कविता : बासंती बयार

कविता : बासंती बयार
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प्रो. मनीषा शर्मा

नव पल्लव, नव पुष्प

नव सुगंधित बासंती बयार,

आम्र कुंजो पर कोकिला

गा रही प्रशस्ति गान।

नवचेतना, नव प्रेरणा

नव है राग - विराग,

इठलाती बलखाती आई बसंत,

अल्हड़ सी किशोरी समान।

नव उमंग, नव तरंग

नव है ठाठ- बाट,

नए वेश में रचती प्रकृति

नये सुर और नई ताल।

नव ऊर्जा, नव श्रृंगार

नव मंत्र मुग्ध सा रूप,

प्रेम में रत अधरों पर

शर्मीली सी नव मुस्कान।

नव पल्लव, नव पुष्प

नव सुगंधित बासंती बयार,

आम्र कुंजो पर कोकिला

गा रही प्रशस्ति गान।

***

प्रो. मनीषा शर्मा

साहित्यकार व शिक्षाविद

डीन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय वि.वि.

अमरकंटक, म. प्र.

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