ईडी के विरुद्ध हिंसा यूं ही नहीं
प्रवर्तन निदेशालय या ईडी द्वारा पश्चिम बंगाल में छापे के दौरान हिंसा ने संपूर्ण देश को विचलित किया है। तृणमूल कांग्रेस नेता शेख शाहजहां के घर पर छापेमारी के दौरान 2000 से ज्यादा लोगों ने हमला कर न सिर्फ एड की गाड़ियां तोड़ी बल्कि अधिकारियों को घायल किया जिन्हें गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। ईडी कई राज्यों में हमले का शिकार हुई है। कहीं-कहीं स्थानीय पुलिस ने सरकार के इशारे पर ईडी अधिकारियों को गैर कानूनी तरीके से रोका भी है, परंतु इस तरह की भयानक हिंसा दूसरी जगह नहीं हुई। राज्यपाल को हस्तक्षेप करते हुए कहना पड़ा है कि राज्य में कानून का राज काम करना पड़ेगा और शाहजहां शेख की गिरफ्तारी के लिए विशेष रूप से पुलिस महानिदेशक को निर्देश तक देना पड़ा है। केवल भाजपा अगर तृणमूल कांग्रेस सरकार को निशाना बनाती तो उसे राजनीति कहकर हल्का किया जा सकता था लेकिन आईएनडीआईए के कांग्रेस एवं वामदलों द्वारा ममता सरकार को कठघरे में खड़ा किया है तो इसे क्या कहेंगे? कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने तो बंगाल में कानून व्यवस्था विफल होने तथा राष्ट्रपति शासन तक लागू करने की मांग कर दी है। भाजपा पहले से ही ऐसी मांग करती रही है। केंद्रीय एजेंसियों पर इस तरह के हमले होंगे तो इसे कानून और व्यवस्था का राज तो नहीं ही कहा जाएगा।
बंगाल में ऐसी हर छापेमारी के दौरान विरोध और छोटी बड़ी हिंसा हुई है। वस्तुत: शिक्षक भर्ती घोटाला और राशन वितरण घोटाला मामलों में टीएमसी नेताओं और व्यवसायियों के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान भी टीएमसी कार्यकर्ताओं ने ईडी के कार्यालयों पर हमला किया और अधिकारियों को घेर लिया था। 27 अक्टूबर 2023 को वन मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक के आवास और कार्यालय पर राशन घोटाले के संबंध में छापेमारी के दौरान भी ईडी के दो अधिकारियों को तृणमूल कार्यकर्ताओं ने घेर कर हमला कर दिया। वर्तमान मामले की तरह उसे समय भी ईडी ने अनेक नेताओं कार्यकर्ताओं के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पार्टी के नेताओं लगातार राजनीतिक बदला लेने की कोशिश बताकर माहौल पूरी तरह केंद्रीय एजेंसियों के विरुद्ध बनाए रखा है। सच कहा जाए तो वर्तमान हिंसा पूरे प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी एवं सरकार द्वारा बनाए गए माहौल की ही परिणति है। जब मुख्यमंत्री मंत्री और बड़े-बड़े नेता वक्तव्य देंगे, सड़कों पर उतरेंगे तो हिंसा करने वालों को पुलिस कार्रवाई का भय भी नहीं रहता। यह सामान्य आश्चर्य का विषय नहीं है कि इतना भीषण हमला हुआ और पुलिस अधिकारियों के बचाव में नहीं आई। केवल पश्चिम बंगाल नहीं अनेक गैर भाजपा प्रदेश सरकारों ने केंद्रीय एजेंसियों के विरुद्ध ऐसे ही माहौल बनाया है। यहां तक कि विधानसभा में भी उनके विरुद्ध प्रस्ताव पारित हुए हैं। बंगाल उन राज्यों में शामिल है जिसने घोषणा किया कि सीबीआई पर केंद्र से समझौता रद्द करते हैं तथा यह एजेंसी राज्य में कार्रवाई नहीं कर पाएगी।
