राजनैतिक अभियान की भाषा मर्यादित ही होनी चाहिए

राजनैतिक अभियान की भाषा मर्यादित ही होनी चाहिए
हृदयनारायण दीक्षित

राहुल गाँधी इस समय भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर हैं। इसके पहले इस कार्यक्रम का नाम उन्होंने भारत जोड़ो रखा था। लेकिन उनकी पार्टी के ही बैंगलुरु से सांसद और कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री शिव कुमार के भाई डी. के. सुरेश ने भारत तोड़ने की बात की है। उनका वक्तव्य आहतकारी है। उन्होंने आरोप लगाया है कि दक्षिण भारतीय राज्यों का धन उत्तर भारतीय राज्यों को दिया जा रहा है। वे ताजा केन्द्रीय बजट पर टिप्पणी कर रहे थे। बजट प्रावधानों की निन्दा, समर्थन और आलोचना सभी दलों का अधिकार है। उनका यह बयान संसद में भी चर्चा का विषय है। उन्होंने धमकी दी है कि यह प्रवृत्ति जारी रही तो अलग देश की मांग उठाई जाएगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गाँधी को इस बयान पर कांग्रेस का दृष्टिकोण प्रस्तुत करना चाहिए। वक्तव्य सीधे भारतीय राष्ट्र राज्य पर हमला है। सभी दलों को अपनी विचारधारा और अपनी रणनीति के अनुसार विषय रखने का अधिकार है। लेकिन देश तोड़ने की बात और अलग देश की मांग करने की धमकी का समर्थन कोई भी सामाजिक, राजनैतिक कार्यकर्ता या देश का नागरिक नहीं कर सकता। भारत सम्प्रभु राष्ट्र राज्य है। राष्ट्र की सम्प्रभुता असीम है, अविभाजित है और अखण्ड है। भारत किसी जन पंचायत या किसी समझौते का परिणाम नहीं है। यह स्वयंभू है और सांस्कृतिक दृष्टि से दुनिया का प्राचीनतम राष्ट्र है। भारतीय संस्कृति सनातन प्रवाह है। भारत इसी संस्कृति से निर्मित राष्ट्र है। भारत के सभी राज्य संविधान की कृपा प्रसाद से अस्तित्व में है। सब भारतवासी भारत के प्रति निष्ठावान हैं। संविधान में केन्द्र और राज्यों के अधिकार सुस्पष्ट हैं। भारतीय राज्य खूबसूरत संवैधानिक रचना हैं। संविधान की यह व्यवस्था भारतीय जन गण मन ने मुक्त मन से गढ़ी है। सभी संवैधानिक संस्थाओं के अधिकार और कर्तव्य सुपरिभाषित हैं। भारतीय राष्ट्र की मूल इकाई 'हम भारत के लोग' है। भारत जन गण मन के आनंद से प्रतिबद्ध एक अनुराग है। विश्व कल्याण से प्रतिबद्ध एक निष्ठावान प्रीति है। देश के सभी लोगों की सुख, स्वस्ति और समग्र वैभव भारत का ध्येय है। इस ध्येय में विश्व शान्ति और विश्व कल्याण के आधारभूत तथ्य भी संविधान का भाग हैं। इसलिए भारत भारत के लोगों के लिए एक अखण्ड श्रद्धा है।

भारत की रिद्धि, सिद्धि, समृद्धि और उपलब्धि समग्र भारत के लोगों के कर्मतप का परिणाम है। भारत की विश्व प्रतिष्ठा देश के सभी राज्यों और राज्यों के निवासियों के साझे कर्मफल का परिणाम है। उत्तर दक्षिण या पूरब पश्चिम के आधार पर विचार करना व्यर्थ हैं। सुब्रमण्यम भारती विश्व प्रसिद्ध तमिल कवि थे। उन्होंने सम्पूर्ण भारत के गीत गाए हैं। हिन्दी अनुवाद संकलन की पहली कविता का नाम 'वन्दे मातरमÓ है। भारती कहते हैं, ''पराधीन जीवन पर लज्जित सारा भारत एक साथ है/हम सब यह संकल्प करेंगे/कभी नहीं परतंत्र रहेंगे/हम वन्दे मातरम् कहेंगे।ÓÓ भारती दक्षिण के थे। पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भारती के हृदय में वन्दे मातरम् है। भारती की कविताओं में सप्तसिन्धु भी है और भूगोल की दृष्टि से यह उत्तर पश्चिम में है।

