विपक्ष का शोर और मोदी का रिपोर्ट कार्ड

विपक्ष का शोर और मोदी का रिपोर्ट कार्ड
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विक्रान्त निर्मला सिंह

हाल ही में हुए पांच राज्यों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की बड़ी जीत के बाद, राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि 2024 के आम चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला नहीं है। हालांकि, यह कहना अभी भी जल्दबाजी होगी कि मोदी सरकार 2024 में आसान जीत दर्ज करेगी। क्योंकि सिर्फ राज्यों के चुनावी विजय से 2024 में राह आसान नहीं मानी जा सकती है। अभी पीएम मोदी को आम चुनाव से पहले जनता के बीच अपना आर्थिक रिपोर्ट कार्ड भी देना है। विपक्षी पार्टियों का इंडी अलायन्स भी आर्थिक मोर्चे पर सरकार को घेरेगा जिसमें महंगाई और बेरोजगारी केंद्र बिंदु होंगे। सही मायने में देखें तो आर्थिक स्थिति एक बड़ा कारक है जो चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है। 2013-14 में कांग्रेस का केंद्र में डगमगाना कमजोर आर्थिक प्रदर्शन की वजह से भी हुआ था। इसलिए, यह देखना महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार के आर्थिक आंकड़े क्या कहानी कहते हैं।

आर्थिक विकास दर: मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में, भारत की आर्थिक विकास दर में उतार-चढ़ाव आया है। 2019-20 में कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में 5.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी। हालांकि, 2021-22 में अर्थव्यवस्था में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो एक दशक में सबसे अधिक थी। इस वृद्धि ने ना सिर्फ दुनिया को चौंका दिया बल्कि रघुराम राजन जैसे तमाम बड़े अर्थशास्त्रियों के दावों को भी पूरी तरह गलत साबित कर दिया। 2023-24 के लिए विश्व बैंक ने भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान 6.3 प्रतिशत रखा है। लेकिन वर्तमान आंकड़े बताते हैं कि वृद्धि दर इससे अधिक रहने वाली है। जुलाई-सितंबर तिमाही में ही वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत रही है। कोविड के प्रभाव को छोड़कर, मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक विकास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसमें महत्वपूर्ण योगदान बढ़े हुए पूंजीगत खर्च का है। इस तथ्य को नहीं नकारा जा सकता कि मोदी सरकार ने बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर खूब खर्च किया है। आंकड़ों में देखें तो 2019-20 में जो पूंजीगत खर्च 2,83,500 करोड़ रुपये था वो 2023-24 के बजट में रिकॉर्ड 10,01,961 करोड़ रुपये तक पहुँच गया। इसलिए आज जब आम आदमी भारतीय अर्थव्यवस्था को देखेगा तो निश्चित रूप से पीएम मोदी की सराहना करेगा। क्योंकि इस पैमाने पर मोदी सरकार काफी मजबूत है और जो तेज विकास की गारंटी दी गई थी उसे निभाया गया है।

महंगाई: मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान महंगाई लगातार एक चिंता का विषय रही है। गैस, पेट्रोल-डीजल, खाद्य तेल और रसोई जैसी जरुरी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई है। इसको रोकने के सरकार ने भरपूर प्रयास किये है परन्तु अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आज रसोई गैस के मूल्य में कटौती तो हुई है लेकिन पेट्रोल-डीजल के दामों में कटौती का इंतजार जनता कर रही है। आंकड़ों में ही देखें तो महंगाई अभी एक समस्या बनी हुई हैं। 2022 में, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 6.70 प्रतिशत थी, जो 2014 के बाद सबसे अधिक थी। वहीं तमाम अनुमानों का यही निष्कर्ष है कि 2024 में भी महंगाई 6 प्रतिशत से ऊपर रहेगी। हालांकि पिछले पांच महीनों में महंगाई पर लगाम लगी है। नवंबर 2023 में खुदरा महंगाई की दर 5.5 प्रतिशत रही जो अगस्त 2023 में 6.83 प्रतिशत थी। लेकिन अब सवाल उठता है कि इस मुद्दे पर जनता मुखर क्यों नहीं है? आखिर विपक्ष इसे मुद्दा बनाने में कहाँ फेल हो रहा है? असल में इस सवाल का जवाब मोदी सरकार की नीतियों में छिपा है। मुफ्त राशन, उज्जवला गैस कनेक्शन पर विशेष छूट, आयुष्मान से मुफ्त इलाज और अनेक योजनाओं ने गरीब आदमी को महंगाई के प्रभाव से बचा रखा है।

बेरोजगारी: मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बनी रही। प्रति वर्ष दो करोड़ नौकरियों का वादा सरकार की जवाबदेही मांगता रहा। इसकी गंभीरता को देखते हुए सरकार ने मिशन मोड में सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) में 10 लाख रिक्तियों को भरने का लक्ष्य रखा। इसके अलावा अर्थव्यवस्था में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर खर्च के माध्यम से नौकरियों के सृजन पर जोर दिया जा रहा है। इन सामूहिक प्रयासों का परिणाम है कि बेरोजगारी दर में गिरावट आई है। सीएमआईई के आनुसार सितंबर 2023 में बेरोजगारी दर 7.95 प्रतिशत थी, जबकि अगस्त में यह 8.20 प्रतिशत थी। जारी शीतकालीन सत्र 2023 में श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली के लोकसभा में दिए लिखित जवाब से पता चलता है कि देश में बेरोजगारी दर में गिरावट आई है।

अब इन तीनों पहलुओं का आकलन करें तो पाते हैं कि मोदी सरकार का आर्थिक प्रदर्शन पिछले कुछ वर्षों में मिश्रित रहा है। आर्थिक विकास दर में वृद्धि हुई है, लेकिन मुद्रास्फीति और बेरोजगारी एक चिंता का विषय बनी हुई है। 2024 के चुनावों के संदर्भ में इतना तो तय है कि मतदाता इन आर्थिक कारकों पर ध्यान देंगे। बेरोजगारी और मुद्रास्फीति को लेकर लोगों की आशाएं और उम्मीदें बढ़ी हैं, और इन मुद्दों पर सरकार की नीतियों को मतदाताओं के सामने स्थानांतरित करना होगा। वहीं एक सच्चाई यह है कि विपक्ष के पास आर्थिक परिस्थितियों को मुद्दा बनाने के लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं है। वर्तमान आर्थिक आंकड़े 2024 के चुनाव में मोदी सरकार को फायदा पहुंचा सकते हैं।

(लेखक फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं)

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