रक्षाबंधन का पर्व है हिंदुत्व का रक्षासूत्र

रक्षाबंधन का पर्व है हिंदुत्व का रक्षासूत्र
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डॉ. आनंद सिंह राणा

रक्षासूत्र का मंत्र है- 'येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:। इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवीर महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। युगों युगों से यह मंत्र रक्षाबंधन का मूलाधार है, जिसमें असुर राज बलि को माँ लक्ष्मी ने रक्षा सूत्र बाँधकर अपने पति भगवान् विष्णु को मुक्त कराया था। यह उपाख्यान उन तथाकथित सेक्यूलरों, ईसाई मिशनरियों और वामियों को करारा तमाचा है, जिन्होंने हिन्दू धर्म में वर्ण - जाति, ऊँच - नीच, सुर - असुर के नाम पर भेदभाव होने का मकड़जाल फैलाया है, क्योंकि इस पर्व की नींव असुर राज बलि ने माँ लक्ष्मी से रक्षासूत्र बँधवाकर रखी।

वस्तुत: रक्षाबंधन का बहुत व्यापक स्वरुप है। यह केवल भाई-बहिन तक सीमित नहीं है, वरन् सर्वव्यापी है। सावन के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन शिव समस्त प्रकृति को रक्षा का वचन देते हैं। रक्षा का जो तत्व है और वही शिव तत्व है। बहिनों को भाई रक्षा वचन देते हैं इसके पीछे भी शिव तत्व है, जिस प्रकार आस्तिक और नास्तिक शिव के निकट हो या दूर हों समस्त जीवों की शिव रक्षा करते हैं। किसी भी संकट में कोई बहन हो तो भाई रुपी शिव रक्षा का वचन निभाते हैं और इसके लिए सदैव तत्पर रहते हैं।

इसलिए हिन्दुओं ने युगों युगों से आज तक रक्षा का यह बंधन समाज, देशों,राज्यों और धर्मों के साथ बांध रखा है। रक्षाबंधन भारत वर्ष की एकता और अखंडता का अनोखा पर्व है जो वसुधैव कुटुम्बकम् के आलोक में एक-दूसरे की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र में बांधता है।

एतदर्थ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रक्षाबंधन के पर्व को प्रमुखता से मनाने की संस्तुति करता है। जाति, वर्ण के ऊपर उठकर राष्ट्र के लिये प्राण देने की प्रेरणा रक्षाबंधन ने दी है। राष्ट्र को परमवैभव के शिखर तक ले जाने के लिये स्थापित हुये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूलभूत सिद्धांत एवं आदर्श जैसे राष्ट्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण, स्वत्व जागरण, समरस समाज निर्माण, समाज संगठन आदि रक्षाबंधन के आधारभूत मूल्यों के साथ मेल खाते हैं।

पौराणिक और ऐतिहासिक साक्ष्यों व संदर्भों का भारत के पर्वों से गहरा नाता रहा है और विभिन्न अंचलों में मनाए जाने के विविध स्वरुप भी विविधता में एकता के पर्याय हैं। ऐसे तो रक्षाबंधन से जुड़ी हर युग में अनूठी गाथाएं हैं। आधुनिक काल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रक्षाबंधन पर्व ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सन् 1905 में बंगाल विभाजन के समय जब हिन्दू - मुस्लिम वैमनस्यता चरम पर आ रही थी तब गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने स्थिति सुधारने के लिए हिंदुओं - मुस्लिमों द्वारा आपस में राखी बंधवाई थी, जिससे भाईचारा स्थापित हुआ था।

संपूर्ण भारतवर्ष में रक्षाबंधन का यह पर्व विभिन्न नाम और स्वरूप प्रचलित है। रक्षाबंधन को श्रावणी भी कहते हैं। वस्तुत: अमरनाथ की यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन पर समाप्त होती है। मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कजरी पूर्णिमा के रूप में भी इस उत्सव को मनाया जाता है। बुंदेलखंड में तो रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजलियों का त्यौहार मनाया जाता है, जिसका उल्लेख महान् कवि जगनिक के आल्हा खंड में मिलता है, तदनुसार यह पर्व भाई और बहिन के प्रेम और विजय का प्रतीक है।

रक्षाबंधन पर्व हम सभी देशवासियों का प्रमुख पर्व है, और यही प्रेरणा देता है कि हम देश व धर्म की रक्षा के लिए कृत संकल्पित हों। यह धर्मनिरपेक्ष पर्व है, तो आईये रक्षाबंधन के पवित्र और पुनीत पर्व पर जाति - धर्म की बेड़ियों से ऊपर उठकर एक-दूसरे को इस संकल्प के साथ रक्षासूत्र बांधें कि भारत को समर्थ भारत-समरस भारत - श्रेष्ठ भारत बनाएंगे। रक्षाबंधन पर्व वसुधैव कुटुम्बकम् के आलोक में संपूर्ण विश्व को यही संदेश देता है कि, सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवाव है। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषाव है।

(लेखक श्रीजानकीरमण महाविद्यालय में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)

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