मध्य पूर्व में सन्तुलन की विशिष्ट नीति
गत 7 अक्टूबर को हमास लड़ाकों द्वारा इजरायली नागरिकों के नरसंहार के बाद जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद की निंदा करते हुए इजारायल के साथ एकजुटता जाहिर की, वह भारत की मध्य-पूर्व (पश्चिम एशिया) में बैलेंसिंग एक्ट पॉलिसी को ही निरुपित करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को भरोसा दिया कि इस कठिन घड़ी में भारत उनके साथ है। साथ ही भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि भारत फिलिस्तीन के संप्रभु और स्वतंत्र राज्य की स्थापना के लिए लंबे समय से अपने समर्थन में विश्वास करता है।
मतलब साफ है कि भारत आतंकवाद के हर रुपों की खिलाफत के साथ प्रत्येक राष्ट्र की संप्रभुता का भी पक्षधर है। याद होगा 2017 में प्रधानमंत्री मोदी फिलिस्तीन की संप्रभुता का सम्मान करते हुए यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने के अमेरिका और इजरायल के प्रयास के खिलाफ मतदान कर चुके हैं। जबकि दुनिया को अच्छी तरह पता है कि भारत का अमेरिका और इजरायल के साथ कितना मधुर संबंध है। बावजूद इसके भारत का फिलिस्तीन की संप्रभुता के साथ खड़ा होना एक बड़ी बात है। जानना आवश्यक है कि 2017 में प्रधानमंत्री मोदी इजरायल का दौरा करने वाले पहले प्रधानमंत्री बने। उनकी यात्रा के बाद 2018 में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भारत की यात्रा की। इन मजबूत संबंधों के बावजूद भी भारत इजरायली-अमेरिकी गोलबंदी में शामिल होने के बजाय बैलेंसिंग एक्ट पॉलिसी पर कायम है। यह इसलिए भी आवश्यक है कि मध्य-पूर्व क्षेत्र के सभी देशों के साथ भारत के मधुर संबंध हैं।
मौजूदा समय में भारत मध्य-पूर्व में एक बड़ा पॉवर प्लेयर बनकर उभरा है। हाल ही में अमेरिकी मैगजीन 'फॉरेन पॉलिसीÓ के एक आलेख में कहा गया है कि भारत इजरायल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ गहरे रिश्ते स्थापित कर इस क्षेत्र में रुस और चीन के प्रभाव को कम कर दिया है। आलेख में यह भी कहा गया है कि बदल रहे वर्ल्ड ऑर्डर में भारत की जगह बदल रही है और अब अमेरिका इस नए पैटर्न को लेकर ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। इसलिए कि मध्य-पूर्व में अब अमेरिका के साथी देशों के लिए भारत भी एक सशक्त व शानदार विकल्प बन चुका है। गौर करें तो मध्य-पूर्व के सभी 18 देशों- इजरायल, फिलिस्तीन, आर्मेनिया, अजरबैजान, बहरीन, साइप्रस, जॉर्जिया, इराक, ईरान, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, ओमान, कतर, सऊदी अरब, सीरिया, तुर्की संयुक्त अरब अमीरात और यमन के साथ भारत के पगाढ़ संबंध हैं। इस क्षेत्र के तकरीबन 8 मिलियन भारतीय नागरिक यहां की अर्थव्यवस्था और विकास के महत्वपूर्ण कारक हैं। यह क्षेत्र भारत के विदेश नीति के रक्षा संबंधित पहलुओं को भी प्रभावित करता है। मध्य-पूर्व में भारत का हित केवल तेल और गैस तक ही सीमित नहीं है। भारत के लिए इस क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने और अपने घरेलू निर्यात को प्रोत्साहित करना भी शीर्ष प्राथमिकता में है। इस क्षेत्र में मुख्य रुप से इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, ईरान और कतर सामरिक शक्तिशाली देश हैं जिनके साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ होना आवश्यक है।
इजराइल की बात करें तो दोनों देश प्रतिरक्षा और आर्थिक संबंधों को लगातार गति दे रहे हैं। भारत इजरायली हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार देश है। भारत रक्षा हार्डवेयर के आयात में विश्व के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। जबकि इजरायल इसका एक प्रमुख निर्यातक है। रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले वर्षों में इजरायल भारत को रक्षा आपूर्ति में रुस को पीछे छोड़ देगा। उसका कारण यह है कि इजरायल के पास अधिकांशत: रुसी रक्षा उपकरणों को उन्नत करने की तकनीक उपलब्ध है। आज इजरायल उच्च तकनीक वाले रक्षा उपकरणों के आपूर्तिकर्ता के रुप में स्वयं को एक बड़े विकल्प के रुप में उभार लिया है।
