"राम नाम की अनहद नाद "
वेबडेस्क। कुछ दिनों से सुबह में घुलता अनुपम अनहद नाद है, फिजाओं का बदला मिजाज है, शाम में एक उजास है। मानो प्रकृति भी अपनी तरह से राम की अगुवाई में पलक पावने बिछा अपने हर एक उपादान से स्वागत में आतुर सी है।प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त होने को है। राम नाम की धुन पर हवा झूम सी रही है, कण -कण आल्हादित है, जर्रा जर्रा जरा रोशन है। परिवेश में एक अलग ही तरह की सकारात्मकता है ,ऊर्जा है, भक्ति है ,राग है।
हो भी क्यों ना कोटि-कोटि जनमानस की सैकड़ो वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त होने को आई है। चर्चाओ के बाजार में राम, अयोध्या, 22 जनवरी, प्राण प्रतिष्ठा शब्द ही तैर रहे हैं। कोई गीत लिख रहा है, कोई भजन कोई वीडियो बना रहा है। प्रत्येक दिन एक उत्सव सा मन रहा है। हर एक घर देवालय की तरह सज रहा है। हर एक मन मस्ती से सरोबार है। रंगोलिया सज रही है ,पकवान बन रहे हैं, राम धुन में बच्चा बच्चा मग्न है। 'सजा दो घर को गुलशन सा अवध में राम आए हैं', की गूंज अवचेतन मन में घर कर गई है जो लगातार गुंजित सी होती रहती है। संपूर्ण राष्ट्र राममय हो गया है। राष्ट्र ही क्यों विश्व में भी 'राम आयेंगे तो अंगना सजाऊंगी' कीअनुकुंज सुनाई दे रही है। सच ऐसा अद्भुत परिवेश इससे पूर्व कभी ना देखा ना सुना। इस राम नाम ने सबको एक सूत्र में पिरो सा दिया। हम वे भाग्यशाली लोग हैं जो इस मंगलमय वातावरण ,इस पुण्य बेला को देख पा रहे हैं ।हम इस पावन घड़ी के साक्षी बनेंगे। अहो! कितना अद्भुत सा है सब कुछ ।
जिस नाम में ही इतनी ताकत है वह स्वयं कितना अद्भुत होगा? उसके राम राज्य की अवधारणा के चिंतन मात्र से मन प्रफुल्लित सा हो जाता है। राम के चरित्र का स्मरण कर हृदय नतमस्तक सा हो जाता है ।भक्ति के सागर में गोते लगाने लगता है ।पर राम होना इतना सरल नहीं है ।धन्य है तुलसीदास जिन्होंने रामचरितमानस लिख कर इस उद्दात चरित को घर-घर पहुंचाया और राम कथा के माध्यम से राम को लोक मानस में बसाया।हिंदी के मूर्धन्य चिंतक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी तुलसी को लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए लिखा हैं 'लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके क्योंकि भारतीय जनता में नाना प्रकार की परस्पर विरोधी संस्कृतिया, साधनाएं ,जातियां ,आचार ,निष्ठा और विचार पद्धतियां प्रचलित है। तुलसी का सारा काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।'
आज राम को काल्पनिक चरित्र बताने वाले जहरीले विमर्श चलने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी अपने-अपने खेमो में छुप गए हैं। कुछ इस अवसर पर निमंत्रण पाकर भी नहीं जा रहे क्योंकि वे अभागे है। यह अवसर तो भाग्यवान को ही मिलता है।भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में संपूर्ण विश्व जानता है। राष्ट्र जिसकी एक संस्कृति होती है, परंपरा होती है एक साहित्यिक अवधारणा होती है, एक आचार - विचार, व्यवहार होता है । इस संदर्भ में राम हमारे लिए महज एक संज्ञा नही, राम भारत के प्राण है और राम का चरित्र और रामायण व रामचरितमानस हमारी संस्कृति की आत्मा है। राम लोक मानस के रोम- रोम में बसे है । उन्ही के चरित्र पर आधारित रामचरितमानस को अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बिना किसी संदर्भ के, बिना कुछ जाने कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने नफरत फैलाने वाला ग्रंथ तक कहा। इनमें राम और तुलसी के मर्म को छूने का साहस नहीं है। तुलसी का लिखा रामचरितमानस को जानने हेतु जिस भाव, बुद्धि , ह्रदय व विचारों की पवित्रता व वैश्विक चिंतन दृष्टि की आवश्यकता है उस दृष्टि को यह मूढ़मति कैसे समझ सकते है? जिस रामचरितमानस को लिखकर तुलसीदास लोक जीवन के कवि से कालजयी हो गए। इसी रचना के कारण अवतारी राम वनवासी राम हो गए जो अपनी वन यात्राओं में राक्षसों का संहार करते हुए वनवासियों का उद्धार करते रहे। केवट, शबरी, अहिल्या आदि सामान्य जन के घर में जाकर उनकी सुध लेना, उनके हालचाल पूछना, उनके साथ प्रेम पूर्वक बैठना यह राम के विराट व्यक्तित्व को,समाज के प्रत्येक व्यक्ति के प्रति उनके प्रेम भाव को बताता है। श्रीराम ने वनवास के दौरान विभिन्न वर्गों के मध्य आपसी प्रेम का,विश्वास का,आदर व सम्मान के भाव का संचार किया। सामाजिक समरसता का संदेश दिया। केवट जिसे आज वंचित समुदाय का माना जाता है उसे गले लगाया, शबरी के जूठे बैर खाये , निषादराज गुह को ह्रदय से लगाकर प्रेम व सम्मान दिया।सामाजिक समरसता का मूलमंत्र समानता है और राम ने अपने सम्पूर्ण जीवन में इसका पालन किया ।
यह वनवासी राम अयोध्या का राज सिहासन एक तरफ छोड़कर लोगों के दिल में राज करता है और लोग उन्हें परमब्रह्मा का साक्षात स्वरूप मान पूजने लगते हैं। राम जैसा लोकनायक जिन्होंने चमत्कारों से नहीं अपने चरित्र से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई और नायक के रूप में अवतरित हुए। श्रीराम ने गिद्ध का पिता के समान श्राद्ध किया। राम ने भील,कोल,किरात,आदिवासी वनवासी, गिरीवासी, कर्पिश व अन्य कई जातियों के लोगों के साथ रहकर और इन्हीं के साथ से रावण से युद्ध कर जीता । जिस राम का चरित्र लोक को आदर्शों की शिक्षा देता है, जो मानव को मर्यादा व कर्तव्यों का पाठ पढ़ाता है, जो मनुष्य को संघर्ष व धैर्य की प्रेरणा देता है ऐसे राम और उनका चरित्र स्तुत्य है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम राम चरित्र ,उनके आदर्शों और उनके मूल्यों को भी अपने जीवन मे मन, कर्म और वचन से स्थान दे। तभी राम के साथ रामराज्य भी आयेगा।
आओ हम मिलकर इस पुण्य बेला के साक्षी बने।'ऐ री सखी मंगल गाओ री,धरती अम्बर सजाओ री'।
जय श्री राम
प्रोफसर मनीषा शर्मा
अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष
पत्रकारिता एवं जनसंचार
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक