समर्पित क्रांति वीर थे नर शार्दूल, यतीन्द्र नाथ मुखर्जी
भारत की आजादी की लड़ाई में औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध क्रांति की ज्वाला को जलाए रखने के लिए अपना सर्वस्व लुटा कर प्राण निछावर करने वाले वीरों की पंक्ति महान स्वतंत्रता सेनानी, नर शार्दूल यतीद्रनाथ मुखर्जी (जतीन्द्रनाथ मुखोपाध्याय) का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उनका नारा था 'अमरा मोरबो जगत जागवेÓ अर्थात हम राष्ट्र को जगाने के लिए मरेंगे। उन्हें ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कार्यकारी दार्शनिक क्रांतिकारी कहा जाता है। देश सेवा के लिए वे घर परिवार सब कुछ छोड़ कर क्रांति पथ की ओर अग्रसर हुए। आज उनकी पुण्यतिथि है। तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी अंतर्गत नादिया जिले की कुश्तिया उपखंड (जो अब बांग्लादेश में है) में 7 सितंबर 1879 को उमेश चंद्र मुखर्जी और शरद शशि के यहां जन्मे बालक जतिन पर से पिता का साया 5 वर्ष की उम्र में ही उठ गया। मां अपने पिता के पास कायाग्राम में बच्चों को लेकर बस गई, वहीं पर उनका पालन पोषण किया। जतिन ने 18 वर्ष की उम्र में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने खुद ही राम बोस सेंट्रल कॉलेज कोलकाता विद्यापीठ में आगे की शिक्षा ग्रहण की। जीविकोपार्जन के लिए स्टेनोग्राफी सीखी और कोलकाता विश्वविद्यालय से जुड़ गए। सन 1900 में उनका विवाह इन्दुबाला बनर्जी के साथ संपन्न हुआ। उनके तीन पुत्र और एक पुत्री थी, जिनमें से बड़े पुत्र का 3 वर्ष की उम्र में असामयिक निधन हो गया था। 27 वर्ष की उम्र में जंगल से गुजरते समय रॉयल बंगाल टाइगर से जतिन का आमना सामना हो गया। सीधी भिड़ंत में हंसिये से ही मार गिराया। इस मुठभेड़ में वे बुरी तरह घायल हो गए थे। डॉ. एस.पी. सर्वाधिकारी ने उनकी मुफ्त में चिकित्सा की। जतीन्द्रनाथ 'बाघा जतिनÓ के नाम से विख्यात हुए। बंग भंग और भी के विरोध में नौकरी छोड़ आंदोलन में कूद पड़े। 1905 में प्रिंस वेल्स के भारत दौरे के समय अंग्रेजों द्वारा भारतीयों से किए गए र्दुव्यवहार के लिए सबक सिखाने हेतु प्रिंस वेल्स के सामने ही बाघा जतिन ने उनकी पिटाई कर दी थी। उन्होंने स्वदेशी आंदोलन के दौरान 1905 में बंगाल के क्रांतिकारियों की मदद के लिए 'छात्र भंडारÓ नामक संघ की स्थापना की। उनका संपर्क रासबिहारी बोस, लाला हरदयाल एम.एन.राय, चंपकरण पिल्लई, नायक सेन और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे क्रांतिकारियों से भी हुआ। वे अरविंदो घोष, भगिनी निवेदिता के कार्यों, भगवद्गीता के ज्ञान, बंकिमचंद्र के लेखन और स्वामी विवेकानंद के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्होंने बाढ़, महामारी, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान रामकृष्ण मिशन से जुड़कर राहत शिविरों में सेवाएं दीं। स्वामी विवेकानंद ने जतिन को अंबु गुहा की व्यायाम शाला में कुश्ती का अभ्यास करने के लिए भेजा, वहां जतिन की भेंट सचिन बनर्जी से हुई जो सीख रही उनके गुरु बन गए। 1910 में उन्हें गिरफ्तार किया गया निर्दोष पाए जाने पर रिहा कर दिया गया इसके बाद भी 'अनुशीलन समितिÓ के सदस्य बन गए तथा युगांतर पार्टी का कार्य भी देखते रहे।
क्रांतिकारी गतिविधियां चलाने के लिए धन की जरूरत होती थी, जिसकी पूर्ति का साधन डकैती ही था। वे दुलरिया व बलिया घाट की डकैतियों में शामिल रहे। गार्डन रीच की प्रसिद्ध डकैती में कोलकाता की हथियार बनाने की कंपनी 'राडाÓ की गाड़ी से 15 मोजर पिस्टल है 50 हजार गोलियां आदि असलात लूटे। उन्होंने वारीन्द्रकुमार घोष के साथ देवघर के पास एक बम निर्माण फैक्ट्री भी स्थापित की। जतिन किसी असम एक आतंकी कार्यवाही के निर्णय के विरुद्ध थे। उनका कहना था 'पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणी विहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देसी विदेशी शोषण से मुक्त करना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवन यापन का अवसर देना हमारी मांग हैÓ। 1912 में जर्मन क्राउंस प्रिंस से मुलाकात में समाजवादी सरकार बनाने के लिए विद्रोह हेतु हथियार और धन उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त हुआ था। उनकी सशस्त्र विद्रोह की योजना थी। सितंबर 1915 को पुलिस ने जतीन्द्र नाथ का कालीपोक्ष में गुप्त अड्डा ढूंढ निकाला। राज मोहन्ती अफसर ने पकड़ने की कोशिश की। गोलीबारी में वह ढेर हो गया। बालेश्वर के जिला मजिस्ट्रेट में दलबल सहित पहुंचकर घेराबंदी की। के साथ गोलीबारी में जितेंद्र नाथ का शरीर छलनी हो गया गिरफ्तार कर लिए गए। 10 सितंबर 1915 को इस महान शूरवीर सेनानी ने इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया। बंगाल के इंटेलिजेंस और पुलिस कमिश्नर ने कहा था 'हालांकि मुझे अपना कर्तव्य निभाना था फिर भी मेरे मन में उसके लिए बहुत प्रशंसा है वह एक खुली लड़ाई में मारा गया।Ó, 'यदि जितेंद्र नाथ अंग्रेज होते तो उनकी प्रतिमा ट्राफल्गर स्क्वायर पर नेल्सन की प्रतिमा की बगल में बनाई गई होतीÓ महान देशभक्त बाघा जतिन को कृतज्ञ राष्ट्र का नमन, श्रद्धांजलि।
(लेखक महिला एवं बाल विकास विभाग,म.प्र. में संयुक्त संचालक है)