एक पृथ्वी एक भविष्य के अधिष्ठाता नरेंद्र मोदी

एक पृथ्वी एक भविष्य के अधिष्ठाता नरेंद्र मोदी
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डॉ. राघवेंद्र शर्मा

बेहद गरिमामय और अपनत्व भरे माहौल में जी-20 का भारतीय सफर पूर्णता को प्राप्त हो गया। जैसे-जैसे मेहमानों ने देश में आना शुरू किया वे भारतीय स्वागत और सत्कार के कायल होते गए और जब अपने अपने देश वापस लौटे तो उनके हृदय में एक उत्कृष्ट भारत की छवि चिरकाल के लिए अंकित हो गई। यह बात इसलिए कहना सहज प्रतीत होता है, क्योंकि इस पूरे कालखंड में भारत ने सभी देशों को अपनेपन का जो एहसास कराया वह आज से पहले जी-20 की किसी भी मेजबानी में देखने को नहीं मिला।

सबसे अच्छी बात यह रही कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 को राजधानी दिल्ली तक सीमित नहीं रहने दिया। उन्होंने इस दायित्व को प्राप्त करने के साथ ही जी-20 के अधिकांश आयोजनों, बैठकों को भारत के विभिन्न राज्यों, महानगरों में बांट दिया। इससे यह फायदा हुआ कि विदेशी मेहमानों को हमारी विविधता को बेहद नजदीक से देखने का अवसर प्राप्त हुआ।

उन्होंने देखा कि हमारी संस्कृति कितनी बहुरंगी है और हमारे देश का हर कोना एक अलग पहचान के बावजूद एकता की मजबूत डोर में बंधा हुआ है। हर राज्य का अपना कोई ना कोई एक वैशिष्ट्य है। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे बाजार प्राप्त कर सकता है? इसकी व्यूह रचना को साकार किया जाना इन बैठकों के दौरान काफी सहज हो गया।

श्री मोदी देश के छोटे-छोटे उत्पादों को भी वैश्विक स्तर पर बड़े-बड़े बाजार उपलब्ध कराने में सफल रहे। ऐसे में वैश्विक स्तर पर यह संदेश भी गया कि अनेकता में एकता ही भारत की विशिष्टता है, यह केवल एक नारा ना होकर यहां की वास्तविकता भी है। विभिन्न बैठकों के माध्यम से हम छोटे-छोटे क्षेत्रीय उत्पादों को देश में आए मेहमानों को दिखा पाए, उनकी विशेषताएं समझा पाए और अश्वस्त कर पाए कि हम लघु और सूक्ष्म उद्योगों के माध्यम से भी वैश्विक स्तर के उत्पाद उपलब्ध कराने में सक्षम एवं आत्मनिर्भर हैं। भारत और बड़े लक्ष्य प्राप्त करने में तब सफल रहा जब जी-20 की निर्णायक बैठक दिल्ली में आयोजित की गई। वहां दिल्ली घोषणा पत्र सभी वैश्विक सदस्यों की सहमति प्राप्त करने में कामयाब रहा। अफ्रीकी राष्ट्रों के संघ को भारतीय प्रधानमंत्री श्री मोदी के प्रस्ताव पर सर्वसम्मति से जी-20 में शामिल किया जाना हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि रही। इससे चीन की महत्वाकांक्षी मंशाओं पर अंकुश लगा। वहीं भारत के मित्र देशों की सूची में अफ्रीकी देशों की नई श्रृंखला जुड़ गई। इस पूरे आयोजन का एक खास पहलू यह भी रहा कि हम भारतीय बाजारों पर लगातार हावी हो रहे पिज़्ज़ा, बर्गर, नूडल्स आदि के विकल्प के तौर पर दुनिया को भारतीय मिलेट्स उपलब्ध करा पाए। उनसे बने व्यंजनों को मेहमानों के सामने आकर्षक ढंग से परोसकर हम यह सिद्ध कर पाए कि पौष्टिकता और स्वादिष्टता का सुंदर मेल भारतीय व्यंजनों में समाया हुआ है। वैश्विक स्तर पर इनका आवश्यकता अनुसार निर्यात किया जा सकता है।

हमारा उत्कर्ष और वैशिष्ट्य तात्कालिक ना होकर सनातन है। यह बात अधिकांश विदेशी मेहमानों को तब समझ में आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के साथ उनके फोटो वहां शूट हुए, जहां पार्श्व में नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष परलक्षित होते देखने को मिले। खुद श्री मोदी ने मेहमानों को यह समझाया कि यह भारतीय इतिहास का वह कालखंड है, जब हम पूरे विश्व को शास्त्र शस्त्र और विज्ञान की शिक्षा दे रहे थे। मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में इस पर भले ही विराम लगा हो, लेकिन वह क्षमता और सशक्तता भारत में आज भी बरकरार है। वर्तमान भारत पूरे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम की भावना के साथ एक बात फिर विश्वास की मजबूत डोर में बांधने जा रहा है।

हमारी सबसे बड़ी कामयाबी यह रही कि आतंकवाद के मुद्दे पर जी-20 मंच को हमारे प्रधानमंत्री बड़ी कुशलता के साथ सशक्त विरोध के लिए एकजुट करने में कामयाब रहे। अब तक अवसरवादी प्रवृत्ति से ग्रसित कई देश आतंकवाद को अपनी सुविधा अनुसार अच्छे और बुरे आतंकवाद के नाम से विभाजित करने की प्रक्रिया अपनाते रहे हैं। इससे दुनिया में आतंकवाद को अप्रत्यक्ष बढ़ावा मिला और कई देश इसकी चपेट में आकर बर्बाद होते चले गए। खासकर पाकिस्तान जैसे आतंकवाद परस्त देश स्वयं इसकी चपेट में आकर अब बर्बादी की विभीषिका से रूबरू हैं। भारत में जब इन विसंगतियों को इस मंच पर रखा तो सुखद परिणाम यह मिले कि सभी ने एक राय होकर आतंकवाद की आलोचना की और इसकी व्यापकता पर अंकुश लगाने की इच्छा शक्ति दिखाई।

नि:संदेह जी-20 की अध्यक्षता कर रहे श्री नरेंद्र मोदी की इस कामयाबी से चीन और पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों की समझ में यह आ गया होगा कि अब उनका पाला जिस भारत से है, वह एक ऐसा नया भारत है जो अपने साथ-साथ अपने मित्र देशों की सुरक्षा करना भी जानता है। यह भारतीय नेतृत्व की दूरदृष्टि ही है जिसके तहत हमारी ओर से यह स्पष्ट किया गया कि किसी भी देश का महत्व मात्र उसकी जीडीपी के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। बल्कि इसके लिए यह अन्वेषण किया जाना आवश्यक है कि कौन सा देश मानवीयता के आधार पर समूची दुनिया को एक दृष्टि से देख पा रहा है। सही मायने में इसी दृष्टिकोण से 'वन अर्थ वन फ्यूचरÓ के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। है।

( लेखक स्वतंत्र टिपण्णीकार हैं)

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