बारूद के ढेर पर पाकिस्तान

बारूद के ढेर पर पाकिस्तान
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अरविंद जयतिलक

आतंकवाद को प्रश्रय देने का नतीजा है कि पाकिस्तान को बार-बार खून के आंसू रोना पड़ रहा है। उसकी धरती बार-बार लहूलुहान हो रही है और आतंकियों के आगे उसकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई घुटने के बल पर है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से संबद्ध तहरीक-ए-जिहाद पाकिस्तान के आतंकियों ने पंजाब प्रांत के मियांवाली के ट्रेनिंग बेस पर हमला कर फिर साबित किया है कि बारुद के ढ़ेर पर बैठे पाकिस्तान को कभी भी तबाह कर सकते हैं। इस हमले में तीन विमान नष्ट हुए हैं और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ है। हालांकि हमले में शामिल सभी आतंकी मार गिराए गए हैं फिर भी पाकिस्तान खौफजदा है। इसलिए कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकी पहले भी पाकिस्तानी एयरबेस को निशाना बना चुके हैं। याद होगा 2015 में इन्हीं टीटीपी के आतंकियों ने खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की राजधानी पेशावर के निकट एयरफोर्स बेस बादाबेर पर हमला कर वायुसेना के 23 कर्मियों समेत कुल 42 लोगों की जान ली थी। तब टीटीपी के आतंकियों ने पाकिस्तानी दावे से इतर 50 सुरक्षाकर्मियों को मार गिराने का दावा किया था। टीटीपी के आतंकियों ने यह हमला पाकिस्तानी सेना द्वारा वजीरिस्तान में आतंकियों के सफाए के लिए चलाए जा रहे जर्ब-ए-अज्ब अभियान से नाराज होकर किया था। उस दरम्यान पाकिस्तान की सेना ने वजीरिस्तान में 2000 से अधिक आतंकियों को मार गिराया था। बदले की कार्रवाई के तौर पर टीटीपी के आतंकियों ने अटारी-बाघा सीमा पर बीटिंग रिट्रीट समारोह के दौरान भीषण आत्मघाती हमलाकर 60 लोगों की जान ली। टीटीपी ने कहा था कि यह हमला नार्थ वजीरिस्तान और खैबर इलाकों में सैन्य कार्रवाई का बदला है। उल्लेखनीय है कि टीटीपी पहले ही एलान कर चुका है कि वह जेहाद में इस्लामिक स्टेट के साथ है। मतलब साफ है कि टीटीपी और इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान को बर्बाद करने का बीड़ा उठा रखे हैं। मई, 2011 में भी आतंकियों ने कराची के एयरबेस से जुड़े नौ सैन्य अड्डा पीएनएस मेहरान पर हमला कर पाकिस्तान के दो युद्धक विमानों समेत चार इंजन वाला अमेरिकी विमान पी-3 सीएन आरियान को उड़ा दिया था। यह हमला उस समय हुआ था जब पाकिस्तान की धरती पर अमेरिका द्वारा ओसामा-बिन-लादेन को मार गिराए जाने के बाद हाई अलर्ट घोषित था। 2016 में टीटीपी से जुड़े समूह जमातुल अहरार के एक आत्मघाती हमलावर ने गुलशन-ए-इकबाल पार्क में ईस्टर मना रहे 70 से अधिक लोगों की जान ली। टीटीपी ने कहा कि यह हमला पंजाब प्रांत के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को दी गयी फांसी का जवाब है। 16 दिसंबर, 2014 को भी टीटीपी के आतंकियों ने पेशावर के सैनिक स्कूल में अंधाधुंध गोलियां बरसाकर 150 से अधिक निर्दोष छात्रों की जान ली। उस समय भी उन्होंने कहा कि यह हमला जिहादियों के परिवारों पर हमले का जवाब है। मतलब साफ है कि टीटीपी ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इन हमलों से साफ है कि पाकिस्तान में निर्वाचित सरकारों की नहीं बल्कि उन आतंकी संगठनों की चलती है जिनका मकसद पाकिस्तान में शरिया का राज कायम करना है। इन हमलों से पाकिस्तान को अहसास हो जाना चाहिए कि सांप को दूध पिलाना कितना महंगा और खतरनाक साबित होता है। यह हमला न सिर्फ पाकिस्तानी सरकार और सेना को चुनौती भर है बल्कि इस बात का भी संकेत है कि अगर पाकिस्तान 'गुड और बैड टेररिज्मÓ के खोल से बाहर नहीं निकला तो वह दिन दूर नहीं जब उसका वजूद समाप्त नजर आएगा। यह सच्चाई भी है कि आज पाकिस्तान के 65 फीसदी भू-भाग पर आतंकी समूहों का कब्जा है। कौन नहीं जानता है कि पाकिस्तान की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई जैश-ए-मुहम्मद और जमात-उद-दावा जैसे कई संगठनों को खुलकर प्रश्रय देती है। भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद इब्राहिम कराची, इस्लामाबाद और पश्चिमोत्तर प्रांत को अपनी शरणस्थली बनाए हुए है। हाफिज सईद सरीखे आतंकी भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने में पाकिस्तान के मुख्य कर्ता-धर्ता हंै। पाकिस्तान की सरकार और सेना के समर्थन-सहयोग से ही उसके संगठन ने 2001 में भारतीय संसद और 2008 में मुंबई हमले को अंजाम दिया था। इस हमले में 166 लोग मारे गए थे।

एक बात आइने की तरह साफ हो चुकी है कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रश्रय देने और स्वयं प्रभावित होने वाले देशों की कतार में शीर्ष पर है। उसकी स्थिति इराक, सीरिया और लेबनान से भी बदतर होती जा रही है। अमेरिकी संगठन स्टार्ट की मानें तो पाकिस्तान में इराक से भी अधिक हमले हो चुके हैं। देखा जाए तो इस हालात के लिए स्वयं पाकिस्तान जिम्मेदार है। इसलिए कि वह अपनी धरती को आतंकियों का सबसे सुरक्षित पनाहगाह बना चुका है। तथ्य यह भी कि विदेशी संस्थाओं से मिलने वाली आर्थिक मदद को वह अपने विकास कार्यों पर खर्च करने के बजाय भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों पर खर्च करता है। मजेदार तथ्य यह कि पिछले तीन दशक से उसके हुक्मरान दहशतगर्दी को नेस्तनाबूद करने का राग अलाप रहे हैं। लेकिन हालात सुधरने के बजाय बिगड़ते जा रहे हैं। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तानी हुक्मरानों की रीति-नीति दोगली और आंख में धूल झोंकने वाली है। पाकिस्तान की यह दलील उचित नहीं कि वह भी आतंकवाद से पीड़ित है। अभी भी उसके पास वक्त है कि वह अपनी धरती पर आतंकवाद को न फलने-फूलने दे। अन्यथा उसे बार-बार खून के आंसू रोने के लिए तैयार रहना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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