अब होंगे वनबंधु विकसित, रुके कनवर्जन

अब होंगे वनबंधु विकसित, रुके कनवर्जन
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गिरीश पंकज

छत्तीसगढ़ में कमल खिल चुका है और इस बार सरकार का मुखिया बनाया गया है विष्णुदेव साय को। यह वनवासी परिवार (जिन्हें आदिवासी भी कहते हैं) से आते हैं। वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में वे विधायक, सांसद और केंद्र में मंत्री भी रहे। इसलिए कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने बहुत सोच-समझकर सही निर्णय किया और एक आदिवासी चेहरे को छत्तीसगढ़ की कमान सौंपी है। तभी तो हमारे जैसे अनेक लोगों की उम्मीद बढ़ जाती है कि छत्तीसगढ़ में रहने वाले वनवासी समाज का उन्नयन होगा। अब उनकी उपेक्षा नहीं होगी। आजादी के पचहत्तर साल बीत चुके हैं, लेकिन आज भी हमारा गाँव पिछड़ा हुआ है । हमारे वनवासी भाई आज भी वन प्रांतर में रहते हुए उपेक्षित-सा जीवन जी रहे हैं । मैंने सन 2014 में जब अपने कुछ पत्रकार मित्रों के साथ नक्सलियों से मिलने के लिए अबूझमाड़ की पाँच दिवसीय पदयात्रा की थी, तब यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि हमारे वनवासी बंधुओं को सुदूर जंगल से निकलकर नारायणपुर तक आने में सौ किलोमीटर की पदयात्रा करनी पड़ती है। वे अपनी रोजमर्रा की ज़रूरत की चीज़ों को खरीदने के लिए नारायणपुर के बाजार आते हैं। यह स्थिति आज भी कायम है। वह बहुत अधिक सुविधाएं भी नहीं चाहते। अभाव में रहकर भी वे अपने जीवन से संतुष्ट हैं, लेकिन समाज का क्या दायित्व है? क्या हम उन्हें उनके हाल में छोड़ दें? क्या वहां बेहतर स्कूल नहीं होने चाहिए? क्या उनके आसपास सर्वसुविधायुक्त बाजार नहीं होना चाहिए? क्यों वे सौ- सौ किलोमीटर पैदल चलकर बाजार तक पहुँचें? क्यों नहीं बाजार की सुविधा उसके आसपास ही उपलब्ध हो जाए! आदिवासी बच्चों के लिए उन्हीं के आसपास स्कूल होने चाहिए। उनके आसपास वे तमाम सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए, जो किसी भी कस्बे में होती हैं। यह कौन-सी मानसिकता है कि हम वनवासियों को वंचित रखें और शहरवासियों को तरह-तरह की सुविधा मुहैया करवाते रहें?

फिलहाल, हम सब अपेक्षा नए मुख्यमंत्री से कर रहे हैं, जो मूल रूप से वनवासी हैं। जिन्हें भाजपा के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ा आदमी बनाने का वादा किया था। अब वह बड़े व्यक्ति बना दिए गए हैं, तो इस बड़े व्यक्ति का प्रथम दायित्व है कि वे अपने वनबंधुओं का ख्याल करें। पिछली कांग्रेस सरकार ने ग्रामीणों का दिल जीतने के लिए अनेक महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की थीं। लेकिन अब नई सरकार का दायित्व है कि वह वनबन्धुओं का दिल जीतने का काम करे। अनेक नई परियोजनाएं उनके लिए शुरू करे। वनवासी बंधु जहां रहते हैं, वहां उनके लिए पक्की सड़कें बनें। शहर से उनके क्षेत्र सड़क मार्ग से जुड़ जाएँ ताकि आवागमन सुगम हो। वहां प्राथमिक से लेकर हाई स्कूल तक अध्ययन की व्यवस्था हो। उन्हें नि:शुल्क शिक्षा मिले। वनबंधु अपनी संस्कृति को लेकर अपनी परंपरा को लेकर बहुत सजग रहते हैं। छत्तीसगढ़ के आदिवासी जनजीवन पर निरंतर विमर्श के लिए आदिवासी कला परिषद जैसी संस्था भी बननी चाहिए, जो उनके बीच जाकर कार्य करे। जैसा वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बारे में मुझे पता चला है, वे अपनी जड़ों से जुड़े रहना पसंद करते हैं। उनकी सादगी के कारण लगता है कि वे वनबन्धुओं के उत्थान के लिए प्राणपण से कार्य करेंगे। सौभाग्य की बात है कि इस समय देश की राष्ट्रपति आदिवासी महिला हैं, तो छत्तीसगढ़ प्रांत का मुख्यमंत्री भी आदिवासी है। संयोग से केंद्र में भाजपा की सरकार है, तो इस तरह डबल इंजन वाली सरकार हो गई है। तो क्यों न यह सरकार अब संकल्प करे कि छत्तीसगढ़ का वनवासी समाज पिछड़ा नहीं रहेगा। उसे भी हर तरह की वैसी सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जैसी गांव और शहरों के लोगों तक उपलब्ध हो रही हैं।

कनवर्जन पर अंकुश लगे

आदिवासियों की मासूमियत का फायदा उठाकर वर्षों से यहां धर्मांतरण का खेल भी होता रहा है। लाखों आदिवासी बड़ी चालाकी के साथ ईसाई बना दिए गए। यह षड्यंत्र अभी चल रहा है। सेवा की आड़ में उनका कनवर्जन किया जा रहा है। यह कनवर्जन तभी रुक सकता है, जब वर्तमान भाजपा सरकार आदिवासियों के उत्थान के लिए पूरी ईमानदारी के साथ काम करे, जैसा मिशनरी वाले करते रहे हैं। उनके स्वास्थ्य की चिंता, उनके बच्चों की शिक्षा की चिंता। उनके बेहतर आवागमन के लिए सड़कों का जाल बिछाया जाए। और बस्तर की बात करें, तो वहां नक्सल समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो, तभी वहाँ के आदिवासी बन्धुओं का विकास होगा। इस दिशा में भाजपा की नई सरकार को कार्य करना चाहिए । नक्सलियों से वार्ता का प्रयास तेज हो।

कुल मिलाकर नई सरकार अगर अपनी विशिष्ट पहचान बनाना चाहती है तो यह जरूरी है कि आने वाले पाँच वर्षों में शहरी विकास के साथ-साथ आदिवासी विकास भी महत्वपूर्ण एजेंडा बने। वनबन्धुओं को लगना चाहिए कि हमारे बीच का ही एक व्यक्ति हमारा मुखिया बना है। वनवासियों के खेल,नृत्य, उनकी कलाएं, उन के गीत अब शहरों तक गूँजने चाहिए । तभी वनवासियों और नगरवासियों के बीच एक आत्मीय रिश्ता कायम हो सकेगा।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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