भारतीय राजनीति के ट्रेजेडी किंग राहुल गाँधी

भारतीय राजनीति के ट्रेजेडी किंग राहुल गाँधी
विजयमनोहर तिवारी

असमय माँ की मृत्यु का दुखद समाचार एक संक्षिप्त सूचना ही नहीं थी, वह उनके भावी जीवन की अंधकारमय दिशा का एक भयानक संकेत भी था। वह बड़ा पेड़ गिरा था। एक ऐसा वज्रपात, नियति ने जिसका दूसरा शिकार उन्हें भी बनाया। राहुल खिलती आयु में पितृविहीन हो गए। अतीत की महान गाथाएँ उसी क्षण अतीत में रह गई थीं। वे परिवार के आखिरी प्रधानमंत्री थे। आज भाई, बहन, जीजा, माता सब मिलकर जोर लगा रहे हैं। पंचर टायर में हवा भरते रहने जैसा पराक्रम है यह। राहुल व्यर्थ में पिस रहे हैं। या सिद्ध करें कि वे सही हैं। चुनावी राजनीति में सिद्धि परिणाम से तय होती है। भाषणों से नहीं।

मेरी दृष्टि में-एक पुत्र के रूप में राहुल का जीवन आघातों का जीवन है। उनकी पीड़ा की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। हर पराजय के बाद डिनर के समय वे कितने डिप्रेस्ड होते होंगे। उनके आसपास जो भी होता होगा, भोजन हलक से कैसे नीचे उतरता होगा। वे एक ऐसी दुविधा में लंबा समय गँवा चुके हैं, जब वे यह तय ही नहीं कर पाए कि राजनीति उनसे क्या अपेक्षा करती है, देश की जनता उनमें क्या देखना चाहती है और उन्हें करना क्या चाहिए? राजनीति में रहना भी चाहिए या नहीं?

ऐसे आधे-अधूरे ढंग से जीवन में कोई पूरे काम नहीं होते। किंतु यह नेहरू परिवार का भाग्य है कि एक न एक राÓय उनके काम चलाने के लिए मिल ही जाता है। जबकि इस जीवनोपयोगी व्यवस्था के बदले वे पार्टी को क्या दे रहे हैं, कहाँ पहुँचा रहे हैं, क्या विजन है, क्या तैयारी है?

लक देखिए: छत्तीसगढ़ और राजस्थान की जनता ने राशन पानी बंद किया तो नया परमिट तेलंगाना की उचित मूल्य की दुकान का मिल गया। दक्षिण बड़ा दयालु है। क्या कर्नाटक, क्या तेलंगाना। नेहरू ने दक्षिण का उतना ही नमक खा लिया, जितना उत्तर का। केरल ने तो भैयाजी को सिर आँखों पर बैठाया। जब उत्तर में नैया डुबोकर आए तो नई नैया देने का जोखिम वायनाड ने ही उठाया।

वायनाड से याद आया: एक और नाम है वेलियानाड। मैं अब तक कालडि को ही आचार्य शंकर का जन्म स्थान मानता था। बाद में ज्ञात हुआ कि वेलियानाड में वे जन्मे थे। राहुल गाँधी को मित्रवत कुछ परामर्श करना चाहूँगा हालांकि आयु में दो साल मुझसे वे छोटे हैं। मेरा पहला निवेदन होगा कि अगर अब भी उनके भीतर धैर्य शेष है तो सबसे पहले कुछ समय भारत को समझने में लगाएँ। भारत का मन समझें। उसके दिल की धड़कन सुने। यह देश अपने प्रियजनों से बहुत कुछ कहना चाहता है। सदा से कहता रहा है। उन्हें अद्वैत वेदांत की एबीसीडी के लिए दस दिन का एक शिविर वेलियानाड में चिन्मय विश्वविद्यालय में जाकर पूरा करना चाहिए। वायनाड के कांग्रेस कार्यालय में कोई भी वेलियानाड का पता बता देगा। हर-हर शंकर का उद्घोष करके वेलियानाड प्रस्थान कीजिए।

राहुलजी के लिए संभव है कि कोई असंभव सा उद्देश्य मिल जाए। फिर आनंद आएगा। फिर आपका असल संघर्ष आरंभ होगा। तब आप अलग करंट में होंगे। जब जीवन में उद्देश्य होता है तो फिर कोई बात हल्की नहीं होती। हर बात में दम होता है। वह दम ऐसे ही आएगा। हिम्मत देखते ही बनेगी। जीत की खबरें यही चैनल सुनाएँगे। यही अखबार आपकी प्रतिभा में प्रकाशित होंगे।

दूसरा सबसे महत्वपूर्ण, उन्हें कांग्रेस को प्रासंगिक बनाना चाहिए। कांग्रेस सत्तर के दशक की मुंबई की फिएट टैक्सी की तरह धुआँ छोड़ रही है। वे हर विषय में और हर राÓय में कांग्रेस को प्रासंगिक बनाएँ। इसके लिए एक मूवमेंट खड़ा करें। पुराना मनहूस सेक्युलरिÓम सबसे घातक टूल है। हमास के हितैषी होकर आप भारत के मन को नहीं पढ़ सकते। पहले दृष्टि साफ कीजिए फिर निर्णय लेने के लिए आगे बढ़िए।