सच समझने के लिए ईडी द्वारा वर्तमान सरकार के कार्यकाल में और पूर्व सरकार के दौरान कितनी छापामार कार्रवाई की गई और उनमें कितने मामले नेताओं पर है इसे देखना जरूरी है। ईडी ने मोदी सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2022 तक 3010 छापेमारी की है जबकि मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2004 से 2014 तक 112 छापेमारी ही हुई थी। यानी मोदी सरकार में ईडी की छापेमारी में 2588 प्रतिशत की वृद्धि है। मोदी सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2022 तक ईडी ने 121 नेताओं के खिलाफ मुकदमा किया है, जिनमें 115 विपक्ष से हैं। इस तरह ईडी की कार्रवाई के दायरे में आने वालों में 95 प्रतिशत नेता विपक्ष के हैं। मनमोहन सरकार के कार्यकाल में 2004 से 2014 तक ईडी ने 26 नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की थी, जिनमें 14 विपक्ष से थे। तब ईडी की कार्रवाई में 54 प्रतिशत नेता विपक्ष से थे। ध्यान रखिए,इन नौ वर्षों में नेताओं पर 221 मामले हैं, जिनमें किसी में फैसला नहीं हुआ है। इन आंकड़ों को देखने के बाद आम धारणा यही बनती है कि वाकई विपक्षी नेताओं को ही निशाना बनाया जा रहा है। ईडी ने भी पिछले महीने आंकड़ा दिया कि कुल मामलों में केवल 2.98 प्रतिशत ही नेताओं के विरुद्ध हैं। इससे कई गुना ज्यादा वर्तमान एवं पूर्व नौकरशाहों के विरुद्ध है और शेष अन्य के। उनको लेकर हंगामा नहीं होता। दूसरे, जितने नेताओं पर मामले हैं उनके विरुद्ध आरोप पत्रों में अवैध तरीके से धन बनाने के प्रमाण दिखते हैं। कोई नहीं कह सकता कि दिल्ली से लेकर बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब या अन्य प्रदेशों में ईडी, आयकर विभाग आदि के शिकंजे में आए नेता भ्रष्टाचारी नहीं हैं। वैसे तृणमूल सरकार के मंत्रियों व नेताओं पर भ्रष्टाचार के लगभग सभी मामले न्यायालय के आदेश से दर्ज हुए हैं। ऐसा कोई मामला नहीं जिनमें सरकार न्यायालय नहीं गई और उसे मुंह की नहीं खानी पड़ी है। न्यायालय में मुकदमा लड़ने के हर प्रकार के संसाधन होने के बावजूद लंबे समय से उनके नेता जेलों में हैं। यही बात अन्य राज्यों के नेताओं पर भी लागू होती हैं। जो भी हो किसी भी तरह ऐसी हिंसा के विरुद्ध अगर सरकारें कार्रवाई करके दोषियों को समुचित सजा नहीं दिलवाएगी तो भ्रष्टाचारियों और अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई करना मुश्किल होगा। बंगाल में सभी पार्टियां तृणमूल पार्टी , सरकार और प्रशासन द्वारा हिंसा करने का आरोप लगाती हैं और इनमें सच्चाई भी दिखी है। शेख शाहजहां के घर छापे के दौरान हुए हमलों में सभी लोग एक ही समुदाय के थे। यह बंगाल के संदर्भ में दूसरी खतरनाक स्थिति है जिसकी ओर हजारों लोग बार-बार इशारा करते हैं और उनके साथ संघर्षों की खबरें स्थानीय मीडिया में आती रहतीं हैं। इस तरह पश्चिम बंगाल की वर्तमान हिंसा को सत्ताधारी दल द्वारा बनाए गए राजनीतिक वातावरण की ही परिणति माना जाएगा जिसका किसी न किसी तरह अंत करना ही होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)