माँ दयामयी है, माँ पालनकर्ता है, माँ सर्वत्र है, माँ अनंत है

माँ दयामयी है, माँ पालनकर्ता है, माँ सर्वत्र है, माँ अनंत है
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अमित राव पवार

प्रकृति ने इस संसार को मानव जीवन के साथ-साथ जीव-जंतु,पशु-पक्षी इत्यादि को आनंद दिया है। ये प्रकृति ही तो है, जो बिना भेदभाव के सबको समान दृष्टि से देख रही तथा ध्यान रखती है। जैसे कि एक स्त्री माँ के रूप में अपने परिवार की सभी संतानों का नि:स्वार्थ भाव से ध्यान रखती है। इसलिए हिन्दू धर्म व सनातन परंपरा में प्रकृति को माँ अथवा आद्यशक्ति रूप में पूजा जाता है। जो भगवान शिव के साथ इस सुंदर संसार को शक्ति के रूप में गति देने में सहायता करती है। शिवशक्ति से ही यह संसार चलायमान है।

आदि शक्ति माँ त्रिदेव के प्रतीक शंख, कमल और त्रिशूल अपने अष्ट भुजाओं में विराजित कर शेर पर सवार होकर सिर्फ इसलिए निकलती है, जिससे अपनी संतानों को भयमुक्त किया जा सके। धर्म पर आघात करने वाली दुराचारी शक्तियों का वो विनाश करती है।

संतानों की रक्षा हेतु आज भी महिलाएं अपने बच्चों के लिए माँ रूप में सबसे सुरक्षित रक्षा कवच है जबकि हर रिश्ता इस आधुनिकता के दौर में तार-तार होता नजर आ रहा है। ऐसे में माँ ही है, जो दुर्गा बनकर अपने बच्चों की परवरिश, दुर्गा माँ के नौ दिनों, नौ रूपों के अनुसार आरंभ से आखिरी क्षण की सांस तक करते नजर आती हैं। ये नौ रूप हमको बहुत कुछ सीख देते हैं। पर हम अपने धर्म और संस्कृति को भौतिकवाद के महत्व के कारण वर्तमान परिदृश्य में नजरअंदाज करते दिखाई दे रहे है। माँ का अपने संतानों से संबध युगों-युगों से चला आ रहा है। इस रिश्ते को कोई भी परिभाषित नहीं कर पाया क्योंकि माँ करुणामयी है, माँ हितकारी है, मां निर्माणकर्ता है, माँ संहारकर्ता है, माँ कल्याण करता है, माँ क्षमामयी है, माँ रुद्र है, माँ कोमल है, माँ दयामयी है, माँ पालनकर्ता है, माँ सर्वत्र है, माँ अनंत है, यह रिश्ता अनंत है। इस रिश्ते की व्याख्या करने का सामर्थ्य शायद किसी में ना हो। इस संबंध की कोई सीमा नहीं है। भयभीत या मुश्किल घड़ी में बच्चा अपनी माँ के पास जाता ही है, वह माँ जगत जननी दुर्गा के पास, बहुत ही गहरा तथा अनंत काल से भी ऊपर कभी समाप्त न होने वाला यह रिश्ता, मां और अपनी संतानों के बीच का है। आधुनिकता के दौर में माँ ही है जो अपनी संतानों को अच्छे संस्कार देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। हमें नारी शक्ति को कम नही आंकना चाहिए हर क्षेत्र में उसने अपनी योग्यता का लोहा मनवाया है। ज्ञान-विज्ञान से लेकर धरती और आसमान तक आज अपने सामर्थ्य से सिद्ध कर दिया।

जन्मदायिनी जगत माँ के बिना यह संसार अधूरा है। नवरात्रि के ज्वारे भी हमको यही संदेश देते हैं कि, मिट्टी के पात्र में देवी माँ के सामने 'जौÓ के बीज से ज्वारे उगाते हैं। वे इन नौ दिनों में पौधे का आकार ले लेते हैं। यह प्रतीक है, हमारी सृष्टि के संचालन का माता (स्त्री) के गर्भ से उत्पन्न (बच्चा) जीवन जो इस चराचर संसार को गति देता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार गेहूं के दाने से फिर गेहूं उग जाते हैं। माता के ज्वारे इसका प्रमाण है। इस संसार को गतिमय रखने के लिए किस तरह से मिट्टी अथवा गर्भ, बीच अर्थात गर्भ में बच्चा और जन्म मतलब 'जौÓ का हरा होना, यही क्रिया निरंतर चलती रहती है। और इसी प्रक्रिया से संसार को माता चलाती है। इसलिए हिंदू धर्म में जन्म देने वाली स्त्री जो बच्चों का लालन, पालन-पोषण करती है। वे सब माँ रूप में कहलाती है। अत: हमने नदियों को भी माँ कहा है। जो हमारे जीवन की संपूर्णता का ध्यान रखती है। जैसे जगत जननी माँ अंबे इस संसार को अपनी शक्ति, ममता, स्नेह से संचालित कर रही है। इस संसार में फसल के रूप में सबसे पहले उत्पन्न हुई 'जौÓअर्थात गेहूं है। इसलिए अन्न को ब्रह्मा भी कहा जाता है। इसका उपयोग हवन- पूजन इत्यादि में अक्सर किया जाता है। जिस से वर्ष भर हमारे घरों में अन्न का भंडार बना रहे। गेहूं के रूप में माता ने इस संसार में मनुष्य की उत्पत्ति की अर्थात महिला के गर्भ के माध्यम से हम मनुष्य को जीवन दिया है।

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नवरात्रि का पर्व माता रानी की सवारी से तय होता है। अगर घटस्थापना अथवा नवरात्रि का प्रारंभ रविवार या सोमवार के दिन होता है, तो माता का वाहन हाथी होगा, मंगलवार या शनिवार से होता है, तो माँ दुर्गा का वाहन घोड़ा होगा, बुधवार से प्रारंभ होने पर देवी का वाहन नौका होगा, गुरुवार या शुक्रवार से नवरात्रि का आगमन होगा, तो माता रानी की सवारी डोली पर होती है। सवारी और प्रथम आगमन के दिन का अपना एक महत्व है। जिससे आने वाले वर्ष या समय की परिस्थितियों के बारे में शुभ-अशुभ संकेतों का पता चलता है। ठीक इसी तरह माता के प्रस्थान (घट विसर्जन) के दिन और सवारी से भी परिस्थितियों का आँकलन किया जाता है। जब हमारे पास कोई साधन नहीं थे। तब भी हमारे पूर्वजों द्वारा इसी प्रकार से वर्षभर के मौसम का पता लगाया जाता था। जैसे वर्तमान में होता है। क्योंकि माँ अनंत और प्रकृति में निहित है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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