भारत में खेलों के अमृतयुग की शुरुआत

भारत में खेलों के अमृतयुग की शुरुआत
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डॉ. पीयूष जैन

पहले अक्सर कहा जाता था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धा में केवल भाग लेने जाता था, मेडल के लिए नहीं। लेकिन पिछले कुछ सालों में परिदृश्य बदल गया है। गत कुछ वर्षों से खेल को लेकर भारत के युवाओं और उनके परिजनों का मानस बदला है। पहले हम प्रतिभागिता को ही महत्वपूर्ण मानकर कई खेलों में जाते थे, हमारे खिलाड़ियों को यह भरोसा नहीं होता था कि वह चीन और कोरिया के खिलाड़ियों से भी टक्कर लेकर मेडल ला सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खेल मंत्रालय ने इस जड़ता को समाप्त करने का बीड़ा उठाया और खेलों को लेकर देश में उत्साह की दृष्टि प्रदान की।

सरकार ने खिलाड़ियों में भरोसा जगाया कि आपके अंदर प्रतिभाएं बहुत हैं और आप केवल प्रतिभाग ही नहीं करेंगे, बल्कि मेडल लेकर आएंगे। इसका असर आप देख सकते हैं। इस बार के एशियन गेम्स ने हमें एक यह भी सन्देश दिया कि देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें तराशकर सही मार्गदर्शन देने की। चीन में आयोजित एशियन खेल में मिली सफलता ने भारत के खेलों में 'अमृतयुगÓ की शुरुआत कर दी है।

चीन में आयोजित एशियन खेल में खिलाड़ी जैसे ही मेडल जीतते, भारत में शहर से लेकर गाँव-गाँव तक जश्न में डूब जाता था। आमतौर पर ऐसा दृश्य क्रिकेट टीम की सफलता के बाद ही देखने को मिलता था। लेकिन अब माहौल बदल गया है। भारत खेलों में सिरमौर बनने जा रहा है। इसका संकेत चीन में आयोजित एशियन खेल ने दे दिया है।

आज भारत हर क्षेत्र में चाहे वह अंतरिक्ष हो, विज्ञान हो या स्वास्थ्य हो, हर जगह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता के झंडे गाड़ रहा है, केवल खेल ही एक ऐसा क्षेत्र था, जहां विश्व स्तर की खेल प्रतिस्पर्धाओं में भारत उस तरह का प्रदर्शन नहीं कर पा रहा था, और ऐसा भी नहीं कि हमारे यहाँ खेलों में प्रतिभाओं की कमी थी, 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने विशेष तौर पर खेलों पर ध्यान देना शुरू किया। भारत जैसे देश में जहां पर खेलों को लेकर संवेदनशीलता कम दिखाई जाती है, वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खिलाड़ियों में आत्मविश्वास पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी भी बड़ी प्रतिस्पर्धाओं के पहले और बाद में सफलता, असफलता पर प्रधानमंत्री व्यक्तिगत रूप से बातचीत कर खिलाड़ियों का हौसला अफजाही करते दिखते रहे हैं और इसका भी सकारात्मक असर दिखा है और भारत का अंतरराष्ट्रीय खेल प्रदर्शन में निरंतर निखार आता गया। वे खिलाड़ियों के जीत में तो खुश होते ही हैं, हार में भी उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं। वे खिलाड़ियों के लिए सच्चे अर्थों में प्रेरणास्रोत हैं।

खेलो इंडिया, फिट इंडिया जैसे क्रांतिकारी कदम ने अमृत काल में भारत को खेल सिरमौर बनाने की आधारशिला रखी है। खेलमंत्री अनुराग ठाकुर चूँकि खुद एक खिलाड़ी रहे और खेल मंत्री बनने से पहले देश की कई खेल संस्थाओं से जुड़े रहे और उनमें किए गए कार्यों के अनुभवों ने उन्हें खेल से जुड़े विषयों पर खेल मंत्रालय को प्रभावशाली तरीके से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया।

एशियन गेम्स का जनक भी भारत है। 1951 में पहला एशियाई गेम्स भारत में जब हुआ था तब से लेकर आज तक इतना शानदार प्रदर्शन नहीं हुआ। हमने इस बार एशियन गेम्स में अपना सबसे बड़ा दल भेजा था और हमको उम्मीद थी कि पदक का हम शतक पूरा करेंगे। हमारे जोशीले नारे अबकी बार-100 के पार... हमने मैडल टेली में पहली बार 100 का आंकड़ा पार किया और चौथे नंबर पर रहे।

अमृतकाल में खेल क्षेत्र की अमृत पीढ़ी ने यह कर दिखाया है। आज अपने खिलाड़ियों पर हर भारतीय को गर्व है। विगत वर्षों में जो खेलों में बदलाव आया है उसमें भारतीय खेल मंत्रालय की टॉप्स (टारगेट, ओलंपिक पोडियम स्कीम) और खेलो इंडिया ने एक अहम भूमिका निभाई है।

1951 से शुरू हुआ एशियन गेम्स जहां हमने 51 मैडल जीतकर दूसरे स्थान पर रहने से लेकर आज 100 से अधिक मैडल का सफ़र बहुत प्रेरणादायी रहा है, इस बार के एशियन गेम्स में हमने खेलों की हर विधा में अच्छा प्रदर्शन किया है, हमारे खिलाड़ियों ने शूटिंग और एथलेटिक्स में सर्वाधिक मैडल जीते, वहीं घुड़सवारी, गोल्फ, आर्चरी, हॉकी, जेवलिन थ्रो, लॉन्ग डिस्टेंस रनिंग जैसे खेलों में दिल जीत लिया। बैडमिंटन और टेबल टेनिस जैसे खेलों में भारतीय खिलाड़ी चमके। पहली बार शामिल खेल क्रिकेट का गोल्ड जीत कर शानदार शुरुआत की है।

खेल के मैदान में खिलाड़ियों की जीत, उनका अभूतपूर्व प्रदर्शन, अन्य क्षेत्रों में देश की जीत का भी रास्ता बनाता है। आज फिट इंडिया और खेलो इंडिया जैसा प्रयास एक जन-आंदोलन बन गए हैं। देश में अन्तराष्ट्रीय स्तर के खेल मैदान हर जगह बन रहे है, चाहे वो नार्थ ईस्ट का इलाका हो या कश्मीर का इसलिए खिलाड़ी देश के कोने कोने से निकल कर बाहर आ रहे है और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपना राष्ट्र गान बजा कर हमें गौरवान्वित कर रहा है। देश में 1000 नए खेलों इंडिया सेंटर की स्थापना हो रही है, जिसमें खिलाड़ियों को अच्छा प्रशिक्षण मिल रहा है, खेलो इंडिया, यूथ गेम्स, स्कूल गेम्स और यूनिवर्सिटी गेम्स के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन देश में हो रहे है। पिछले 9 वर्षों में देश का खेल बजट लगभग 70 प्रतिशत बढ़ा है। 9 साल पहले तक भारत के खिलाड़ी, सौ से भी कम अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे। इसके विपरीत अब भारत के खिलाड़ी 300 से भी अधिक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। दुनिया में भारत खेल महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। और इस सबका श्रेय देश के प्रधानमंत्री और खेल मंत्री को जाता है जिनकी दूरगामी सोच ने आज खेल जैसे अति पिछड़े क्षेत्र को भी आगे लाकर खड़ा किया है।

(लेखक भारतीय खेल प्राधिकरण की शासी निकाय के सदस्य और पेफी के राष्ट्रीय सचिव हैं)

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