यहां चलती है मां की सत्ता

यहां चलती है मां की सत्ता
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शिखर चंद जैन

आमतौर पर भारत सहित दुनिया भर में पितृसत्ता का ही बोलबाला है। लेकिन दुनिया में कुछ समाज आज भी मां को भी घर का मुखिया मानते हैं और यहां मां के नाम पर ही कुल या वंश की पहचान होती है। यहां संपत्ति भी पैतृक नहीं मातृक होती है। नवरात्र में जब हम मातृशक्ति की पूजा कर रहे हैं, तो इन जगहों के बारे में जानना दिलचस्प होगा-

मोसुओ: तिब्बत की सीमा के पास युन्नान और सिचुआन प्रांतों में रहने वाले मोसुओ समाज में मातृसत्ता की परंपरा है। यहां वंश वृक्ष की शुरूआत मां से होती है और संपत्ति पर पूर्ण अधिकार भी मां का ही होता है। मोसुओ समाज में व्यापारिक मामलों के निर्णय महिलाएं लेती हैं, जबकि पुरूष राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। बच्चे मां के घर में ही पलते बढ़ते हैं और मां के नाम से ही जाने जाते हैं। यहां विवाह नाम की कोई संस्था या परंपरा नहीं। महिलाएं अपनी मर्जी से किसी पुरूष के घर जाकर उसे अपना पार्टनर बना लेती हैं, लेकिन दंपत्ति के रूप में ये कभी साथ-साथ नहीं रहते हैं। बच्चों के पालन पोषण में पिता की भूमिका बहुत सीमित या फिर नहीं होती है। कई मामलों में तो पिता की पहचान तक नहीं होती।

मिनांग कबाऊ: इंडोनेशिया में पश्चिमी सुमात्रा में रहने वाला मिनांगकबाऊ समाज आज की तारीख में दुनिया का सबसे बड़ा मातृसत्तात्मक समाज है। इनकी संख्या चार मिलियन है। समाज के कानून के मुताबिक खानदानी संपत्ति का हस्तांतरण मां से बेटी को होता रहता है। कबीले के लोग मां को ही घर का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति मानते हैं। इस समाज में घरेलू मामलों में निर्णय लेने का पूरा अधिकार मां को होता है जबकि पुरूष राजनीति और अध्यात्म में अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। विवाह की रीत भी अनूठी है। पति-पत्नी के घर में रात को भले ही उसके साथ रहे लेकिन सुबह उठकर उसे अपनी मां के घर जाना पड़ता है। उसे वहीं जाकर नाश्ता वगैरा करना होता है। दस वर्ष की उम्र में बेटा मां का घर छोड़कर पिता के घर में रहने चला जाता है और वहां धार्मिक शिक्षा के साथ जीवन का व्यावहारिक कौशल सीखता है। यहां वंश प्रमुख भले ही पुरूष होता है लेकिन उसके चयन का अधिकार पूरी तरह महिलाओं को होता है। ये महिलाएं जब चाहे उसे उसके अधिकार से वंचित कर सकती हैं।

अकान : घाना में अकान कबीले के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। इस कबीले का पूरा सामाजिक तानाबाना महिलाओं के इर्दगिर्द ही घूमता ही किसी की पहचान, उत्तराधिकार, संपत्ति आदि सब माता से ही मिलती है। सम्पूर्ण अधिकार मातृशक्ति को ही मिले हुए हैं। कहने को पुरूष समाज में अगुवा माने जाते हैं लेकिन असली पावर उनकी मां और बहनों को ही मिले हुए हैं। पुरूषों से न सिर्फ उनके परिवार बल्कि अपनी महिला रिश्तेदारों से जुड़े सभी लोगों की मदद की उम्मीद की जाती है।

ब्रीब्री : कोस्टारिका के लिमोन प्रांत में एक कबीला है ब्रीब्री। 13000 से ज्यादा जनसंख्या वाले इस कबीले में तमाम छोटे-छोटे खानदान या वंश हैं। इन सभी में मातृसत्ता की परंपरा युगों से चली आ रही है। यहां भी सबकी पहचान मां के नाम से है। यहां का एक नियम बेहद महत्वपूर्ण और दिलचस्प है। वो यह कि यहां जमीन का उत्तराधिकार सिर्फ महिलाओं को ही मिलता है।

गारो : तिब्बत और बर्मा की सीमा पर रहने वाली गारो जनजाति के लोगों में राजनीतिक उत्तराधिकार हो या संपत्ति का मामला, सब कुछ मां से बेटी को मातृक संपत्ति के रूप में मिलता है। हां, यहां समाज और संपत्ति का संचालन पुरूषों के हाथ में है। परंपरा के अनुसार यहां भावी दूल्हा घर से गायब हो जाता है जिसे भावी वधु के घर वाले पकड़ कर लाते हैं और दुल्हन के घर या उसके गांव में रहने को बाध्य करते हैं। ऐसा बार-बार होता है। या तो अंत में दूल्हा मान जाता है या फिर दुल्हन उससे विवाह की जिद छोड़ देती है। विवाह के बाद पति को पत्नी के घर में ही रहना पड़ता है। दोनों में किसी बात पर मतभेद हो जाएं, तो अलगाव भी आसानी से हो जाता है।

नागोविसी : न्यू गिनिया का एक आइलैण्ड है साउथ बुगेन विले। यहीं रहते हैं नागोविसी जनजाति के लोग। यहां लीडरशिप या समारोहों में महिला ही अगुवा होती हैं। जमीन जायदाद भी इनके ही नाम होती है। यहां महिलाओं को यौन संबंधों के मामले में बराबर का अधिकार है। विवाह की प्रथा है, लेकिन यह बंधन के रूप में स्वेच्छा के रूप में है। जब तक महिला की इच्छा हो, वह किसी पुरूष के साथ रहे या फिर उसे छोड़ सकती है। अगर एक पुरूष और एक महिला साथ-साथ रहते हैं, तो पुरूष उसकी पूरी मदद करता है। ऐसे में समाज उन्हें विवाहित दंपति जैसा ही दर्जा देता है।

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