श्रीराम मंदिर: सांस्कृतिक-आर्थिक पुनरुत्थान का प्रतीक

श्रीराम मंदिर: सांस्कृतिक-आर्थिक पुनरुत्थान का प्रतीक
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बलबीर पुंज

उमड़ते सांस्कृतिक जनज्वार के बीच 22 जनवरी को भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला की दिव्य मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा पूर्ण हो गई। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच यह पवित्र अनुष्ठान केवल बहुप्रतीक्षित मंदिर का ही नहीं हुआ, अपितु यह अपने भीतर सभ्यतागत नवजागरण और आर्थिक पुनरुद्धार को भी समेटे हुए है। यह स्वतंत्र भारत में जारी वि-औपनिवेशीकरण और हमारी मानसिक दासता की शताब्दियों पुरानी बेड़ियों के टूटने का शक्तिशाली प्रतीक भी है। यह देश में सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रस्थान बिंदु है। आज भारत सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान पर है। क्या इन सभी उपलब्धियों और पुनर्निर्मित श्रीराम मंदिर के बीच कोई संबंध है?

यह प्रामाणिक रूप से स्थापित है कि जब भारत पर विदेशी आक्रांताओं का हमला नहीं हुआ था, तब यह भूखंड दुनिया में आर्थिक रूप से सबसे समृद्ध और विकसित था। अर्थात— जब भारत विशुद्ध रूप से अपनी मौलिक सनातन परंपरा से ऊर्जा प्राप्त कर रहा था, तब बकौल ब्रितानी इतिहासकार एंगस मैडिसन, वैश्विक आर्थिकी में भारत का योगदान सर्वाधिक 27-34 प्रतिशत था। कालांतर में इस्लाम और ईसाइयत के मजहबी हमलों के बाद यह हिस्सेदारी सिकुड़कर 1947 में 2 प्रतिशत से भी नीचे चली गई। रही सही कमर पं. नेहरू की वाम-समाजवादी नीतियों ने तोड़ दी। वर्तमान भारत जिस आमूलचूल परिवर्तन को अनुभव कर रहा है, उसमें 1991 में वामपंथ के वैश्विक पतन के बाद का कालखंड (बाबरी ढांचा विध्वंस सहित) महत्वपूर्ण है। जब वर्ष 1996 और 1998 संसदीय अंक-गणित में विफल होने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राजग-1 ने 1999-2004 के बीच अपना कार्यकाल पूरा किया, तब देश में वि-औपनिवेशिकरण प्रक्रिया को गति मिली। उदाहरणस्वरूप, 1947-1998 तक लोकसभा में वार्षिक केंद्रीय बजट सायंकाल पांच बजे में प्रस्तुत किया जाता था। ऐसा इसलिए था, क्योंकि साढ़े पांच घंटे का अंतर होने के कारण जब दिल्ली में शाम होती है, तब लंदन में पूर्वान्ह या मध्यान्ह होता है। संक्षेप में कहें, तो यह विशुद्ध रूप से अंग्रेजी साम्राज्य की सुविधा हेतु था, जिसे लगभग 50 वर्षों तक स्वतंत्र भारत की सरकारों ने ढोया। आजाद भारत के इतिहास में पहली बार 1999 में सुबह 11 बजे में वार्षिक बजट प्रस्तुत किया गया। इसी तरह कालांतर में अन्य औपनिवेशिक अभ्यासों को समाप्त किया गया, जिसमें भारतीय नौसेना के ध्वज में मजहबी सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटाकर वीर शिरोमणि छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना का प्रतीक लगाना, इंडिया गेट पर 'राजपथÓ का नाम 'कर्तव्यपथÓ करना और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति स्थापना इत्यादि शामिल है।

