जनजाति अस्मिता के पुनर्जागरण का अभियान
अस्मिता का आशय गौरव, आत्मसम्मान से है। अस्मिता का बोध होने का तात्पर्य है कि अगर किसी व्यक्ति या समुदाय के राष्ट्र,जाति, नाम, क्षेत्र, धर्म, वंश, भाषा, व्यवसाय आदि पहचानों को मिटाने या हीन साबित करने की कोशिश की जाती है तो वह व्यक्ति या समुदाय अपना सर्वस्व न्योछावर कर इस पहचान को बचाने की चेष्टा करता है जो बिरसा मुंडा ने की थीं। 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची जिले के उलिहातु गांव में जन्मे बिरसा मुंडा ने मात्र 25 वर्ष की आयु में स्वधर्म और स्वायत्तता के लिए अपना जीवन राष्ट्र पर समर्पित कर दिया। उनका संघर्ष स्वधर्म का जागरण है, उनका युद्ध केवल जल, जंगल, जमीन तक सीमित नहीं था बल्कि आदिवासी अस्मिता, संस्कृति, परंपरा और स्वधर्म की स्थापना के साथ स्वराज प्राप्त करने का था। बिरसा मुंडा ने उद्घोष किया 'अबुआ दिशुम रे अबुआ राजÓ अर्थात अपनी धरती अपना राज इस संकल्प शक्ति से स्वधर्म का असाधारण आंदोलन खड़ा कर दिया। यह आंदोलन आदिवासी के अस्मिता उसकी पहचान को मिटाने वाले शोषण और अन्याय के प्रतिकार का प्रतीक बना जिसने बिरसा मुंडा को 'धरती आबाÓ बना दिया। अपने धर्म संस्कृति के प्रति गहरी आस्था और जुड़ाव के कारण उनको समाज ने भगवान की तरह पूजा।
आदिवासियों का समृद्धशाली इतिहास रहा है। उनकी गौरव गाथाएं आज भी स्थानीय लोकगीत और लोकोक्तियों में देखने को मिलती हैं लेकिन यह विडंबना देखिए कि पूर्व सरकारों का कभी इस ओर ध्यान ही नहीं गया। आदिवासियो के इन महान क्रांतिकारी योद्धाओं को भुला दिया गया जिसकी बड़ी कीमत आदिवासी समाज ने चुकाई है। वहीं जनजाति समाज के अस्तित्व को पुन: जाग्रत करने हेतु वर्तमान भारत सरकार ने जनजाति समाज के लिए जो किया है वह आने वाले वर्षों में प्रेरणा का काम करेगा। आज़ादी के अमृत काल में सरकार ने देश दुनिया को बता दिया कि जनजाति प्रतिरोध आंदोलन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न अंग है।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर 2021 को 'जनजाति गौरव दिवसÓ की घोषणा करके देश के नागरिकों को यह बता दिया कि जनजाति समाज के योगदान को भुलाया ना जाए और उनका पूरा सम्मान किया जाए इसीलिए इस आयोजन के नाम में 'गौरवÓ शब्द का समावेश किया गया। बिरसा मुंडा का संपूर्ण जीवन प्रेरणा पूर्ण है, देश, धर्म, संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के प्रणेता भगवान बिरसा की जयंती जनजाति समाज की अस्मिता के पुनर्जागरण का दिन है । उनकी जयंती को 'जनजाति गौरव दिवसÓ के रूप में मनाना जनजाति समाज के साथ साथ सभी देशवासियों के लिए आत्म गौरव का दिन है। यह अवसर है आदिवासी समाज के त्याग और देश के लिए किए गए समर्पण को जन-जन तक पहुंचाने का, जनजाति नायकों के योगदानों को सम्मान देने का। जनजातीय गौरव की राष्ट्रीय चेतना विकसित हो सके इसलिए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात में इस आयोजन को हर गांव तक मनाने का आह्वान किया। जिसका उद्देश्य है भगवान बिरसा मुंडा के संपूर्ण जीवन को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत कर 'जनजाति गौरव दिवसÓ के दिन समाज में एक वैचारिक क्रांति का सूत्रपात हो।
(लेखिका जनजातीय प्रकोष्ठ राजभवन, भोपाल मप्र की सदस्य हैं)