का रिकार्ड/रजिस्टर बनाने का अभियान शीघ्रतिशीघ्र प्रारंभ किया जाना अब समय की मांग है। प्रत्येक ग्राम, तहसील, नगर, मेट्रो नगर व प्रदेश को जानना चाहिए कि कितने अवैध आप्रवासी हमारी सीमाओं में आ चुके हैं। इन्हें अवैध आप्रवासी कार्ड निर्गत कर पहचान तो हो जानी चाहिए। जहां भी इन्होंने फर्जी राशन, आधार व वोटर कार्ड बनवा लिए हैं, उसे निरस्त करने से कोई आसमान न टूट पड़ेगा। महत्वपूर्ण यह है कि जनसांख्यिकी में स्थायी बदलाव के फलस्वरूप हमें अन्य राज्यों में, कश्मीर पलायन जैसी स्थितियों का सामना न करना पड़े, इसके लिए केंद्रीय सरकार के दायित्व के संवैधानिक क्षेत्र में विस्तार आवश्यक है। हम अनुच्छेद 356 की कितनी भी आलोचना करें लेकिन राष्ट्रद्रोही राजनीति को नियंत्रित करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। चीन पाकिस्तान जैसी विदेशी शक्तियां मजहबी व वामपंथी सोच के साथ हैं। यदि हम इन जातीय क्षेत्रीय विभाजनकारी तत्वों व अवैध आप्रवासियों के विषय पर नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी।
(लेखक पूर्व सैनिक पूर्व आईएएस हैं)