भारत— वर्ष 2014-15 में दुनिया की दसवीं बड़ी अर्थव्यवस्था था, जो अब पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। आशा है कि 2030 तक भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), जापान और जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वर्तमान वित्तवर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भारत ने 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की है। भारतीय एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध शेयरों का मूल्य 22 जनवरी को 4.33 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंचने से भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा शेयर मार्केट बन गया। बोस्टन कंसल्टिंग गु्रप की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सुपरमार्केट में 'मेड इन इंडियाÓ उत्पाद तेजी से देखे जा रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में लाभार्थियों को कई जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ, शीर्ष स्तर पर बिना किसी भ्रष्टाचार के सीधा पहुंचने से 13.5 करोड़ भारतीयों को गरीबी से बाहर निकाला गया है। अमेरिकी निवेश कंपनी गोल्डमैन सैश की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में समृद्ध वर्ग का आकार निरंतर बढ़ रहा है। वैश्विक मोबाइल निर्माण के मामले भारत दूसरे, तो वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री में तीसरे पायदान पर है। विज्ञान, तकनीक, बुनियादी ढांचा विकास और औद्योगिक सफलताएं दर्ज कर रहा है।

ब्रितानी मीडिया संस्था रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण, घरेलू आय और ऊर्जा खपत में महत्वपूर्ण तेजी के कारण भारत का आर्थिक विकास निर्णायक चरण में है। स्वतंत्र भारत की स्वर्णिम सफलता, देश की दो बड़ी विमानन कंपनियों— एयर इंडिया और इंडिगो द्वारा किए गए दुनिया के सबसे बड़े 970 विमान सौदे से भी इंगित होती है। भारत की अध्यक्षता में पिछले वर्ष देशभर में आयोजित सफल जी-20 बैठकें भी दुनियाभर में देश की बढ़ती प्रमुखता और दबदबे को रेखांकित करती हैं।

वैश्विक कूटनीति और ठोस आर्थिक विकास के साथ भारत की सांस्कृतिक धरोहर और उसकी सभ्यता, विश्वभर में भावनात्मक सम्मान और मान्यता पा रहे हैं। योग और आयुर्वेद ने वैश्विक स्वीकृति प्राप्त की है। 2015 से प्रत्येक वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, तो आठ देशों में 50 से अधिक आयुर्वेदिक उत्पादों को पंजीकृत किया गया है। यह कोई संयोग नहीं है कि भारतीय मूल के 25 से अधिक व्यक्ति, प्रामाणित वैश्विक निगमों और संगठनों के प्रमुख हैं। अपार आर्थिक संभावनाएं और अन्य क्षेत्रों में धाराप्रवाह उपलब्धियां उस दृष्टिकोण का परिणाम है, जिसमें आत्म-सम्मान, आत्म-चिंतन और आत्म-आत्मविश्वास है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जून 2014 को पहली बार लोकसभा में भाषण दिया था, तब उन्होंने कहा था, '1,200 वर्ष की गुलामी की मानसिकता हमें परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊंचे व्यक्ति मिले, तो सिर ऊंचा करके बात करने की हमारी ताकत नहीं होती है... कभी कभार चमड़ी का रंग भी हमें प्रभावित कर देता है।Ó स्पष्ट है कि भारत बीते 10 वर्षों में उसी गुलाम चिंतन को तेजी से पीछे छोड़ रहा है।

सच तो यह है कि स्वतंत्रता के बाद पहली बार, विशेषकर मई 2014 के बाद देश गहरी नींद से बाहर आ रहा है, मौलिक रचनात्मक क्षमता पुन: जागृत हो रही है, प्राचीन सभ्यतागत लोकाचारों के साथ देश के गौरवशाली अतीत को देश के साथ फिर से जोड़ा जा रहा है। इसलिए पुनर्निर्मित श्रीराम मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा, काशी विश्वनाथ धाम का नवीनीकरण, उज्जैन में महाकाल मंदिर का पुनरुद्धार, नई संसद में संगोल की स्थापना, धारा 370-35ए का संवैधानिक क्षरण होने के बाद कश्मीर में सामान्य स्थिति की बहाली, चंद्रयान-3 की सफलता, वैश्विक खेलों में देश का सराहनीय प्रदर्शन, भारत का एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरना एक-दूसरे के साथ गहराई से जुड़े हैं।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार एवं पूर्व राज्यसभा सांसद हैं)

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