'जय श्रीराम' का नारा और ममता बनर्जी की चिढ़

जय श्रीराम का नारा और ममता बनर्जी की चिढ़
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योगेश कुमार सोनी

हर वर्ष की तरह सुभाष चंद्र बोस की 125 जयंती को पूरे देश में धूमधाम मनाया गया। इसबार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में उपस्थित थे। कोलकाता स्थित विक्टोरिया मेमोरियल में पराक्रम दिवस समारोह का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा सुभाष चंद्र बोस के परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। सभी ने अपने-अपने भाव प्रकट देते हुए नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित की।

इस आयोजन में जब राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बोलने की बारी आई तो वहां उपस्थित लोग जोर-जोर से जय श्री राम के नारे लगाने लगे। जिसके बाद ममता बनर्जी ने मंच से कहा कि 'ये सरकार का कार्यक्रम है और इसकी गरिमा होनी चाहिए। इसपर किसी राजनीतिक रंग को न चढ़ाया जाए क्योंकि ये किसी राजनीतिक दल का कार्यक्रम नहीं है। मैं पीएम मोदी और सांस्कृतिक मंत्रालय की आभारी हूं लेकिन किसी को निमंत्रित करके उसे बेइज्जत करना आपको शोभा नहीं देता है।' इतना कहकर वह मंच से वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गईं जबकि उनका पांच मिनट तक भाषण का समय था।

ममता बनर्जी के इस व्यवहार से वहां उपस्थित लोग चकित रह गए। एकबार फिर उन्होंने यह तय कर दिया कि जय श्रीराम के नारे से वह बुरी तरह चिढ़ती हैं। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि उन्होंने इस तरह की प्रतिक्रिया दी है। कार्यक्रम के समापन के बाद ममता बनर्जी के इस रुख पर नेताजी के परपोते ने मीडिया से चर्चा में कहा कि 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमेशा एकता के लिए खड़े थे। आजाद हिंद फौज में सभी धर्म के लोग थे। चाहे आप जय हिंद कहें या फिर जय श्रीराम उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। जय श्रीराम कहना ऐसा नहीं है जिससे किसी को एलर्जी हो और वह इसपर प्रतिक्रिया दे।' इसके अलावा भी ममता बनर्जी को आड़े हाथों लेते हुए तमाम बातें कहीं।

ममता बनर्जी के रूप में पहला ऐसा नेता देखा गया है कि जिसकी कोई चिढ़ बन गई हो और वो भी भगवान के नाम पर। पहले भी ऐसा हो चुका एकबार तो मुख्यमंत्री चप्पल लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओं पर दौड़ती नजर आई थीं। वो दृश्य बेहद आश्चर्यचकित करने वाला था। हालांकि सोशल मीडिया पर यह हास्यप्रद घटना के रूप में छाया रहा। राजनीति करना या शक्ति प्रर्दशन करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन इस तरह का व्यवहार बेहद दुर्भाग्यपूर्ण माना जाएगा।

इस घटनाक्रम का विश्लेषण करें तो इस तरह की शैली से ममता बनर्जी के मन की कुंठा स्पष्ट हो जाती है कि वो हिंदुत्व को पसंद नहीं करती या फिर यह समझ में आता है कि बीजेपी के वर्चस्व व हिंदू छवि के आधार पर बीजेपी ने जिस तरह अपने पैर पसारे हैं, उसी वजह से वे इस नारे से नाखुश रहने लगी। बीजेपी की रैली, सभा व हर जगह यह नारा लगता है। जैसा बीते लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल में 42 में से रिकार्ड तोड़ जीत हासिल करते हुए 18 सीटों पर विजय प्राप्त की थी, वहीं राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। पश्चिम बंगाल में पहली बार बीजेपी ने इतनी सीटें हासिल की।

राजनीति हमेशा विचारों की लड़ाई रही है। नेता मंच से एक-दूसरे की पार्टी को नीचा दिखाने का प्रयास करते आए हैं लेकिन उन्होंने लड़ाई को पर्सनल नहीं लिया। बीते दशक में राजनीति का स्तर बहुत गिरा है व शब्दों की मर्यादा का किसी को ख्याल नहीं रहा। आरोप-प्रत्यारोप के चक्कर में मुद्दा हर बार भटकता रहा। ज्यादातर एक-दूसरे के निजी जीवन पर वार किया जाने लगा।

बहरहाल, यह लोकतंत्र है। ममता दीदी हर छोटी से छोटी घटना को दिल पर ले जाती हैं। हर बात पर अपना वजूद अड़ाने का प्रयास करती हैं जो मुख्यमंत्री पद की गंभीरता पर सवालिया निशान खड़ा करता है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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