सत्ता के सवालों से जूझती नई शिक्षा नीति
गतांक से आगे.....
केन्द्र सरकार ने साल 2020 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मंजूरी दी थी। इस दौरान मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया था। इस नीति में सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एक ही नियामक रखने और एमफिल को खत्म करने का फैसला किया गया था। डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी मंच (हृश्वञ्जस्न) बनाने की भी योजना तैयार की गई थी।
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस सहित प्रतिपक्षी दलों के नए गठबंधन की प्रमुख नेता ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल सरकार ने विश्वविद्यालयों को आगामी शैक्षणिक सत्र से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को लागू करने का निर्णय मार्च से कर रखा है। बंगाल में 20 सरकारी विश्वविद्यालय हैं जो सामान्य डिग्री प्रदान करते हैं। इन 20 विश्वविद्यालयों के अंतर्गत 49 सरकारी और 433 सरकारी सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेज हैं। इसके अलावा, 11 निजी विश्वविद्यालय हैं जो डिग्री पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं।
शिक्षा संविधान की समवर्ती सूची का विषय है, जो राज्य सरकार को केंद्रीय नीतियों के कार्यान्वयन पर अपनी राय रखने का अवसर देती है, ममता बनर्जी ने एनईपी की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया। विशेषज्ञ समिति ने मौजूदा संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग या अतिरिक्त संसाधनों के स्व-संघटन, अतिरिक्त वित्तीय सहायता की प्राप्ति के माध्यम से कार्यान्वयन की सिफारिश की है।
विरोधी पार्टयों के नेता इस तथ्य पर ध्यान नहीं देते कि नई शिक्षा नीति किसी पार्टी ने नहीं बनाई। लगभग ढाई लाख लोगों की राय, शिक्षाविदों के गहन विचार विमर्श के बाद मोदी सरकार द्वारा शिक्षा नीति घोषित की गई। मातृभाषा , भारतीय भाषाओं को सही ढंग से शिक्षा का आधार बनाने और शिक्षा को जीवकोपार्जन की दृष्टि से उपयोगी बनाने के लिए नई नीति में सर्वाधिक महत्व दिया गया है। केवल अंकों के आधार पर आगे बढ़ने की होड़ के बजाय सर्वांगीण विकास से नई पीढ़ी का भविष्य तय करने की व्यवस्था की गई है। संस्कृत और भारतीय भाषाओं के ज्ञान से सही अर्थों में जाति, धर्म, क्षेत्रीयता से ऊँचा उठकर समूर्ण मानव समाज के उत्थान के लिए भावी पीढ़ी को जोड़ा जा सकेगा। अंग्रेजी और विश्व की अन्य भाषाओँ को भी सीखने, उसका लाभ देश दुनिया को देने पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। बचपन से अपनी मातृभाषा और भारतीय भाषाओं के साथ जुड़ने से राष्ट्रीय एकता और आत्म निर्भर होने की भावना प्रबल हो सकेगी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्त करने के बाद यह सबसे बड़ा क्रांतिकारी निर्णय किया है।
महात्मा गांधी ने कहा था, सच्ची शिक्षा वह है, जो बालकों के आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा शारीरिक विकास हेतु प्रेरित करती है। उसे संपूर्ण बनाने का प्रयास करती है। इसी तरह पूर्व राष्ट्रपति तथा महान शिक्षाविद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, शिक्षा केवल आजीविका प्राप्त करने का साधन नहीं है, न ही यह नागरिकों को शिक्षित करने का अभिकरण है, न ही यह प्रारंभिक विचार है। यह जीवन में आत्मा का आरंभ है, सत्य तथा कर्तव्यपालन हेतु मानवीय आत्मा का प्रशिक्षण है। यह दूसरा जन्म है, जिसे दिव्यात्म जन्म कहा जा सकता है।
नई शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण यह भी है कि स्कूली व उच्च शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने के लिए विभिन्न व्यवस्थाएं स्थापित की जाएंगी। विभिन्न संस्थानों की अधिकतम फीस तय करने के लिए पारदर्शी व्यवस्था विकसित की जाएगी, ताकि निजी संस्थान अपनी मनमानी न कर सकें। स्कूल शिक्षा के लिए एक नया और व्यापक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम एन.सी.एफ.एस.ई. और एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सिद्धांतों, अग्रणी पाठ्यचर्या आवश्यकताओं के आधार पर राज्य सरकारों, मंत्रालयों, केंद्र सरकार और संबंधित विभागों और अन्य विशेषज्ञ निकायों सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श करके तैयार किया जाएगा और इसे सभी क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा। 5 से 10 वर्ष में इस पाठ्यक्रम की समीक्षा एवं अद्यतनीकरण भी किया जाएगा। आज राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय आवश्यकताओं और चुनौतियों को देखते हुए परंपरागत ज्ञान एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजाइन थिंकिंग, हॉलिस्टिक हेल्थ, ऑर्गेनिक लिविंग, पर्यावरण शिक्षा, वैश्विक नागरिकता शिक्षा तथा डिजिटल शिक्षा जैसे विविध आयामों से छात्रों का परिचय अनिवार्य है, इसलिए छात्रों के फाउंडेशन या बुनियादी स्तर से ही इन सब की शिक्षा पर जोर दिया गया है।
भारत ही नहीं ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों में भी सत्ता की राजनीति में नेशनल हेल्थ सर्विस , सस्ती शिक्षा प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं। ब्रिटेन में भारत के मुकाबले बहुत कम आबादी के बावजूद 60 हजार बच्चों को सरकारी स्कूलों में जगह नहीं मिल सकी। आधिकारिक जानकारी के अनुसार स्थिति में सुधार नहीं होने पर 2024 में 1 लाख 20 हजार बच्चों को सरकारी स्कूलों में जगह नहीं मिल सकेगी। प्राइवेट स्कूल वहां बहुत मंहगे हैं और सामान्य परिवार वह खर्च नहीं उठा सकते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि बच्चे के जन्म से पहले उसके स्कूल में प्रवेश के लिए पंजीकरण करा लिए जाते हैं। सरकारी या प्राइवेट स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में प्रबंधन की गड़बड़ी , अपर्याप्त स्टाफ , सेकंडरी में प्रवेश की समस्याओं पर रिपोर्ट जारी हुई हैं। इस दृष्टि से भारत में जातिगत , सांप्रदायिक या घिसे पिटे कागजी सिद्धांतों - नारों से हटकर जनता के वर्तमान और भविष्य के असली मुद्धों को केंद्र में लाना आवश्यक है। उचित शिक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के बिना क्या कोई रोजगार मिलना देना - खेती या व्यापार संभव है? बहरहाल प्रधान मंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (पी एम् श्री ) योजना के तहत 14597 सरकारी स्कूलों को आदर्श सरकारी स्कूल के रुप में विकसित करने के लिए करीब 18 हजार करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान स्वागत योग्य है। यह पहल पांच वर्षों में एक नई दिशा दे सकती है। (समाप्त)
(लेखक पद्मश्री से सम्मानित देश के वरिष्ठ संपादक है)