भारती को दक्षिण भारतीय कहा जा सकता है। यह सही भी है। लेकिन भारती के हृदय और बुद्धि में अखिल भारतीय अनुराग है। उनके मन में उत्तर की गंगा बहती हैं और दक्षिण की कावेरी भी। ज्ञान को उत्तर दक्षिण में नहीं विभाजित किया जा सकता। वे दक्षिण के कांचीपुरम में बैठकर काशी के विद्वानों का संवाद सुनना चाहते हैं, ''ऐसे यंत्र बनाएँगे/कांचीपुरम में बैठकर/काशी के विद्वतजन का संवाद सुनेंगे। भारती लिखते हैं, ''मुख में वेदों का वास/हाथ में तीक्ष्ण असि शोभित मंगलकारी।ÓÓ विश्व प्रसिद्ध दर्शन शास्त्री अद्वैत दर्शन के प्रचारक आचार्य शंकर भी भौगोलिक दृष्टि से केरल के थे। कह सकते हैं दक्षिण के। लेकिन वे भारतीय दर्शन के शीर्ष व्याख्याता हैं। उन्होंने चार धामों की स्थापना की। केवल दक्षिण में नहीं। उत्तर में बद्रीनाथ। दक्षिण में रामेश्वरम। पश्चिम में द्वारिका और पूरब में जगन्नाथ। विशिष्टाद्वैत के प्रवर्तक रामानुजाचार्य भी दक्षिण के थे। रामकथा विश्व की अमूल्य निधि है। इसकी प्रारम्भिक घटनाएं उत्तर भारत की हैं। तमिल कवि कम्ब नमस्कारों के योग्य हैं। उन्होंने तमिल में रामकथा लिखी। तमिल में लिखी गई उनकी रामायण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय रहती है। देश के किसी भी तत्ववेत्ता और सृजक ने उत्तर दक्षिण की बात नहीं की है। डॉ. राधाकृष्णन दक्षिण के थे। दर्शन के पाठ के लिए सभी विद्वान राधाकृष्णन पर निर्भर हैं। देश तोड़ने की धमकी प्रत्येक दृष्टि से अपराध है। इसे विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं माना जा सकता। संविधान अनुच्छेद (19) में विचार अभिव्यक्ति की आजादी पर अनेक मर्यादाएं अधिरोपित की गई हैं। कांग्रेस स्वयं में देश के स्वाधीनता संग्राम और भारतीय स्वतंत्रता का श्रेय लेती है। स्वाधीनता संग्राम का प्रमुख जीवन मूल्य राष्ट्रीय एकता था। एकता की धारक और प्रचारक कांग्रेस के जिम्मेदार लोग अलग राष्ट्र की मांग उठाने की धमकी दे रहे हैं। इसी तरह की धमकी इसके पहले तमिलनाडु में सत्तासीन पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम ने भी दी थी। तब डी.एम.के. के सांसद ए. राजा ने कहा था कि केन्द्र सरकार तमिलनाडु को और अधिकार दे वरना अलग देश के लिए लड़ाई होगी। ऐसी अलगाववादी मांगें असंवैधानिक तो हैं ही राष्ट्रद्रोह की सीमा में भी आती हैं। आश्चर्य है कि सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ सदस्य नेता की खतरनाक टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

राजनैतिक अभियान की भाषा मर्यादित ही होनी चाहिए। वक्तव्यों और भाषणों से लाभ उठाना अलग बात है लेकिन राष्ट्रीय एकता अखण्डता और सम्प्रभुता के प्रश्नों पर कठोर अनुशासन की आवश्यकता है। यह आश्चर्यजनक है कि स्वाधीनता के 76 वर्ष बाद भी हमारे राजनेता धौंस धमकी की भाषा बोलते हैं और राष्ट्रीय एकता सम्प्रभुता को ठेंगे पर रखते हैं। राष्ट्रीय एकता और सम्प्रभुता को लेकर एक दृष्टि कांग्रेस और डी.एम.के.की है और एक दृष्टि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है। कांग्रेसी दृष्टि में अलग देश की धमकी का अपराध भी राजनीतिक कार्यवाही है। वही मोदी की उपस्थिति में काशी में लगभग डेढ़ हजार तमिल भाषी विशिष्टजनों के समागम का आयोजन किया गया था। प्रधानमंत्री ने अपने सम्बोधन में राष्ट्रीय एकता की बात कही थी। काशी प्राचीन ज्ञान परम्परा का महत्वपूर्ण शक्ति केन्द्र है। कांग्रेस को ध्यान रखना चाहिए कि देश की राष्ट्रीय एकता का मूल तत्व सांस्कृतिक एकता है। समूचे देश के लोग इस धमकी से गुस्से में हैं। कांग्रेस को इस बयान के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।

(लेखक उप्र विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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