आंख मूंद लेना तो समाधान नहीं है!

आंख मूंद लेना तो समाधान नहीं है!
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कैप्टेन आर.विक्रम सिंह

बहुत से लोग सोचते हैं कि कोई हिंदू-सनातन का कुछ नहीं कर पाएगा। आज इस सोच से निकलने की जरूरत है। गांधार मद्र अफगानिस्तान चला गया। सिंध फिर पंजाब निकल गया था। जो भी बचा था वह भी हमारे अहिंसक शांतिवादियों ने जेहादियों को बतौर पाकिस्तान दे कर शांति खरीदनी चाही शांति न आनी थी न आयी। उनके लक्ष्य ही दूसरे हैं।

बंगाल को तो विशेषकर पूर्वी बंगाल को हमारे महंतगण ने शूद्रों का इलाका मान कर मौलवियों सूफियों के हवाले हो जाने दिया। कभी घूम कर भी नहीं गये। वह 70 प्रतिशत इस्लामिक हो गया। आज वही बांग्लादेश है।

वहां के एक करोड़ अल्पसंख्यक हिंदुओं की दशा किसी से छिपी नहीं है। हिंदू तो जहां अपने देश में जहां बहुसंख्यक है वहां भी डरा डरा रहता है तो बांग्लादेश पाकिस्तान के हिंदुओं की बात ही क्या!

भारत जो आज अपने मूल का लगभग 40-45 प्रतिशत रह गया है। विधर्मी डंके की चोट पर हावी होकर रह रहे हैं, रह ही नहीं रहे गर्व से धर्मपरिवर्तन करा रहे हैं और हम कहते हैं कि सनातन का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

भारत की सबसे पुरानी पार्टी जो कितने वर्ष सत्ता में रही, लगातार विधर्मी एजेंडा चला रही है और हमारी आंखें नहीं खुलतीं। अच्छे खासे हिंदू समाज के नेता कार्यकर्ता उनका झंडा उठाए रहते हैं। वे तो अब सामने आते जा रहे हैं। मोदीजी व संघ उनके लक्ष्य पर हैं। क्यों? आशंका है कि उनके मजहबी बर्चस्व में ये ही मुख्य बाधक हैं।

अब सनातन के विरुद्ध खुला बयान आ गया है। उदयनिधि स्टालिन, उनके पिता, खरगे व उनके पुत्र कांग्रेस के नेता वेणुगोपाल आखिर और क्या कह रहे हैं..? तो उनका एजेंडा स्पष्ट है: वे दोनों अब्राहमिक मजहबों के लोगों, दलित व आदिवासी समूहों व उनके क्षेत्रों, खालिस्तानी अलगाववादियों व क्रिप्टो ईसाई सिखों को लक्षित कर, मुस्लिम प्रभावित जातिवादियों को जोड़ कर एक गैर हिंदू-सनातन एजेंडा खड़ा कर रहे हैं और हिंदू सनातन धर्म का क्षेत्र सीमित करने की लगातार कोशिश में हैं। और हम हैं कि सपने की दुनिया में है कि सनातन का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता।

हमारे आपके पास अब समय नहीं है। संगठनात्मक इकाइयों पर कार्य करना है-

निम्न सवालों के जवाब खोजें। एक डायरी लें व लिखें-

- राष्ट्रीय विचारों की कोई सकारात्मक संस्था भले ही वह पर्यावरण या योग या सत्संग की ही क्यों न हो, या उसकी ईकाई आपके निकट है?

- उसके सदस्य न हों तो बनें अपने निकट साथियों सहित।

क्या शस्त्र है आपके पास? नहीं हो आसन्न संकट की दृष्टि से वैकल्पिक व्यवस्था की सोचें।

- किसी राष्ट्रीय हिंदू संगठन से जुड़े हैं आप?

- पाक्षिक या मासिक बैठकें व आपसी नेटवर्क बना है आपका?

- कितने लाइसेंसी शस्त्रधारी हैं आपके समूह में ?

- क्या उन बैठकों में चारों वर्णों के लोगों की भागीदारी है?

- क्या अपने गांव मुहल्ले कस्बे या शहर की मजहबी समस्याओं लव जेहाद जैसे प्रकरणों की जानकारी व प्रतिकार पर चर्चाएं होती हैं?

- आपका निकटतम मंदिर या कोई धर्म-संस्थान या विद्यालय है या नहीं?

- मंदिर के सर्वराकार व पुजारी जी जागरूक व सहयोगी हैं या नहीं?

अपेक्षा है कि आप अपने ग्राम कस्बे मुहल्ले वार्ड में जो संगठन हों उनसे जुड़े। उसे ही जागरूकता का माध्यम बनाएं। फिर समान सोच के लोगों में चर्चा व पहल करके 'राष्ट्र रक्षक संगठनÓ आरआरएस या ऐसे ही संगठन का गठन कर के जागरूक लोगों को जोड़ने का कार्य प्रारंभ किया जाए ... !

रेत में सर दिये भाग्यवादियों का बायकॉट किया जाए। ये हमें भुलावे में रखने वाले, चमत्कार की प्रतीक्षा में बैठे लोग हैं। इनसे दूर रहा जाये।

(लेखक पूर्व सैनिक एवं आईएएस अधिकारी हैं)

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