मॉर्निंग वॉक, दोपहर को क्यों नहीं
प्रदीप औदिच्य
जिस किसी भी बंदे ने मॉर्निंग वॉक या सुबह की सैर का सबसे पहला फंडा दिया होगा। उस बन्दे को मैं प्रतिदिन सुबह-सुबह गरियाता हूं, ऐसी क्या पड़ी थी उसे कि इतनी सुबह घूमने जाने का। फिर उसे अच्छी सेहत से जोड़ने का फार्मूला ईजाद करे। थोड़ी देर से यानी ये काम 11 बजे 12 बजे भी तो हो सकता है। अब डॉक्टर भी सलाह देते हैं, सुबह घूमो। भाई, तुम अपनी दुकानदारी क्यों बिगाड़ रहे हो, तुम अपनी फीस से मतलब रखो। मैंने देखा है कि सुबह की सैर अपने आप में एक स्टेटस सिंबल बन गई। सुबह घूमने जाने का मुझ पर भी उसी तरह का दबाव रहता है जैसा पुलिस पर किसी जुआरी को छोड़ने का रहता है। आज बात साफ कर दूं कि मैं इसलिए नहीं जाता आलसियों को मैं नीचा नहीं दिखाना चाहता समाज में उनकी भी इज्जत है। खैर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है, ऐसे काम करने का जिससे समाज में मेरा स्टेटस बढ़े।
जो लोग घूमने जाते हैं उनकी बात सुन कर ऐसा लगता है कि सुबह के घूमने में सेहत बने न बने पर कई संबंध जरूर बन जाते हैं। इसलिए सुबह की सैर बनाई है। फिर मेरी भी समझ में आया कि सुबह की सैर की परंपरा किसी छोटे कर्मचारी ने अपने बड़े अफसर से संबंध बनाने की खातिर शुरू की होगी, हो सकता है साहब को नींद नहीं आने की बीमारी हो, वह रात में घूमते हों, फिर उनसे नजदीकी बढ़ाने के लिए उनके कर्मचारी ने उनके घर के चक्कर लगाने शुरू कर दिए हों।
इसके फायदे देखकर ठेकेदार भी उसी जगह पर घूमने जाने लगे जहां इंजिनियर जाते हों। व्यापारी इसलिए घूमने जाने लगे कि सेल टैक्स इंस्पेक्टर से रोज नमस्कार हो जाती है।
ये तो हुई सेहत से अलग जाकर सुबह की सैर की स्वस्थ परम्परा की शुरुआत हो सकने की संभावना।
एक बात मुझे ध्यान आती है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री निवास के बाहर कई लोग जानबूझ कर घूमने जाते हैं, क्योंकि उसी जगह पर कई अन्य मंत्री घूमने आते हैं। कई बार मुख्यमंत्री भी घूमते हैं। फिर दोपहर तक सोने वाले विधायक भी सुबह -सुबह घूमने जाने लगते हैं। ये साबित करने के लिए नहीं कि हम भी सेहत का ध्यान रखते है... ना जी। वह तो ये बताने के लिए कि आप हमारा भी ध्यान रखें।
मध्यप्रदेश में इस बार इतने दर्जा प्राप्त मंत्री हो गए कि श्यामला हिल्स पर कई लोगों ने इसलिए भी घूमना बन्द कर दिया कि ऐसा न हो कि हमको पकड़ के कोई दर्जा प्राप्त मंत्री बना दें।
एक लोग वह होते हैं जिन्हें सुबह -सुबह चार- पांच किस्से कहानी मिल जाती हैं। वह दिनभर में कई मर्तबा उसका जिक्र कर ही देते हैं... वह उस कहानी को यूं शुरू करते हंै, 'आज सुबह मैं घूमने गयाÓ इस कहानी में कोई दम ही न हो पर खुद के घूमने जाने की बात वह सुना देते है, यही उनका मकसद है। सुबह की सैर के फायदे से सेहत बनती है। ऐसे कहने वाले ही सबसे ज्यादा डॉक्टर के यहां बैठे मिलेंगे...ऐसा तर्क हम जैसे लोग दे देते हंै। जो घूमने नहीं जाते। मेरा मानना है कि सुबह-सुबह जो लोग घूमने जाते हैं, उनको नींद न आने की बीमारी होगी, वरना सुबह की मीठी नींद जो छोड़ दे वह काहे का मनुष्य। अपने को भरपूर नींद आती है। ये ईश्वर का वरदान है और अपन ईश्वर के वरदान की उपेक्षा नहीं कर सकते।
सुबह घूमने जाने वाले चेहरे पर अलग ही ग्लो रखते हैं, पर जो काम दस रूपये की फेयरनेस क्रीम कर देती है, उसके लिए सुबह की मीठी नींद का त्याग करना मुझे शास्त्रोक्त नहीं लगता।
सुबह घूमने जाने वाले को ये पता चल जाए कि आप ऐसा कोई काम नहीं करते तो वह आपको ऐसा समझेगा जैसे वह ब्रिटिश सरकार का अफसर हो और आप एक गुलाम भारत के गरीब नागरिक।
कुछ लोग सुबह घूमने को एक इवेंट बना लेते है। महंगे से दो तीन ट्रैक सूट, उसी कलर के स्पोर्ट शूज के साथ जब घर से निकलते है तब वह घूमने जाने के साथ एक वर्ल्ड लेबल के खिलाड़ी सा अहसास कराते हैं।
एक मेरे ना जाने का कारण ये भी है मेरे पास ट्रैक सूट नहीं है... और पजामा शर्ट के साथ घूमते हुए मैं पजामा की इज्जत बनाए रखना चाहता हूं। मैं किसी दिन दुनिया का शासक बना तो निश्चित मानिए ये सुबह की सैर को दोपहर बाद का कानून बनाऊंगा। ऐसा सोच कर मैंने कल सुबह चादर तान ली।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)