विक्रम के पराक्रम से हतप्रभ दुनिया के वैज्ञानिक
जब दुनिया के लोग अपनी आबरु बचाने के लिए पेड़ों की छालों से, पत्तों से अपने शरीर को ढ़कते थे तब भारत में सभ्यता का सूर्य अपने पूरे यौवन के साथ चमकता था। जब अक्षरों से निपट अनजान थी दुनियाँ, अक्षरों का अकार भी नहीं जान पाये थे ये कबीले, तब सबसे प्राचीनतम् ग्रंथ ऋगवेद को भारत ने दुनिया को भेट किया था। तक्षशिक्षा, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी तथा काशी जैसे विश्व प्रसिद्ध महाविद्यालय हमारे पास थे, जहाँ साठ देशों के दस हजार से अधिक विद्यार्थी आचार्यो, उपाध्यायों के चरणों में बैठकर जीवन के सूत्र खोजते थे। संगीत और सुरों का संसार जब निपट खामोश था तब भारत में दीपक राग से दीपक जल उठते थे। जब भारत के संगीतज्ञ मेघ राग गाते थे तब धरती पानी से अघाती थी। भारत में करोड़ो लोग आरती-आराधना में विश्व के कल्याण के लिए भगवत सप्ताह से यही प्रार्थनाएं दौहराते थे-
सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्चन्तु, मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्।।
आज दुनिया इस बात को मानती है कि भारत ने वह चमत्कार कर दिखाया है जो दुनियां में कोई देश आज तक कर नहीं सका। चन्द्रमा के दक्षिणी धु्रव की सतह पर भारत के वैज्ञानिकों ने चन्द्रयान-3 को स्थापित कर भारत का तिरंगा चांद की छाती पर गाड़ दिया है। आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि भारत के पास विक्रम है जो अपने पराक्रम से चन्द्रमा को मुट्ठी में कैद करने की ताकत रखता है। भविष्य में सूर्ययान भी हमारा होगा, हम मंगल पर भी होगें। पूरा आसमान भारतीय वैज्ञानिकों के कदमों में होगा।
आज भारत तारों की दुनिया में कदम रखने वाला चौथा देश बन गया है। भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी ने कहा है कि यह उपलब्धि केवल भारत की नहीं है विश्व की समृद्धि, शांति एवं मानवता की रक्षा के लिए भारत का दुनियां को दिया गया नायाब उपहार है। भारत की स्वाधीनता की तीन चौथाई सदी बीतने के बाद भारत में अमृतकाल में प्रवेश किया है और इस अमृतकाल के शुरुआती दौर में ही भारत के वैज्ञानिकों ने असंभव सा लगने वाला कार्य संभव कर दिखाया है। इतिहास स्वयं को दोहराता है इतिहास में कुछ खास पल, कुछ विशेष तारीखें हमेशा के लिए दर्ज हो जाया करती हैं। 23 अगस्त 2023 की तिथि दुनियां के इतिहास में नए भारत के उदय के रुप में अंकित हुई है।
इसरो के चीफ एस.सोमनाथ के हवाले से अखबार में एक खबर छपी थी उसमें वह कहते हैं कि विज्ञान का सम्पूर्ण ज्ञान वेदों से आया है। वह चाहे एलजेबरा हो या अर्थमेटिक हो भारत की विडम्बना यह है कि यहां का लेफ्ट लिबरल ईको सिस्टम आज तक यही सिद्ध करने में लगा रहता है कि वेद की ऋचाऐं तो गड़रियों के गीत हैं। देववाणी संस्कृत का अध्ययन करने वाले वेदपाठी विद्यार्थियों को वे पोंगा पंडित कहते रहे। आज भी यह ईको सिस्टम संस्कृत को मृतभाषा सिद्ध करने में पूरी ताकत के साथ लगा हुआ है। दुनिया के मशहूर साईंटिस्ट अलवर्ट आईस्टीन की इस बात से भी लेफ्ट लिबरल सहमत नहीं दिखते हैं जब उन्होंने कहा था की दुनिया को भारत को ऋणी होना चाहिए जिसने विश्व को गिनना सिखा दिया। अलवर्ट आईस्टीन आगे लिखते हैं भारत ने दुनियां को गिनती से परिचित नहीं कराया होता तो आज जो शोध हो रहे हैं वह शायद नहीं हो पाते। दुनिया नवाचारों से परिचित नहीं होती। आज भारत की वैज्ञानिक उपलब्धि पर बड़े-बड़े वैज्ञानिक गर्व महसूस करते हैं लेकिन भारत में मैकाले-मार्क्स की जूठन पर पलने वाले कथित बुद्धजीवियों की इन उपलब्धियों में भी नुुक्ताचीनी करने की आदत नहीं गई है। यह वही नाकारा वामपंथियों का गिरोह है जिसे भारत के पराक्रम पर भरोसा नहीं है। जब भारत की सेना सर्जीकल स्ट्राईक, एयर स्ट्राईक करती है तो यही गैंग भारत की सेना से सबूत मांगने लग जाते हैं। ये स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि भारत के वैज्ञानिकों ने चार वर्ष में इतनी बड़ी कामयाबी का परचम कैसे लहरा दिया? चन्द्रयान-3 की चन्द्रमा की सतह पर लैडिंग केवल किसी एक संगठन की कामयाबी की कहानी भर नहीं है यह तो भारत की पुर्नप्रतिष्ठा का गौरवगान है।
आज भारत के सामने उपब्धियों की लम्बी फेहरिस्त है वहीं आफतों का अम्बार भी है। कितना अजीब लगता है जब एक प्रदेश की सत्ता पर काबिज मंत्री सनातन को मिटाने का अहंकार पाल लेता है। कोई पारलीयामेन्टेरियन भारत माता का कत्ल हो जाने के बाद सार्वजनिक मंच से बोलने की हिम्मत करने लगता है। कोई हिन्दू धर्म को धोखा बताकर इस देश के 110 करोड़ हिन्दूओं को रोज गाली देता है। यह सब कुछ अनायास नहीं है यह सब सायास है और योजनाबद्ध हो रहा है। इन जुमलों के मिजाज को आज समझने की जरुरत है। चीन की चासनी चांटकर पले-बढ़े इस मैकाले-मार्क्स बिरादरी को बिना बिलम्ब के ईलाज की आवश्यकता होगी अन्यथा यह भारत के लिए शुभ संकेत नहीं होगा।
(लेखक सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान मध्यप्रदेश के प्रादेशिक सचिव हैं)