सफला एकादशी व्रत से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है
सफला एकादशी व्रत पौष महीने की कृष्ण पक्ष में किया जाता है। इसके पहले मोक्षदा एकादशी का व्रत था। सफला एकादशी इस वर्ष का प्रथम एकादशी व्रत है। सफला एकादशी का व्रत 07 जनवरी रविवार पावन दिन को है। इस एकादशी व्रत से सुंदर फल की प्राप्ति होती है तथा मनुष्य जीवन सफल हो जाता है। लोक-परलोक संवर जाता है। यश, कीर्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति निश्चित होती है। अत: इस एकादशी व्रत को अत्यंत श्रद्धा-भक्ति से युक्त होकर करना अति लाभदायी व पुण्यदायी है। दान, यज्ञ, तीर्थ व तप के फल से ज्यादा महात्म्य इस एकादशी व्रत का है। इस एकादशी व्रत के देवता श्रीनारायण हैं। इस व्रत को करने वाला भक्त श्रीनारायण का सबसे प्रिय होता है। महाराज युधिष्ठर के पूछने पर इसके महात्म्य को भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं और इसका वर्णन ब्रहमाण्ड पुराण में है कि जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेध यज्ञ, नदियों में गंगोत्री, देवताओं में विष्णु उसी प्रकार समस्त व्रतों मे एकादशी व्रत सर्वश्रेष्ठ है। पांच हजार वर्षों की तपस्या का पुण्य केवल एक एकादशी व्रत से मिल जाता है। चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक एक राजा था। उसके चार पुत्रों में बड़े पुत्र का नाम लुम्पक था। वह बहुत दुष्ट और पापी था। परस्त्री, वेश्यागमन व कुकर्मों में उसका मन लगता था। वह ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य सभी की निंदा करने में लगा रहता था। डर से कोई राजा को इसकी सूचना नहीं देता था। अंतत: उसका भंडाफोड़ हो गया। उसकी गलत करतूत का जब पता लगा तो राजा ने उसे राज्य से निकाल दिया। वह मजबूरी में जंगल में चला गया व राहगीरों की लूटपाट करने लगा। मांस व फल खाकर वह अपना पेट भरने लगा। उस वन में एक पीपल का वृक्ष था, जो सबका पूजनीय था। लुम्पक उस पेड़ के नीचे ही रहता था। एक दिन उसकी तबीयत खराब हो गई। ठंढ के कारण वह बेहोश हो गया। उस दिन एकादशी तिथि थी। अगले दिन दोपहर तक वह ऐसे ही पड़ा रहा। धूप निकलने पर दोपहर को किसी प्रकार उठा। कुछ फल इकट्ठा किया। मांस खाने की प्रवृति के कारण उससे फल नहीं खाया गया। इसलिए फल को मन ही मन भगवान विष्णु को अर्पण कर पीपल वृक्ष की जड़ में रख दिया। बीमारी व भूख से उसे सारी रात नींद नहीं आई। लुम्पक के साथ जब ये घट रहा था तो उस दिन सफला एकादशी थी। निराहार व्रत एवं रात्रि जागरण करके व्रत करने से भगवान मधुसूदन उस पर बहुत प्रसन्न हुए। द्वादशी के दिन प्रात: काल एक दिव्य अश्वविमान उसके पास आया व आकाशवाणी हुई-हे वत्स! इस सफला एकादशी के प्रभाव से आपको राज्य प्राप्त होगा। आप घर जाओ और राजसुख भोगो। वह राज्य लौटा और पिता को सारी बात बताई। पिता जी ने उसका स्वागत किया। कालक्रम से वह वहां का राजा बना। समय पर उसका सुंदर कन्या से विवाह हुआ और उसके घर आज्ञाकारी पुत्र ने जन्म लिया। धार्मिक पुत्र प्राप्त करके लुम्पक ने राज्य का सुख भोगा। सफला एकादशी व्रत के फल से मानव इस लोक में यश तथा परलोक में मोक्ष की भी प्राप्ति कर सकता है। इस व्रत द्वारा अश्वमेघ यज्ञ व राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।