भारत का संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ भी बेहतर संबंध हैं। याद होगा गत वर्ष पहले संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यूएई के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ जायदÓ से नवाजा। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भाई भी बताया जो कि दोनों देशों के परवान चढ़ते रिश्ते को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है। प्रधानमंत्री मोदी को लेकर यूएई के दिल में कितना सम्मान है, वह 2018 में मोदी की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा के दौरान देखने को मिला जब यूएई ने दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा समेत दुबई फ्रेम, एडनॉक बिल्डिंग एवं एमिरेट्स पैलेस को तिरंगे के रंग से रंग दिया था। प्रधानमंत्री ने अबू धाबी में व्यापार जगत के प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का मकसद स्पष्ट करते हुए वहां निवेश करने को प्रेरित किया। साथ ही प्रधानमंत्री ने भारतीय रुपे कार्ड को लांच किया। इस तरह पश्चिम एशिया में यूएई पहला देश बन गया है जहां रुपे कार्ड चल रहा है। गौर करें तो दोनों देशों के बीच बढ़ती प्रगाढ़ता कई मायने में महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में भारत का ईरान के साथ भी बेहतर संबंध स्थापित हुआ है। ईरान विश्व में तेल एवं गैस के व्यापक भंडारों वाले देशों में से एक है। मौजूदा समय में भारत को अपनी सकल घरेलू उत्पाद की दर 8-9 प्रतिशत बनाए रखने के लिए ऊर्जा की सख्त आवश्यकता है। इसे ईरान पूरा कर रहा है। दूसरी ओर भारत भी ईरान को जरुरत की वस्तुएं उपलब्ध कराने की वचनबद्धता को निभा रहा है। चाबहार समझौते के आकार लेने से अब भारत द्वारा ईरान को निर्यात की जा रही वस्तुएं मसलन चावल, मशीनें एवं उपकरण, धातुओं के उत्पाद, प्राथमिक और अर्धनिर्मित लोहा, औषधियों एवं उत्तम रसायन, धागे, कपड़े, चाय, कृषि रसायन एवं रबड़ इत्यादि में तेजी आयी है। दोनों देश आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार देने हेतु कई परियोजनाओं को आकार दे रहे हैं। इनमें ईरान-पाकिस्तान-इंडिया गैस पाइप लाइन परियोजना, एलएनजी की पांच मिलियन टन की दीर्धकालीन वार्षिक आपूर्ति, फारसी तेल एवं गैस प्रखंड का विकास, दक्षिण पार्श गैस क्षेत्र और एनएनजी परियोजना विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं। ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइप लाइन को लेकर कई बार त्रिपक्षीय बैठकें हो चुकी है। हाल के वर्षों में भारत और सऊदी अरब दोनों का एक-दूसरे पर भरोसा बढ़ा है। अब दोनों देश पुरानी धारणाओं के खोल से बाहर निकलकर संबंधों को एक नया आयाम दे रहे हैं। सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार साझीदार देश बन चुका है। ऊर्जा के एक बड़े स्रोत के रुप में भी सऊदी अरब भारत के लिए मुफीद है। ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों का एक महत्वपूर्ण आयाम है और दोनों पक्ष युक्तिसंगत ऊर्जा भागीदारी की दिशा में कार्यरत हैं। इसमें सऊदी अरब द्वारा भारत को निरंतर कच्चे तेल की दीर्घकालीन आपूर्ति उसके ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं की आपूर्ति सम्मिलित है। भारत और सऊदी अरब के ऊपरी धारा और निचली धारा के तेल और गैस क्षेत्रों में सहयोग और संयुक्त उद्यम एवं गैस आधारित उर्वरक संयंत्र के भारत और सऊदी के बीच संयुक्त उद्यम को स्थापना इत्यादि सम्मिलित है। इसके अलावा तथ्य यह भी कि हम कच्चे तेल की अपनी आवश्यकता का लगभग 15 से 19 प्रतिशत सऊदी अरब से आयात करते हैं। इस निर्भरता को बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच रिश्तों में लगातार मजबूती आ रही है। गत वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कतर की यात्रा कर 'पश्चिम की ओर देखोÓ की कुटनीति को एक नया आयाम दिया। कतर विश्व का सबसे बड़ा तरल प्राकृतिक गैस (एनएनपी) का निर्यातक है। भारत इस तथ्य से अच्छी तरह अवगत है कि उच्च वृद्धि दर बनाए रखने के लिए ऊर्जा सुरक्षा बेहद आवश्यक है। भारत की इस आवश्यकता की पूर्ति कतर ही कर सकता है। जानना आवश्यक है कि कतर के साथ भारत का दीर्घावधि समझौता है। इसके तहत वह भारत को प्रतिवर्ष 7.5 मिलियन टन तरल प्राकृतिक गैस उपलब्ध कराता है। इसी तरह भारत का पश्चिम एशिया के अन्य देशों के साथ भी रिश्ते प्रगाढ़ हैं। ऐसे में भारत के लिए बैलेंसिंग एक्ट पॉलिसी बेहद आवश्यक है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)