नई स्वास्थ्य क्रांति की दरकार
वेबडेस्क। कोरोना महामारी की दूसरी लहर के प्रसार ने भारत के कई हिस्सों में स्वास्थ्य व्यवस्था को चरमरा दिया था. राज्य से लेकर केंद्र सरकारें एकदम लचर हैं। मरीजों की बढ़ती तादाद के बीच सरकारी और निजी अस्पतालों में मूल भूत सुविधाओं का हाहाकार मचा है. इस संकट के समय में भय, व्याकुलता, घबराहट हमारे जीवन को भी प्रभावित कर रहे है।
हालांकि इन सबके बीच प्रश्न ये है की क्या संकट को समझने और निपटने में हमसे भी कोई चूक हुई है। जाहिर है इस स्थिति में, काम चलाऊ नीति के बजाय भारत में एक नयी "स्वस्थ क्रांति" की दरकार है, जिसके विभिन्न आवश्यक पहलूँ हैं। इस स्वस्थ क्रांति का सर्वप्रथम पहलु है स्वस्थ सुधार कार्यक्रम की व्यापकता और लोक नीति में उसकी प्राथमिकता . राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (2017) और नीति आयोग की रिपोर्ट (2018), जिसमे चार चैप्टर्स केवल स्वस्थ पर केंद्रित थे, दोनों ने में भारत में स्वास्थ्य सुधार को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें की थी।
मेडिकल शिक्षा और डॉक्टर्स की संख्या -
इन रिपोर्ट्स के अनुसार स्वास्थय सुरक्षा का विषय बहुत व्यापक है, जिसमे कई कारक महत्वपूर्ण है जैसे प्राथमिक स्वास्थय केन्द्रो का विस्तार निवारक और उपचारात्मतक सेवाओं का अंतर , मेडिकल शिक्षा और डॉक्टर्स की संख्या , सक्षम नर्सिंग और स्वास्थकर्मी, नई स्वास्थ्य तकनीक और शोध, लैब का विस्तारीकरण के साथ ही स्वस्थ सेक्टर में सरकारी खर्चा का बढ़ावा देना। ये सब कारक एक कड़ी के सामान हैं ,जिनकी बेहतर स्थिति व्यापक स्वास्थय सुधार की पहली शर्त है .
स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार -
इसका दूसरा पहलु स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर हो रहे खर्च से जुड़ा है. हम अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं में केंद्र सरकार के ढाई 2.5% और राज्य बजट के 8 प्रतिशत खर्च के लक्ष्य से बहुत दूर हैं। धन आभाव में ये पूरी व्यवस्था कमज़ोर पड़ रही है। वहीँ स्वस्थ पर बढे निजी निवेश ने इसे मानव कल्याण से इतर, महंगा और लाभ केंद्रित बना दिया है। इसलिए सबसे पहले जरुरी है की स्वास्थ्य सुरक्षा पर खर्च को बढ़ावा देना।
बेहतर प्राथमिक परामर्श -
तीसरी पहलु है स्वास्थ्य सेवाओं सुधर में एक बड़ी चिंता है की लगभग 80% कोरोना के मरीज 'बेहतर प्राथमिक परामर्श' को तरसते रहे जरूरी है, इसलिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य अधिकारियों की तादाद को बढ़ाया जाए। आज थाईलैंड और वियतनाम जैसे देश हमारे सामने उदाहरण है जिन्होंने एक सशक्त और सक्षम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व्यवस्था के आधार पर कोरना पर लगभग विजय प्राप्त कर ली।
स्वास्थय सेवाओं के विकेन्द्रीकरण
चौथी बात, भारत जैसे विशाल देश में 'स्वस्थ सेवाओं के विकेन्द्रीकरण' की आवशयकता से है। किसी भी आपदा के समय में नजदीकी क्लीनिक और पड़ोसी उपचार केंद्रों की भूमिका बढ़ जाती है, क्योंकि बड़े हॉस्पिटल पर दबाव अधिक बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में ये केंद्र कम से कम शुरुआती परामर्श, दवा की उपलभ्धता और वैक्सीन अदि की उपलभ्धता के लिहाज से इनकी भूमिका बड़ी है, इसलिए इस नेटवर्क का ग्रामीण और शहरी स्तर पर मज़बूत किया जाना चाहिए।
2018 में शुरू हुई आयुष्मान भारत योजना का एक प्रमुख अंग पूरे भारत में हेल्थ और वैलनेस (HWC) सेंटर को मजबूत करना है। उसके अनुसार दिसंबर 2022 तक ये लगभग डेढ़ लाख प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को इनके साथ मिलाकर अपग्रेड करना है। ये एक दूर गमी लक्ष्य है और सरकार का इस और अब तेजी दिखानी चाहिए .
स्वास्थ्य सेवाएं एक टीम वर्क -
पांचवा पहलू ये है की अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं एक टीम वर्क हैं जिसमें स्वास्थ्य और गैर स्वास्थ्य कर्मी दोनों के भूमिका होती है। आज बड़ी संख्या में दवाई ,वैक्सीन लगाने, हॉस्पिटल एडमिशन से लेकर आईसीयू मॉनिटरिंग तक डॉक्टर्स के अलवा नर्स, वार्ड बॉय ,लैब तकनीशियन ,लोकल फार्मसिस्ट ये सभी अपनी भूमिका निभा रहे है। जरूरी है कि भारत अपने स्वास्थ्य सुरक्षा कार्यक्रम में इन फ्रंटलाइन वर्कर की बेहतर ट्रेनिग, संख्या और सुविधा पर बल दें, जोकि किसी आपदा के समय एक स्वस्थ सेवाओं को तत्परता बनाये रखें।जरुरी है की हम इस त्ष्ट्रीय आपदा से सिख ले, आरोप प्रत्यारोप से आगे बढ़कर, भारत में नयी स्वस्थ क्रांति को दिशा दे। सही मायने में तभी हम सामूहिक स्वस्थ सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करेंगे।और यही इस संकट में हुई मानव जीवन के नुकसान को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।