हमारी लोक संस्कृति और लोक परंपरा का पर्व
हमारा देश विभिन्न पर्वों और त्योहारों का एक वृहद देश है और ऐसे में जब हम देश के प्रमुख पर्वों की बात करते हैं उनमें से एक प्रमुख पर्व बिहार का छठ पर्व भी है। जो कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। हमारे ज्यादातर पर्व विभिन्न संस्कृति और संस्कार के साथ ही हमें अपनी प्रकृति से भी जुड़े रहने का संदेश देते हैं। यह मुख्य रूप से सूर्य उपासना का व्रत है जिसमें व्रती महिलाएं सूर्य, प्रकृति, जल, वायु के साथ ही भगवान भास्कर अर्थात सूर्य की बहन छठी मैया की उपासना करती हैं।
यह व्रत केवल बिहार ही नहीं बल्कि झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल, मिथिलांचल के साथ ही साथ पूरे भारत क्या पूरे विश्व में मनाए जाने वाला प्रमुख पर्व बन चुका है क्योंकि आज पूरा विश्व एक गांव में तब्दील हो चुका है। खासकर इस ग्लोबलाइजेशन के दौर में कोई भी पर्व, व्रत या त्योहार किसी राज्य विशेष या देश विशेष का पर्व नहीं रह गया है। इस पर्व को कुछ राज्यों में अलग-अलग नाम से भी मनाया जाता है, जैसे मिथिलांचल में इस पर्व को रनबे माय,भोजपुरी में सविता माई, और पश्चिम बंगाल में रनबे ठाकुर नाम से बुलाया जाता है। इस पर्व में हम मां पार्वती के छठवे रुप यानि भगवान सूर्य की बहन छठी मैया की पूजा अर्चना और व्रत करते हैं।
पश्चिम बंगाल में यह काली पूजा के चंद्र दर्शन के छठवें दिन बाद मनाया जाता है। मिथिला में तो छठ के दौरान वहां की व्रती महिलाएं अपने यहां की शुद्ध पारंपरिक संस्कृति को दर्शाने के लिए बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं। इस व्रत को मुख्य रूप से महिलाएं ही रखती हैं लेकिन कभी-कभी देखा गया है कि महिलाओं के स्वास्थ्य या किसी अन्य शारीरिक समस्या की स्थिति में उनके पति के द्वारा भी इस व्रत को रखा जाता है हालांकि यह अन्य किसी व्रत या पर्व से थोड़ा सा कठिन व्रत है जो कि पूरे चार दिन तक चलता है। इस व्रत में पवित्र स्नान, उपवास, पीने के पानी से दूर रहना, काफी देर तक नदी के ठंडे पानी में खड़े रहना, भगवान भास्कर अर्थात निकलते हुए सूर्य को अर्घ्य देना शामिल हैं। इस पर्व की अद्भुत और निराली छटा देखते ही बनती हैं।ऐसा लगता है कि,जैसे धरती पर समस्त देवलोक उतर आया हो छठ पर्व हमारे देश में कुछ वर्षो से मनाए जाने वाला कोई आम पर्व नहीं है बल्कि यह वैदिक काल से चला आ रहा एक महापर्व हैं। इस पर्व का वर्णन हमारे ऋषियों और महर्षियों के द्वारा लिखे गए विभिन्न वेदों में भी मिलता है खासकर 'ऋग्वेदÓमें सूर्य पूजन और ऊषा पूजन का जिक्र है, इस व्रत में जब व्रती महिलाओं के साथ उनके पति अपने सिर पर व्रत की दौरी रखे हुए आगे-आगे चलते हैं और उनके पीछे उनकी औरतें यह गाते हुए चलती हैं कि 'बहंगी लचकत जाएÓ तो ऐसा लगता है कि जैसे हमारे कानों में कोई मधुर वेद मंत्र गूंज रहा हो।