तो अनावश्यक बोझ बन चुकी नीतियों और कार्यक्रमों को त्यागने का यही समय है। अप्रासंगिक अंडरस्टैंडिंग से छुटकारा पाइए। नए रास्ते नापिए। स्वयं को बदलिए। अपने आसपास मजमा लगाए हरेक के इरादे समझिए। उन पर शासन कीजिए, झुंड बनाए मत घूमिए। सब कुछ लुटाकर आप स्वयं दरिद्र हैं। उन्हें दो मुल्क मिल गए। तुष्टिकरण से तौबा कीजिए। सबसे बड़ा ले डूबने वाला पत्थर वामपंथी सेक्युलरिÓम ही है। इस पंथ से छुटकारा पाइए। ये मधुमख्खियाँ हैं। शहद दिखाएँगी और चीथ लेंगी। चिथड़े ऐसे ही नहीं उड़े हुए हैं। जो लÓजा और उपहास का कारण बनें, वे भले ही कोई हों उन्हें नष्ट करना ही शासक का प्रमुख धर्म है। चाणक्य की नीतियाँ ऐसी ही हैं।

कृपापूर्वक दो महीना, उन-उन कारणों का विश्लेषण कर लें जो उन्हें पप्पू बनाते रहे हैं और पब्लिक ताली बजाकर खिल्ली उड़ाती रही है। क्या निकलेगा- कोई बयान, कोई लेख, कोई भाषण। सारे कारण इनमें ही हैं तो इन्हें लिखने-बताने वाले किराए के बुद्धिजीवी तो ताज या मेरिएट या लीला या हयात के नीचे क्या होंगे? चोपर में चमचम उड़ाने वाले। चमचे एक बहुत खराब शब्द है। मैं इसका उपयोग नहीं करता! ये बड़ी हैसियत वाले हैं, चमचा कहकर हल्के में नहीं ले सकते।

दो टूक बात: एक पार्टी की तरह पेश आइए। एक राष्ट्रीय पार्टी। एक ऐसी पार्टी, जिसने एक से बढ़कर एक सितारा नेतृत्व दिए। वे अपने समय के कौन से मुद्दों पर जीवित और गतिमान थे। आजादी तो मिल चुकी। अब आगे क्या? आज की चुनौतियाँ क्या हैं और नीतियों के पिछले अनुभवों ने कहाँ पहुँचाया है? चश्मे के नंबर बदलने चाहिए, क्योंकि आंखों की पुतलियाँ दूर या पास से पास या दूर देख सकती हैं। दृष्टिदोष है तो ठीक कराइए। उसी अनुसार नीतियाँ नए पेन और स्याही और दिमाग से बनाइए। मगर आप आज भी उलेमाओं को पत्र लिख रहे हैं। ये किस कम्बख्त का आइडिया था कि यह झाड़फूंक और करके देख लो।

एक ही दवा है- जड़ जमात की तरह मत बनिए। पार्टी हैं पार्टी की तरह पेश आइए। और पार्टी एक नदी की तरह होनी चाहिए। विषयों और मुद्दों के किनारों को छूती हुई बहती रहे। उसके घाट मजबूत होना चाहिए। गहराई सुंदर है। तब वह समुद्र तक यात्रा कर सकती है। कांग्रेस के न घाट मजबूत हैं, न किनारे विश्वसनीय। दो टूक बात यह है कि वह न घर की बची, न घाट की। वह नदी न होकर नदी में डूबी हुई एक लुटिया है।

विनम्र सवाल: मैं नहीं जानता कि राहुल गाँधी के सलाहकार कौन हैं? वे किसी भी चुनाव, यात्रा या अभियान के पहले कंटेंट को लेकर ऑफिशियल मीटिंगों में उन्हें क्या राय देते हैं, क्या अपडेट देते हैं, उनके अध्ययन, शोध और ज्ञान के क्या स्तर, आधार और स्रोत हैं? जो भी हैं, उनसे भी मेरा वही सवाल होगा कि वे भारत के मन को कितना जानते हैं? वे जितना जानते हैं, उतना ही बताएँगे। उनके अधिक की अपेक्षा अन्याय है। किंतु उनसे अधिक जानना एक बड़े लीडर का पहला लक्षण है। अगर उनके कुछ निकट के मित्र हैं, लंगोटिया यार जैसे तो वे आपस में क्या बातें करते होंगे?

