ईश्वर भक्ति से जीवन बनता है सार्थक व सफल
ईश्वर-भक्ति सरल व साधारण नहीं। बहुत ही त्यागमय साधना है। इसमें व्यक्ति का मन नहीं लगता है। व्यक्ति का मन संसार में लगता है। भगवान में विरले व्यक्ति ही मन लगाते हैं। भगवान में मन लगाने हेतु संसार से मन हटाना पड़ता है। कामना, वासना, लोभ, मोह, माया का त्याग करके भगवान में प्रेम बढ़ाना चाहिए। जिसे संसार से प्रेम है, वे भक्त नहीं। ऐसे व्यक्ति भक्ति नहीं करते। भगवान की भक्ति वही करता है, जो भगवान से प्रेम करते हैं। जिसे भगवान से प्रेम है, वही भक्त है। भगवान की भक्ति करने हेतु जीवन को दाव पर लगाना पड़ता है। जिसे भगवान पर अटल विश्वास है, वही भगवान की भक्ति करता है और अंतत: भक्ति मार्ग पर टिका रहता है। भक्ति राजमार्ग है, जिस पर चलकर भगवत्-दर्शन का अलौकिक सुख मिलता है। जिसे भगवत् दर्शन का सुख प्राप्त होता है, वह संसार के किसी सुख के पीछे नहीं दौड़ता। इस सुख के समक्ष उसे सब तुच्छ लगता है। जो इसका एक बार रसास्वादन कर लेता है, वह कभी सांसारिक कामना, वासना में ध्यान कदापि नहीं भटकाता। भक्ति से मोक्ष मिलता है, भवसागर से पार होते हैं। भटकाव दूर होते हैं। जीवन के उदेश्य पूर्ण करने में भक्ति से बड़ा कार्य कुछ नहीं। भक्ति अमूल्य धन व अक्षय शाश्वत पूंजी है। जो जनम-जनम तक काम देती है। भक्ति त्याग व प्रेम से मिलती है। भक्ति में भगवान के प्रति श्रद्धा, विश्वास, समर्पण होना आवश्यक है। इसके बिना भक्ति की कल्पना व ईश्वर दर्शन का स्वप्न पूर्ण नहीं होता। ईश्वर भक्ति संसार में सर्वोपरि है। भगवान भक्त की भक्ति व उसके अंत:करण में वास करते हैं। यूं कहें तो भक्त इस संसार में भगवान का दूजा रूप है। भक्त की भक्ति की रक्षा हेतु प्रभु धरा पर बारंबार अवतरित हुए। इसी से भक्ति का राजमार्ग ईश्वर प्राप्ति का सर्वप्रमुख आधार है। भक्ति में बहुत शक्ति है। यह शक्ति संसार में कल्याण हेतु काम आती है। जीवन में कल्याण के समस्त मार्ग बंद दिखते हैं तो भक्ति के मार्ग से जीवन के उत्थान व सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त होता है। भक्ति जीवन का असली धर्म है। भक्त को भगवान पर भरोसा होता है। भक्त का अपना कोई नहीं, सिर्फ भगवान सहारा होते हैं। भक्ति के पुण्य से समस्त पाप-ताप, प्रारब्ध, कुसंस्कार, अज्ञान, अंधकार मिटकर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त होता है। भक्ति निर्भयता व अमरता प्रदान करती है। भक्ति से जीवन सार्थक व सफल बनता है। भक्ति करने वाले पुण्यात्मा व सौभाग्यशाली होते हैं। भक्ति का सुख अलौकिक, आनंद रसप्रदायक है। पाप, प्रारब्ध भक्ति में बाधक व बंधनकारक है। भक्ति से भक्त व भगवान दोनों प्रसन्न होते हैं। भक्ति से भक्त का उद्धार व बेड़ा पार होता है। पाप से भक्ति में मन नहीं लगता। भक्ति जीवन हेतु कल्याणकारी है। भक्ति शाश्वत पुण्य की पूंजी है, इसे न कोई छीन या चुरा सकता है। मानव जीवन सुख व आनंद हेतु मिला है। जो सुख, आनंद भक्ति में है, वह संसार में अन्यत्र कहीं नहीं। भक्ति की गंगा में जो डुबकी लगाता है, उसका जीवन धन्य बनता है।