भाजपा के सामने जनादेश की चुनौती
चार राज्यों के चुनाव नतीजों से औरों की तरह मैं भी हतप्रभ हूँ। चुनावों में सफलता, असफलता से ज्यादा डरावनी है। असफलता हमें अतीत के चिन्तन की ओर मोड़ती है। असफलता में सोचने के लिए कुछ ज्यादा नहीं होता, सामने वाले पर दो-चार आरोप ही तो लगाने हैं, ईवीएम पर दोष मढ़ना है, आत्मनिरीक्षण की खानापूर्ति करना है। जबकि सफलता हमें भविष्योन्मुखी बनाती है। सफलता में लोगों की आकांक्षाओं और आश्वासनों पर खरे उतरने का दबाव होता है।
जीवन में चयन का आधार हमारी रुचि, आकांक्षा और स्वार्थ होता है। रुचि हमारी मनोवृत्ति एवं मनोभाव है जो संसार से हमें जोड़ने या विमुख होने में सहायक है। यह हमारा स्वभाव है जिसमें हम सूक्ष्मरूप में विद्यमान रहते हैं। आकांक्षा, हमारी इच्छा है जिसे हम संसार के लिए चाहते हैं। जबकि स्वार्थ, वह भाव है जो हम सिर्फ स्वयं के लिए चाहते हैं। इस तरह स्वार्थ वैयक्तिक है जबकि आकांक्षा समष्टिगत होती है। मनुष्य यूँ तो मूलत: स्वार्थी होता है किन्तु इसके साथ ही वह यथासम्भव समष्टि का विचार भी कहीं न कहीं रखता है। यही उसका स्वभाव है। यही गणित लोकतंत्र में सत्ता सौंपने के लिए राजनीतिक दल के प्रत्याशियों के चयन का आधार होता है।
हाल ही सम्पन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव में हर राजनीतिक दल ने मतदाताओं को व्यक्तिगत स्तर पर लुभाने के लिए अपनी तरफ से कोई भी कोर-कसर नहीं छोड़ी। बिना संसाधनों की उपलब्धता का विचार किए, मतदाता को वे जितना ललचा सकते थे, उन्होंने ललचाया। इसके लिए उन्होंने हिन्दू समाज के विघटन के लिए जातिवादी कार्ड, मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे सर्वथा त्याज्य व घृणित, देश को धर्म व जाति में बांटने वाले आश्वासनों से बचने का भी प्रयास नहीं किया। फिर क्या कारण रहा कि उत्तर भारत के मतदाताओं ने भाजपा के संतुलित लुभावने आश्वासनों पर विश्वास करते हुए वरीयता दी? म.प्र. में विगत बीस वर्षों से सत्ता में होने पर स्वाभाविक एन्टी-इनकम्बेन्सी को एकदम परे घकेल दिया ? मुझे यह स्वीकारने में किंचित भी शंका नहीं है कि भ्रष्टाचार आज की राजनीति में कोई मुद्दा ही नहीं रह गया है। कोई भी राजनीतिक दल इससे अछूता नहीं है। मैं भ्रष्टाचार को सिर्फ पैसे के लेन-देन तक सीमित नहीं मानता। मेरी दृष्टि में किसी भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष लाभ के लिए कर्तव्य की उपेक्षा भ्रष्टाचार है। अपनी व्यापकता के साथ हर व्यक्ति से लेकर व्यवस्था के चारों स्तम्भ इससे भिन्न नहीं हैं।
जीवन में रुचि, आकांक्षा और स्वार्थ का विचार तभी तक महत्वपूर्ण व सुरक्षित है जब आपके अस्तित्व की सुरक्षा की गारंटी हो। अतीत में ज्यादा तवज्जो न दी गई घटनाओं ने आज सारे विश्व में आतंक, अराजकता, हिंसा का रूप ले लिया है। भविष्य में इसकी भयावहता का विचार ही भयभीत करने वाला है। याचक बनकर शरण पाने वाली मान्यता कब आपकी भक्षक बन जाये, यह विश्व देख, भुगत और अनुभव कर रहा है। सूचनाओं की सुलभता के युग में यह अब किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में एक जागरूक मतदाता अपने सुरक्षित अस्तित्व के साथ ही और इसके बाद ही अपनी रुचि, आकांक्षा और स्वार्थ के बारे में सोच सकता है।
मतदाता का भाजपा प्रत्याशियों को जिताने के पीछे नरेंद्र मोदी के शीर्ष नेतृत्व की प्रामाणिकता व विश्वसनीयता पर अगाध विश्वास का होना है। प्रामाणिकता का आधार उनका पिछला रिकार्ड, पक्षपातरहित निस्पृह आचरण, भ्रष्टाचार मुक्त जीवन, परिवारवाद रहित होना है। साथ ही उनका सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास में अटूट श्रद्धा, राष्ट्रप्रेम व राष्ट्रभक्ति, सकारात्मक-सृजनात्मक- विकासोन्मुखी दृष्टिकोण, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा, राष्ट्रीय सुरक्षा व संप्रभुता को सर्वोपरि मानना, आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना व सनातन मूल्यों की प्रतिष्ठा का विचार करना है। नि:सन्देह इसके मूल में कहीं न कहीं समाज में सनातन की सुरक्षा की अन्तर्प्रवाहित चिन्ता, विचार और चिन्तन है।
भाजपा की निर्वाचित सरकारों पर मतदाताओं की इन आधारभूत शंकाओं के विचार, चिन्तन और निराकरण के साथ स्वच्छ प्रशासन देने का गुरुतर दायित्व है। उनकी इस विजय में उनके नेतृत्व की प्रतिष्ठा अब दांव पर लगी है, जिसे उन्हें हर हाल में पूरा करना होगा। भारत को अभी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की महती आवश्यकता है।
(लेखक वरिष्ठ शिशुरोग विशेषज्ञ हैं)