सूर्योपासना का लोकरंजित पर्व

सूर्योपासना का लोकरंजित पर्व
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मुकेष ऋषि

छठ का प्रादुर्भाव षष्ठी तिथि से हुआ है। भारतीय परंपरा में सूर्य षष्ठी का पर्व सविता अर्थात सूर्य देवता के उपासकों को भौतिक व मानसिक अनुदान-वरदान बांटने वाला अत्यंत फलदायी सुअवसर माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार षष्ठी तिथि को खगोलीय परिवर्तन के कारण सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में आने लगती हैं। ऐसे में मान्यता है कि इस पर्व के अनुष्ठान से सूर्य की पराबैगनी किरणों के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा होती है। हमारे ऋषि आंतरिक चेतना के ही नहीं, अपितु बाह्य प्रकृति के भी मर्मज्ञ थे। इसीलिए उन्होंने सूर्य को अर्घ्य देने का विधान बनाया था। छठ पर्व पर उदय व अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। लोक परंपरा के अनुसार, चार दिवसीय इस आयोजन का शुभारंभ 17 नवंबर से हो रहा है और समापन 20 नवंबर को होगा। चार दिवसीय आयोजन के पहले दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को पूरे घर की विशेष रूप से साफ-सफाई कर छठ व्रत स्नान कर 'नहाय-खायÓ के रूप में मनाया जाता है। दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे 'खरनाÓ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेेने के लिए आसपास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। इस प्रसाद में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्टा और घी की विशेष रोटी बनाई जाती है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में ठेंकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं। चढ़ावे के रूप में फल भी छठ प्रसाद में शामिल होते हैं। छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी, पवित्रता और लोकपक्ष है। इस पर्व के लिए न भव्य मंदिरों की जरूरत होती है, न ऐश्वर्ययुक्त मूर्तियों की। बांस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बरतनों, गन्ने का रस, गुड़ चावल और गेहूं जैसी प्राकृतिक वस्तुओं से निर्तित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर यह महापर्व लोक जीवन की सोंधी सुगंध बिखेरता है। जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई सहज-सरल उपासना पद्धति इसकी खासियत है, जिसके केंद्र में हैं किसान और ग्रामीण जीवन। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है, न पंडित-पुरोहित की। कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व कई मायनों में खास है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र के ग्राम्य अंचलों में गहरी आस्था के साथ मनाया जाने वाला सूर्योपासना का यह लोकपर्व बीते कुछ सालों में समूचे देश ही नहीं, वरन अब देश के बाहर भी अत्यंत लोकप्रिय हो चुका है। माना जाता है कि छठ पर्व मनाने की शुरूआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी। महाभारत काल में इसका प्रचलन काफी बढ़ गया था। एक कथा के अनुसार, कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। मान्यता है कि आज भी छठ पर्व के दौरान सूर्यदेव को अर्घ्य दान की वही कर्ण प्रणीत पद्धति ही प्रचलित है।

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