अगला दशक भारत का

अगला दशक भारत का
X
File Photo
डॉ श्रीराम मिश्रा

विश्व के तीन बड़े देश के राष्ट्र प्रमुख जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और अभी हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतकर आए डोनाल्ड तीनों ही राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित राजनेता हैं। जहां नरेंद्र मोदी विगत 10 वर्षों से अधिक समय से भारत के अजेय प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र सेवा कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बड़ी बेबाकी से भारत का पक्ष रखा है। देश के अंदर आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक मसलों का कुशलतापूर्वक समाधान निकाला है। कश्मीर की अनुच्छेद 370 व धारा 35 को हटाना, भारत की आत्मनिर्भरता, देश की अधोसंरचना ठीक करना हो, भारत की सीमाओं का हल निकलना हो, भारत की सेना को और सशक्त बनाने जैसे मामलों ने प्रधानमंत्री मोदी को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है।

दूसरे वैश्विक नेता के रूप में उभरे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 2002 से लेकर लगभग 22 वर्षों तक लगातार रूस के प्रधानमंत्री व फिर राष्ट्रपति के रूप में रूस को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। सोवियत संघ के बिखराव के बाद जिस तरह रूस उन्होंने स्थिरता व मजबूती दी, उससे अंतर्राष्ट्रीय जगत में उनका कद बढ़ा। पुतिन की दृढ़ता उन्हें इसी बात पर औरों से अलग करती है। और यही बात उन्हें विश्व के शीर्ष नेताओं के साथ खड़ा करती है

फोटो - डॉ श्रीराम मिश्रा

जहां तक डोनाल्ड ट्रंप की बात करें तो उन्होंने चुनाव के समय अपने कई सार्वजनिक भाषणों में राष्ट्र के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण की बात कही है। आने वाले समय में विश्व के हर एक चुनौती का सामना कर पाने में यह तीनों नेता सक्षम है। अगर इन तीनों वैश्विक नेताओं की तिकड़ी एक दिशा में साथ मिलकर काम करने की रणनीति पर अमल कर लें तो आने वाले समय पर विश्व को एक नई दिशा मिल सकती है।

जो बाइडन के जाते-जाते भारत और अमेरिका के संबंध अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच गए हंंै। पिछले दो-तीन दशकों में भारत और अमेरिका के बीच बहुत करीबियां आई थीं, सामरिक मुद्दों के समाधान के लिए दोनों के बीच बेहतर समन्वय व साझा रणनीति भी बनी थी। क्वॉड बना था वह इसलिए क्योंकि दोनों के सामने एक ही चुनौती थी और वह थी कम्युनिस्ट चीन जिनकी आर्थिक ताकत जिसकी सैन्य ताकत दिन दूनी बढ़ रही थी और वह एक बड़ी थ्रेड बनकर उभर रहा था न सिर्फ एशिया के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए लेकिन इस कारण भारत और अमेरिकी संबंधों में निकटता आई। भारत ने अमेरिका से 17 - 18 बिलियन डॉलर के हथियार खरीदे थे। सी-17 ग्लोबमास्टर, चुनुक अपाचे हेलीकॉप्टर, लांग रेंज फेयर, ड्रोन इत्यादि लेकिन जो बाइडेन के आने के बाद जो अमेरिका के साथ राजनीतिक संबंध थे, उसमें परिवर्तन आया। अमेरिका की दिलचस्पी एशिया की तरफ थी, वो अब यूरोप की तरफ शिफ्ट को गई। अमेरिकी रणनीतिकारों ने अपनी पूरी ताकत चीन की तरफ से हटाकर रूस की ओर लगा दी। इसी रणनीति के तहत अमेरिका ने यूके्रन को प्यादा बनाकर उसे रूस के खिलाफ इस्तेमाल किया, ताकि स्य को अलग-थलग किया जा सके। ऐसे में जब भारत ने रूस से कच्चा तेल सस्ते रेट पर अपनी शर्तों पर लेना शुरू किया तो जो बाइडन ने आंखें तरेरीं। रूस-भारत की निकटता को देख बाइडन और अमेरिका को गहरा झटका लगा यही तनाव डेमोक्रेट्स और जो बाइडन को सताता रहा, जिससे अमेरिका और भारत के रिश्तों में खटाश आई। यूके्रन के अलावा अमेरिका ने बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता पैदा की। वहां शेख हसीना सरकार को धराशायी कराकर अपने पिट्ठू मोहम्मद युनुस को सरकार का प्रमुख बनवाया। मणिपुर में कुकी-मैतेई विवाद और कुकीलैंड बनाने के प्रयास में जॉर्ज सोरस के हाथ को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे ही कनाडा में बैठे खालिस्तान आतंकवादियों को जो बाइडन के खास कनाडियन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के माध्यम से पंजाब में खालिस्तानियों को मदद पहुंचकर भारत को अस्थिर करने के पुख्ता प्रमाण है। यह अमेरिकी प्रयास ही थे कि भारत के विपक्षी दलों के सहारे मोदी सरकार को बार-बार अपुष्ट तथ्यों के आधार पर घेरा गया।

अब जब ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में वापसी हुई है और जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आपसी समझ रही है तो दुनियाभर में कयासबाजी है कि आने वाले समय में ये तिकड़ी वैश्विक राजनीति की दिशा बदलने में सक्षम है। टीम ट्रंप में भारतीय मूल के रामास्वामी व भारतीय प्रशंसक एलन मस्क को सरकार में शामिल करके टं्रप ने स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक परिवेश में भारत का दबदबा दिखेगा।

Tags

Next Story