सत्ता के लिए परिवारों के संघर्ष से नए राजनीतिक बदलाव
सत्ता की राजनीति में कांग्रेस ने कई दशकों से स्थापित राज परिवारों के सदस्यों का सहयोग लिया और उनकी पुरानी विश्वसनीयता और जन समर्थन का लाभ उठाया। राजा महाराजा परिवारों ने भी राजनीति और जन समर्थन का फायदा उठाया। लेकिन हाल के वर्षों में अधिकांश राज परिवारों के नेता राहुल गाँधी की कांग्रेस के तौर तरीकों गलत नीतियों से तंग आकर उसका साथ छोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के साथ आते जा रहे हैं। ग्वालियर के सिंधिया परिवार, जयपुर के राज परिवार की दिया कुमारी, उदयपुर के मेवाड़ परिवार के सदस्य, बड़ोदा के गायकवाड़ परिवार की राजमाता, पटियाला पंजाब के राजा कैप्टन अमरेंद्र सिंह, जम्मू कश्मीर के राज परिवार डॉक्टर कर्णसिंह के सदस्य धीरे-धीरे मोदी सरकार और भाजपा से जुड़ते गए हैं। अब कांग्रेस से विद्रोही तेवर लेकर मैदान में आए हिमाचल की शिमला इलाके की रियासत के विक्रमादित्य सिंह तथा उनकी माता प्रतिभा सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना शुरू कर दी है। अभी कांग्रेस के दो तीन नेताओं ने राजनीतिक युद्ध विराम की कोशिश की, लेकिन विक्रमादित्य ने सोशल मीडिया से कांग्रेस के नेता विधायक का परिचय हटाकर संकेत दे दिया है। आख़िरकार सुक्खू भी तो उनके साथी विधायकों को नाग सांप बताकर अपमानित कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि हिमाचल प्रदेश के विक्रमादित्य प्रतिभा वीरभद्र सिंह परिवार के सीधे या अप्रत्यक्ष सम्बन्ध कैप्टन अमरेंद्र सिंह, डॉक्टर कर्णसिंह और सिंधिया परिवारों से जुड़े हुए हैं। तीनों परिवारों की बेटी-बहुएं रिश्तों से जुड़ी हुई हैं। वीरभद्र प्रतिभा सिंह की बेटी और कर्णसिंह की पोती कैप्टन अमरेंद्र सिंह के पोतों से ब्याही हैं। माधवराव सिंधिया की बेटी चित्रांगदा की शादी कर्णसिंह के बेटे विक्रमादित्य से हुई है। हिमाचल प्रदेश में सियासी संकट के बीच कांग्रेस दो फाड़ होती दिखाई दे रही है। कांग्रेस विधायकों का एक धड़ा जहां सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के पक्ष में खड़ा दिखा तो कुछ उनके खिलाफ। आने वाले दिनों में पता नहीं कितने किधर पाला बदलेंगें। विक्रमादित्य सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बड़े ही भावुक तरीके से मंत्री पद से इस्तीफा दिया। इस दौरान उन्होंने सीएम सुक्खू पर कई आरोप भी लगाए। यहाँ तक कहा कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री सुक्खू वित्तीय व्यवस्था गड़बड़ कर रहे हैं। पराकष्ठा यह भी कि प्रदेश में छह बार मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे समर्पित कांग्रेसी स्वर्गीय वीरभद्र सिंह की प्रतिमा लगाने के लिए जमीन का एक टुकड़ा तक नहीं दिया गया। विक्रमादित्य सिंह हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे हैं। 2021 में पिता की मौत के बाद उन्हें राजा बनाया गया था। उनका जन्म 17 अक्टूबर 1989 में हुआ था। हिमाचल प्रदेश के बिशप स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की। सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने इतिहास में डिग्री ली। विक्रमादित्य सिंह ने साल 2013 में राजनीति में प्रवेश किया। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में शामिल होने के बाद विक्रमादित्य सिंह युवा कांग्रेस अध्यक्ष बने। उन्होंने 2017 तक अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। 2017 में वह पहली बार शिमला से विधायक बनें और फिर विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के रवि कुमार मेहता को 13 हजार से ज्यादा मतों से हराकर विक्रमादित्य सिंह विधायक और मंत्री बने। फिर भी उनकी और पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह की निरंतर उपेक्षा होती रही। आला कमान यानी राहुल गाँधी की सलाहकार टीम ने अपने प्रिय सुक्खू को ही मनमानी की पूरी छूट दी। विक्रमादित्य के साथ विद्रोह का झंडा उठाने वाले 6 विधायकों की तो विधान सभा की सदस्यता ही फिलहाल चली गई। अब मामला अदालत के सामने है। दूसरी तरफ राज्य सभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक सिंघवी की पराजय हो गई। पराजय से कांग्रेस की बहुत भद्द पिटी। यह बात अलग है कि राहुल गांधी ने इस संकट में सामने आकर कोई रास्ता निकालने की कोशिश नहीं की। वह तो ब्रिटेन की यात्रा का आनंद लेते रहे।
ऐसा नहीं है कि वीरभद्र सिंह का परिवार पहली बार मोदी सरकार की तरफ झुकता दिखाई दे रहा है। विक्रमादित्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करके पहले भी सुर्खियों में आ चुके हैं। जब पीएम मोदी नेतृत्व वाली सरकार ने राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ करने का फैसला लिया तो विक्रमादित्य ने इसका स्वागत किया। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा था कि राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्यपथ करना एक स्वागत योग्य कदम है। अब ब्रिटिश शासन खत्म हो गया है। ऐसे में हर इमारत पर अंग्रेजों के नाम बदलने जाने चाहिए। शिमला (ग्रामीण) से चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा था कि वह अपनी मां और कांग्रेस की हिमाचल प्रदेश इकाई की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते है। बेटे के रूप में, मैं अपनी मां को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहूंगा, लेकिन इस संबंध में फैसला विजेता उम्मीदवारों और आलाकमान द्वारा लिया जाएगा।Ó लेकिन राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर , महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ जैसे विभिन्न राज्यों में राहुल गाँधी ने दशकों से वफादार कांग्रेसी परिवारों के पुराने या युवा नेताओं को किसी तरह आगे नहीं बढ़ने दिया। इन परिवारों के समर्थकों के आरोप तो यह हैं कि किसी युवा नेता का कद यानी राजनीतिक लोकप्रियता राहुल गाँधी से अधिक न हो जाने के भय से ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, नकुल नाथ - कमल नाथ, अमरेंद्र सिंह, कश्मीर और हिमाचल के विक्रमादित्यों (वीरभद्र सिंह और कर्ण सिंह के बेटों), मिलिंद मुरली देवड़ा आदि को अधिक आगे नहीं बढ़ने दिया। इसलिए राहुल कांग्रेस के नेताओं का यह आरोप किसीके गले नहीं उतर सकता है कि सिंधिया अथवा मानसिंह, कर्णसिंह, वीरभद्र सिंह के राज परिवार के सदस्य किसी धन के प्रलोभन से भाजपा में शामिल हो सकते हैं। असलियत तो यह है कि गाँधी परिवार की शह पर कई वर्षों से कुछ कांग्रेसी ही इन राज परिवारों के विरुद्ध आरोपों के साथ पर्दे के पीछे अभियान चलाते रहे है। अब कांग्रेस उसके नतीजे भुगत रही है।
(लेखक पद्मश्री से सम्मानित देश के वरिष्ठ संपादक है)