इजरायल पर फिलिस्तीनी हमले के सबक

इजरायल पर फिलिस्तीनी हमले के सबक
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डॉ. अवधेश त्रिपाठी

इजराइल, विश्व का एकमात्र यहूदी देश है जो चारों ओर से इस्लाम की जिहादी मानसिकता वाले देशों से न सिर्फ घिरा है बल्कि विश्व के सारे इस्लामिक राष्ट्र उसके विरोध में फिलिस्तीन के साथ खड़े हैं। नि:सन्देह किसी भी मान्यता के अनुयायियों में आतंकी मानसिकता रखने वाले सीमित संख्या में ही होते हैं। किन्तु यदि उस मान्यता में भिन्न मत रखने वाले की सजा मौत हो तब वह मान्यता ही अन्य लोगों के लिए विचार कर निर्णय की सीमा में आ जाती है। जिस मान्यता में इसके विरुद्ध प्रबुद्ध वर्ग तक मौन रहकर परोक्ष समर्थन करता है, तब वह विश्व की शेष मानवता के लिए घातक व चिन्तनीय है।

इतिहास साक्षी है इजराइल के नागरिकों ने अपनी योग्यता, वैज्ञानिकता, कर्मठता, राष्ट्रभक्ति, साहस, समर्पण, एकजुटता के बल पर न सिर्फ अपने अस्तित्व का संरक्षण किया है बल्कि अपनी प्रगति, समृद्धि, खुशहाली का लोहा मनवाया है। यह उस उक्ति को चरितार्थ करता है कि 'वीर भोग्या वसुन्धरा।Ó

फिर 7 अक्टूबर 2023 की उषा में ऐसा क्या हुआ ? क्यों हुआ? कैसे हुआ? आतंकवाद का जिहादी स्वरूप एक मान्यता विशेष की एकजुटता का आधार क्यों है ? इजराइल का अभेद्य सुरक्षातंत्र और श्रेष्ठतम समझा जाने वाला खुफ़ियातंत्र एकदम विफल साबित क्यों हुआ? क्या इसके पीछे- नेतृत्व की विफलता, राजनीतिक अस्थिरता, सुरक्षा के प्रति उदासीनता, दुश्मन पर भरोसा, दुश्मन की मानसिकता की उपेक्षा, स्वयं पर अतिविश्वास या फिर यह सभी कारक हैं।

वर्तमान में इजराइल में राजनीतिक अस्थिरता ने अनिश्चितता का माहौल निर्मित किया है। अशक्त नेतृत्व, दृढ़ व निर्णायक नीति बनाने में समर्थ नहीं होता। वह कामचलाऊ या कठपुतली नेतृत्व बनकर रह जाता है। अपने में उलझा, अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत नेतृत्व सुरक्षा, विदेशनीति, घरेलू अव्यवस्था में उलझकर रह जाता है। जिसका लाभ दुश्मन उठाता है।

बिनोबा ने 'ईशावास्य-वृत्तिÓ में तीन प्रकार के अंधकार बतलाए हैं -क्रियागत अंधकार (आत्मघातक आसुरी आचरण), बुद्धिगत अंधकार, हृदयगत अंधकार। इनमें से नैतिक अंधकार तो सर्वथा वर्ज्य (वर्जित) है। बौद्धिक तथा हादिक अंधकार संशोध्य है। पर यह संशोधन आत्मज्ञान के द्वारा ही सम्भव है।

श्रीलंका में हुए मुल्लाई आतंकी हमले में दो फिदायीन ऐसे भी थे जो अरबपति थे। जी हाँ, दो जिहादी, 'अहमद इब्राहिमÓ ब्रदर्स वहां के मसाला सम्राट के बेटे थे। उनकी संपत्ति अरबों में थी। उच्च शिक्षा, विदेशी गाड़ियां, महल, ऐशोआराम सब था उनके पास। लेकिन फिर भी भरी जवानी में अपनी कमर पर बम बांध के अपने आप को उड़ा डाला। किस लिए? अपने विचार के लिए। कुरान के लिए। न्यूज़ीलैंड में हुए हमले का बदला लेने के लिए। यह घटना प्रबुद्ध वर्ग और समाजशास्त्रियों के चिन्तन के लिए अपने पीछे कुछ प्रश्न छोड़ गई थी - पैसा या अच्छी शिक्षा ना आपको शिकार होने से बचा सकती है ना ही शैतान होने से।

वामपंथी बुद्धिजीवी दर्शन- आतंकवाद गरीबी व शिक्षा के अभाव का परिणाम है। यह नैरेटिव अब ध्वस्त हो चुका है। यह मान्यता भी ध्वस्त हुई है कि मॉडर्न वेस्टर्न शिक्षा आपको अतिवादी (एक्सट्रेमिस्ट) होने से बचाती है। 9/11 को अंजाम देने वाले जेहादी पश्चिमी यूनिवर्सिटीज़ में सेक्युलर लिब्रल शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी थे। श्रीलंका के अहमद इब्राहिम ब्रदर्स भी पश्चिमी शिक्षा प्राप्त मुसलमान थे। पूंजीवाद की अवधारणा कि - पैसा और विशिष्टता सुरक्षा प्रदान करती है, ध्वस्त हुआ है। दुनिया के दो सबसे बड़े पंथ ईसायत (पाश्चात्य पूंजीवादी) व इस्लाम (जिहाद) का मूल दर्शन विफल होता दिख रहा है। दुनिया को शाश्वत व स्थाई दर्शन चाहिए जो हिंसा व विनाश से मुक्त हो। मनुष्य के क्रियाकलापों, आचरण और व्यवहार का आधार उसके अपने विश्वासों और संवेदना के स्तर से होता है। जिसका निर्धारण उसकी धारणा के द्वारा होता है। धारणाओं के बनाने के मूल में उसके संस्कार, शिक्षा, परिवेश और पारिस्थितिकी तन्त्र की अहम भूमिका रहती है। संस्कारों के निर्माण में पारिवारिक और धार्मिक मान्यताओं, शिक्षा, वातावरण (वर्तमान में जिसके निर्माण में मीडिया की अहम भूमिका है) के साथ-साथ व्यक्ति की स्थिति और परिस्थिति की भी भूमिका रहती है। किन्तु संस्कारों की प्रबलता उन पर नियंत्रण रखती है। अत: हमें सभी ओर से संस्कारों को समृद्ध करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए।

किन्तु विडम्बना उस समय होती है जब संस्कारी लोगों का असंस्कारियों से मुकाबला हो। तब सारी नैतिकता, मर्यादा, आदर्श ध्वस्त हो जाते हैं। आतंक, अत्याचार, क्रूरता, अनीति से सिर्फ कृष्णनीति से ही निपटा जा सकता है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य कुछ-कुछ इसी ओर संकेत कर रहा है।

(लेखक ख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ एवं चिन्तक हैं)

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