मटर मय संसार
प्रदीप औदिच्य
इस खाऊं पीयूं दुनिया में सब कुछ है,और सब कुछ से कुछ यदि ऊपर है तो वह है मटर ।मटर क्या है सब्जी है,दलहन है, जिस भी श्रेणी में रखना हो आप रखिए पर सर्दी के ये दिन मटर के बिना अधूरे हैं। इन दिनों भारत में अचानक आप किसी भी घर में घुस जाइए, आपको डेढ़ दो किलो मटर रखी हुई मिल जायेगी।सर्दी के दिन तब तक सर्दी के नही माने जाते जब तक की मटर घर में आना शुरू ना हो जाए। पता नही इस देश में किसी और सब्जी को ऐसा वीआईपी ट्रीटमेंट क्यों नहीं मिला, जैसे मटर को मिलता है। सब्जी के किसी ठेले पर आपने पूरा ठेला गोबी या बैंगन से भरा हुआ नहीं देखा होगा। आपको विटामिन के प्रमुख स्रोत पालक या मैथी जैसे साग भी ठेले के एक कोने में रखे हुए मिल जाएंगे, लेकिन मटर के पूरा ठेला भरा हुआ बेचते देखा जा सकता है। सर्दी के मौसम में आपको कोई सब्जी कोई चीज बिना मटर के मिल जाए ऐसा संभव ही नहीं है। पोहे से लेकर पुलाव तक हरी भरी मटर ही मटर है। मटर का अपना जलवा है, हरी भरी मटर आपके खाने में स्वाद तो बढ़ाएगी ही। खाने में मटर का अलग जलवा है, उसका अपना स्थान है...।
मैं तो मटर का दर्जा बादाम से ऊपर मानता हूं। किसी के यहां पोहे में बादाम नहीं होती वह स्थान मटर के लिए ही सुरक्षित रहता है। कुछ दिन पूर्व ही एक विदेशी एजेंसी ने सब्जी की रेटिंग जारी की है, सबसे खराब सब्जी में उसने बैंगन और आलू को रखा है। मटर को हाथ लगाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई... वह अपना सारा फ्रस्टेशन बैंगन पर ही निकाल पाया।
मटर का इतिहास में कोई खास जिक्र नहीं है... अकबर बीरबल के किस्सों में ही बैगन का जिक्र है, आज उस बैगन को नकारा और खराब साबित किया कर रहा है।
खैर अपने मटर का जिक्र करें, तो पायेंगे कि चने के विकल्प के रूप में उसे अपनाया गया। आज चना तो ऊंचा स्टेट्स पा कर, बीपीएल से बाहर आ गया। बीपीएल सूची में है तो मटर।
आप सुबह पूछिए क्या बना है, आलू मटर। शाम को क्या बना है मटर भात...। मटर पुलाव, मटर टमाटर यानी मटर पहले नाम पहले आएगा। मटर आलू में शायद स्त्री जैसा नाम होने से मटर का नाम पहले फिर आलू ये पुरुष के नाम होने से पीछे रह गया होगा।
मटर को देखकर कभी भी मुझे कोई गुस्सा नहीं आता, ना मैं उस पर तंज करता हूं,
मैं जानता हूं वह मात्र मेहमान है, दो महीने की इसके बाद तो हमें फ्रीज में रखी हुई, नकली जैसी बेस्वाद ही खाना है।जो केवल सब्जी में हरी दिखे बाकी वह स्वाद उसका कैसा भी उससे क्या।
इसलिए मटर का सम्मान कीजिए ,पत्नी की तरह । जैसे पत्नी के बिना घर, घर नहीं होता, फिर भी उस पर जोक बनाए नहीं रहते। ऐसे ही मटर के बिना खाना अधूरा है लेकिन मटर पर जोक बहुत बनाते हैं।
बाजार से लौटती पत्नी के हाथ थैले देखिए,अगर बड़ा सा थैला है तो इस बात की गारंटी है कि उसमे सिवाय मटर के कुछ और हो ही नही सकता।
मेरा एक दोस्त तो अपनी पत्नी के हाथ के थैले देखकर डर जाता है । उसका कहना है कि साहब, मटर से डर नहीं लगता, डर लगता है उसको छीलने से ।
एक दिन मेरी पत्नी ने भी मुझसे ऐसा ही पूछा क्या आपका आज व्रत है, मैंने कहा हां, है। तो उसने कहा तो ठीक है आप ये मटर छील दो। उस दिन मुझे अहसास हुआ कि मेरे व्रत की परीक्षा भी मटर को सामने रखकर ही हो रही है, क्योंकि मटर सामने हो आप छीलते हुए बिना खाए रह ही नहीं सकते। मटर के ढेर में से कब हाथ में रखे दाने मुंह में चले जाए पता ही नही पड़ता। वही स्थिति है जैसे दरिया के अंदर मछली कब पानी पी लेती है, उसी तरीके से कब मटर छीलते हुए दाने मुंह के अंदर चले जाए ये आदमी को भी पता नहीं चलता।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)