"भारत जोड़ो यात्रा" में दिखी राहुल गांधी की राजनीतिक अपरिपक्वता
हाल ही में जब राहुल गांधी की कथित भारत जोड़ो यात्रा समाप्त हुई तब उन्होंने नफरत भय और हिंसा के वातावरण का जिक्र करके एक प्रकार से अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही परिचय ही दोहराया है। उल्लेखनीय है कि उन्होंने यात्रा के समापन पर जम्मू कश्मीर में पत्रकारों को संबोधित किया था। तब इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया गया कि देश में भय, नफरत और हिंसा का वातावरण व्याप्त है। उन्होंने उक्त माहौल का दोष भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री श्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी श्रीअजीत डोबाल के सिर मढ़ दिया।
आश्चर्य की बात तो यह रही कि उन्होंने उक्त आशय का बयान कश्मीर की धरती पर दिया। उस कश्मीर में, जहां पर वह बिना किसी भय के अपने कार्यकर्ताओं के साथ मनचाही संख्या में पहुंचकर राष्ट्रीय ध्वज फहरा पाए। वह भी श्रीनगर के उस लाल चौक पर जहां कांग्रेसी और कांग्रेस समर्थित सरकारों के वजूद में रहते राष्ट्रीय ध्वज फहराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन ही बना हुआ था।
यदि कोई श्रीनगर के लाल चौक सहित कश्मीरी भूभाग पर कहीं भी तिरंगा झंडा ठहराने का प्रयास करता भी था तो उसे गोलियों से भून दिया जाता था। कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र और नेशनल कॉन्फ्रेंस की राज्य सरकारों पर पलायन वादी सोच इस कदर हावी हो चुकी थी कि अनेक सालों तक तो वहां राष्ट्रीय त्योहारों पर भी राष्ट्रीय ध्वज फहराने का साहस नहीं जुटाया जा सका था। कॉन्ग्रेस सहित नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और उनकी सरकारें आतंकियों से इतने भयभीत रहा करते थे कि इनके द्वारा राष्ट्रवादी नेताओं को भी तिरंगा झंडा फहराने से रोका जाता था। उदाहरण के लिए हमें 1991 और 92 के दौरान संपन्न हुई भाजपा की उस एकता यात्रा को याद करना चाहिए, जो भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में निकाली गई थी। यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त यात्रा के कुशल रणनीतिकार और संयोजक वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हुआ करते थे।
पाकिस्तान और कश्मीर में बैठे उसके पिट्ठू राजनेताओं की शह पाकर आतंकवादी समानांतर सरकार चलाने की स्थिति प्रदर्शित करने लगे और यह धमकियां भी देने लगे कि जो कोई कश्मीर में तिरंगा लहराएगा उसे गोलियों से भून दिया जाएगा। आश्चर्य की बात है उस वक्त ना तो केंद्र में बैठी कांग्रेस सरकार का खून खौला और ना ही उसके संरक्षण वाली कश्मीर सरकार का ही देश प्रेम जागा। तब तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष श्री जोशी ने आतंकवादियों की चुनौती स्वीकार की और दावा किया कि वे 26 जनवरी 1992 को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहरा कर दिखाएंगे। जिसमें दम है वह रोक कर दिखाए। उनकी इस घोषणा का राष्ट्रीय स्तर पर इतना व्यापक स्वागत हुआ की सीमित संख्या में शुरू हुई यह यात्रा जब जम्मू पहुंची तो वहां भाजपा के समर्थन में लाखों लोगों का हुजूम देशभर से आ डटा। यह देख कर कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार और नेशनल कॉन्फ्रेंस की कश्मीर सरकार के मानो हाथ पांव ही फूल गए। मुझे अच्छी तरह याद है तब शासन पक्ष के लोगों ने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जोशी और यात्रा के कुशल रणनीतिकार रहे हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को यह कहकर डराया था कि श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने से उनकी जान का जोखिम हो सकता है। लेकिन जब दोनों नेता अपने संकल्प पर अडिग बने रहे और जम्मू कश्मीर में इकट्ठे हुए लाखों राष्ट्रवादी नौजवान भी लाल चौक पर तिरंगा फहराने की जिद पर अड़ गए, तब तत्कालीन सरकारों को घुटने टेकने पड़ गए थे। लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी कि सुरक्षा की दृष्टि से वहां इतने लोगों का एक साथ जाना उचित नहीं रहेगा। लोग फिर भी भयभीत नहीं हुए तो शासन पक्ष अनुनय विनय पर उतर आया। श्री जोशी जी और श्री मोदी जी से यह आग्रह किया गया की आप देश के जिम्मेदार नेता हैं।
अतः कृपया प्रदेश एवं केंद्र सरकार के आग्रह को सम्मान दें और हमारा सहयोग करें। जैसे कि भाजपा के संस्कार हैं, यह पार्टी केवल विरोध के लिए ही अपने वैचारिक मतभेद वाले नेताओं अथवा दलों का बेफिजूल विरोध करने में रुचि नहीं रखती। अपनी इसी व्यापक सोच के चलते भाजपा नेताओं ने तत्कालीन कांग्रेस की केंद्रीय सरकार और नेशनल कांफ्रेंस की कश्मीर सरकार के आग्रह का सम्मान रखा और गिने चुने लोग श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराने को तैयार हो गए। तब सेना के एक हेलीकॉप्टर से इन नेताओं को भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच लाल चौक पर ले जाना पड़ा और जितनी जल्दी हो सके राष्ट्रीय ध्वज फहराने की औपचारिकता पूरी कराने की अफरा तफरी मचाई जाती रही। खैर, भाजपा का संकल्प था तो उसने पूरे मनोयोग से राष्ट्रीय ध्वज फहराया और पूरी बहादुरी के साथ जन गण मन गाया तथा ध्वज को सैल्यूट करके अपनी कसम पूरी की। उस वक्त जिन लोगों ने भी इस दृश्य को गर्व के साथ दूरदर्शन के प्रसारण में देखा था, उन्हें याद होगा कि जब श्री जोशी और श्री मोदी श्रीनगर के लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे तब आतंकियों द्वारा गोलीबारी किए जाने की तड़तड़ाहट स्पष्ट सुनाई दे रही थी। जिससे बचते हुए तुरंत भाजपा नेताओं को उसी हेलीकॉप्टर से जम्मू पहुंचा कर तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकारों ने जैसे तैसे राहत की सांस ली। इसे कहते हैं भय का वातावरण, और हिंसा उसे कहते हैं जो तत समय आतंकवादियों द्वारा कश्मीर में बरपाई जा रही थी तथा नफरत वह थी जिसके चलते हिंदुओं से कहा जाता था कि मुसलमान बन जाओ वर्ना अपनी जवान बहन बेटियों को छोड़कर कश्मीर से भाग जाओ। यह सब कुछ सरेआम हो रहा था तब कांग्रेस की केंद्र सरकार और कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती थी।
आज जब कश्मीर सहित समूचे देश के लिए नासूर बन चुकी धारा 370 हटाए जाने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार जम्मू कश्मीर से भय नफरत और हिंसा का वातावरण अधिकांशतः समाप्त कर चुकी है। शेष बचीखुची नाममात्र की आतंकवादी गतिविधियों को भी शून्य करने में जुटी हुई है, तब राहुल गांधी जैसे नेता शांति का टापू बनती जा रही जम्मू कश्मीर की धरती पर खड़े होकर भय, नफरत और हिंसा के वातावरण की बात करते हैं तो फिर उनकी बुद्धि पर केवल तरस ही खाया जा सकता है। वह भी तब जबकि यह खुद भी कश्मीर में अब बेखौफ होकर अपने साथियों के साथ विचरण कर रहे हैं। उसी कश्मीर में, जिस कश्मीर में इनके समर्थन से चलने वाली सरकारों के रहते राष्ट्रवादी सोच लेकर घर से निकलना भी जान जोखिम का कार्य हुआ करता था। ईश्वर राहुल गांधी और उनसे जैसे अवसरवादी नेताओं को सद्बुद्धि प्रदान करें यही प्रार्थना है।