देश और काल की कसौटी पर

देश और काल की कसौटी पर
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वीरेंद्र सिंह परिहार

देश की संसद ने नए आपराधिक कानून को पास कर दिया है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अब यह नए कानून प्रचलन में आ गए हैं। उल्लेखनीय है कि यह सब अंग्रेजों के बनाए हुए कानून थे जो लंबे समय से देश की स्वतंत्रता के बाद भी प्रचलित थे। लेकिन जिस तरह से क्रांतिकारी ढंग से इन कानूनों में बदलाव करने का कार्य किया गया। वह देश के विधिक इतिहास में बहुत बड़ा परिवर्तन कहा जा सकता है। वस्तुत: देश के सभी उपरोक्त दांडिक कानूनों में हर मैजेस्टी, और बाइदाप्रिवी काउंसिल आफ इंग्लैंड, द क्राउन रिप्रेजेंटेटिव जैसे शब्द जो गुलामी की निशानियां थी, प्रचलन में थे।

लेकिन अब नए प्रस्तावित दांडिक कानूनों के तहत भारतीय दंड संहिता का नाम भारतीय न्याय संहिता 2023 होगा। भारतीय दंड संहिता में जो महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं, उनमें पहचान छुपा कर शादी करने या संबंध बनाने को लेकर,जो पहले नहीं था- उसे भी अपराधों की श्रेणी में कर दिया गया है। ओवैसी जैसे लोग इसे भले मुस्लिम विरोधी बताएं लेकिन यह तो धोखाधड़ी और छल के खिलाफ कानून होगा जो प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होगा। इसी तरह से रोजगार और पदोन्नति में भी धोखाधड़ी किए जाने पर दंड का प्रावधान लागू किया जाएगा। कोई भी शिकायत मिलने पर 3 दिन के भीतर एफआईआर करना अनिवार्य कर दिया गया है। शुरुआती जांच को 14 दिन के अंदर करना अनिवार्य कर दिया गया है। 180 दिन के भीतर आरोप पत्र प्रस्तुत करना भी अनिवार्य कर दिया गया है। राजद्रोह कानून को बिल्कुल नए ढंग से परिभाषित कर दिया गया है। अब सरकार की आलोचना करने पर राजद्रोह का कानून नहीं लगेगा, क्योंकि देश में लोकतंत्र है और प्रत्येक व्यक्ति को सरकार के विरोध में बोलने का अधिकार है लेकिन देश की एकता और अखंडता के विरुद्ध काम करने पर राजद्रोह की जगह देशद्रोह का कानून लागू होगा और होना भी चाहिए। वर्तमान कानूनों में जो महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है, उसमें अब भगोड़ों व्यक्तियों के खिलाफ भी ट्रायल की कार्रवाई हो सकेगी और उनकी अनुपस्थिति में उन्हें दोषसिद्ध घोषित किया जा सकेगा। निश्चित रूप से इससे भगोड़ों की प्रवृत्ति पर विराम लगेगा। उन्हें ऐसा लगेगा यदि वह भागे तो वह अपने प्रकरण की पैरवी नहीं कर पाएंगे जिससे सिद्ध दोष होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। इसी तरह भगोड़ों को दोषी करार देने से उनका दर्ज आरोपी के बजाय अपराधी का हो जाएगा, जिसके चलते उनके लिए वीजा, पासपोर्ट एवं और अन्य कई तरह की समस्याएं आन खड़ी होंगी। ऐसे सिद्ध अपराधियों को परस्पर समझौता द्वारा देश में लाया जा सकेगा।

अभी जो दांडिक कानून लागू था उसमें व्यावहारिक तौर पर जीरो में एफआईआर कराने पर बड़ी समस्याएं थीं। लेकिन अब जीरो पर कोई भी व्यक्ति किसी भी थाने में एफआईआर करा सकेगा और 15 दिवस में उस थाने को उस एफआईआर को क्षेत्राधिकार वाले थाने में भेजना अनिवार्य होगा। अभी तक मॉबलिंचिंग को लेकर आपराधिक कानून में कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन अब मॉबलिंचिंग को लेकर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। निर्दोषों को प्रताड़ित न किया जा सके और दोषी किसी भी तरह न बच निकले इसके लिए तलाशी और जब्ती में वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया गया है। 7 साल तक की सजा का जहां प्रावधान है वहां फोरेंसिक जांच अनिवार्य कर दी गई है।

नए आपराधिक कानूनों में जो क्रांतिकारी बदलाव किया गया है, उसमें अधिकारियों पर ट्रायल चलाने के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं किया जा सकता। यदि 120 दिन के अंदर संबंधित विभाग चार्ज सीट प्रस्तुत करने के लिए अनुमति नहीं देता तो डीम्ड सहमति मान ली जाएगी। इस तरह से जो सफेदपोश लोग शासन के खजाने को लूट कर सुरक्षित बचे रहते थे, अब उन्हें कानून के समक्ष जवाबदेह होना पड़ेगा और शासन के खजाने की लूट में गुणात्मक ढंग से कमी आएगी। नए कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह कहते हैं कि नए कानून से तारीख पर तारीख देने का जमाना बीत गया। अब किसी भी विषय पर दो से ज्यादा तारीखें नहीं मिल सकती। जो मामले अभी तक पता नहीं कितने वर्षों तक अटके और लटके रहते थे,उन्हें 3 वर्षों में निपटाना पड़ेगा। जहां 3 वर्ष तक सजा का प्रावधान होगा, वहां पर मामले समरीट्रॉयल से निपटाए जाएंगे.हाल में चार्ज लगने के उपरांत 1 महीने के अंदर मामले को निराकृत करना होगा। अन्वेषण के नाम पर पुलिस मामला सालों साल तक लटकाए रखती थी। उसे 3 महीने के अंदर फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए अनिवार्य कर दिया गया है।

लेकिन यह सब ऐसे ही नहीं हो गया। सितंबर 2019 में गृहमंत्री अमित शाह ने सभी राज्यपालों मुख्यमंत्री और प्रशासकों को पत्र लिखा। जनवरी 2020 में भारत के मुख्य न्यायाधीश, दूसरे न्यायाधीश,बार काउंसिलोंऔर विधि विश्वविद्यालयों को लिखा गया और दिसंबर 2021 में सभी संसद सदस्यों से सुझाव मांगे गए। मार्च 2020 में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया, जिसे कुल 3200 सुझाव प्राप्त हुए। इस संबंध में गृह मंत्री अमित शाह ने 150 से ज्यादा बैठकर की जिनमें गंभीरता से विचार विमर्श किया गया। जिसके चलते यह नए आपराधिक कानून देश के जन को ध्यान में रखकर बनाए गए। इसके नतीजे निश्चित रूप से देश के बहुत अनुकूल होंगे।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)

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