मेरी जिज्ञासा तो यह जानने की है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में क्या बात करते होंगे? वे भाजपा के उन मुद्दों का विश्लेषण कभी करते होंगे, जिन्होंने उसे फर्श से अर्श पर पहुँचा दिया। किसी संगठन की वास्तविक शक्ति के स्रोतों का उन्हें कितना ज्ञान होगा? उनके समय में संगठन और संगठन की अन्य शाखाओं का क्या हाल है, क्या कभी विदेश यात्रा पर उड़ने के पहले दुर्लभ प्रजाति के निष्क्रिय हो चुकी इन इकाइयों पर अगले छह महीने काम करने का कोई इरादा नहीं होता होगा? बहुत संक्षेप में चुनौती यह है कि यह दुर्गति अंतिम होनी चाहिए। न्यूनतम स्तर।

कैसी विडंबना है, राजनीति के धूल भरे रास्तों पर अपना बहुत कीमती समय और अपनी अनजानी रह गई प्रतिभा को पहले ही वे बहुत नष्ट कर चुके हैं। मैं नहीं जानता आयु में बड़ी और समृद्ध खुशहाल परिवार में रहते हुए उनकी दीदी प्रियंका उनके बारे में क्या राय रखती हैं। पूÓय माँ के रूप में सोनिया गाँधी को अपने पुत्र की पराक्रमी प्रस्तुतियों में अब और क्या नया देखना शेष है? एक भारतीय माँ अपनी आँखों के सामने अपने बेटे-बेटियों का घर संसार बसते हुए देखना चाहती है। यहाँ उल्टी गंगा बह रही है। सत्ता की मृगतृष्णा में आयु तीव्र गति से उड़ी जा रही है, एक योग्य पुत्र अपनी आयु व्यर्थ गँवा रहा है।

बहुत हुआ जी, मैं भावुक भारतीय होने के नाते राहुलजी का हित दिल से चाहता हूँ। इसका प्रमाण यह है कि मैं उनसे कुछ और नहीं चाहता। बस उनका घरबार बसा हुआ देखना चाहता हूँ। मैं वैसी ही तस्वीरें देखना चाहता हूँ, जब राहुल अपनी दादी की गोद में बैठे हैं, पिता से लिपटे हैं। कोई रोहित या मोहित, कोई जय या विजय, या जुड़वाँ, उनसे लिपटे हुए भी नजर आएँ। उनके प्रिय पुत्र! इस तस्वीर में उनकी लंबी सफेद दाढ़ी चलेगी। एक विश्वप्रसिद्ध बुजुर्ग को ऐसा ही गरिमामय होना चाहिए। वैसे ही त्रिपुंड सहित जैसा चुनावी अभियानों में मजबूरी में लगाना पड़ता है। चमकीली किनारी की दक्षिण भारतीय लुंगी पर यज्ञोपवीत धारी त्रिपुंड सÓिजत मस्तक। भारत के मन का स्पर्श ऐसा ही गरिमामय बना देगा।

हम देखना चाहते हैं...पंडित जवाहर लाल नेहरू की बेटी के बेटे के बेटे के बेटे कैसे सुंदर दिखाई देते हैं। वैसे राजीव गाँधी के पिता इलाहाबाद में फिनारो होटल के मालिक एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार के प्रतिभाशाली फिरोज घाँधी थे, जो कांग्रेस के प्रभावशाली और प्रतिभाशाली सांसद भी थे। पंडित नेहरू के दामाद। गुलजार और कमलेश्वर की आँधी में संजीव कुमार एक होटल मालिक ही बने हैं! जबकि उनकी पत्नी चुनाव प्रचार में आई एक नेता है, जिसे राजनीति विरासत में मिली है। आरडी के संगीतबद्ध अब तक लोकप्रिय गीतों में से एक तेरे बिना जिंदगी से शिकवा कश्मीर में अनंतनाग के पास मार्तण्ड मंदिर के अवशेषों पर फिल्माया गया था। मैं वहाँ भी गया हूँ। ललितादित्य मुक्तापीड के समय बना एक विराट सूर्य मंदिर, इस्लाम की कृपा से जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की सद्गति प्राप्त हुई।

विषयांतर हो रहा है...मैं मानता हूँ कि प्रतिभा से हीन कोई पैदा नहीं होता। ईश्वर ने सबको असीमित क्षमताएँ दी हैं। वहाँ कोई आरक्षण नहीं है, कोई पक्षपात नहीं है, कोई तुष्टिकरण नहीं है। सब बराबर हैं। सबको बराबर है। सबमें वह भी बराबर है। ऐसी क्षमता दी है। प्रतिभा दी है। सही समय पर, दी गई प्रतिभा सही दिशा में सक्रिय भी हो, यह भी उतना ही जरूरी है। विपरीत दिशा में बह गई प्रतिभा के दुष्परिणाम, राहुल गाँधी इस विषय में एक केस स्टडी हो सकते हैं, यह मैं बहुत दुख से कह रहा हूँ। हम नहीं जानते कि ईश्वर ने उनकी रचना किस उद्देश्य से की थी मगर एक बात तय है कि वह राजनीतिक उद्देश्य तो नहीं ही था। अगर था तो सफल होने के लिए वे अगले पाँच साल केवल इन्हीं दो उपायों पर अमल करें।फिल्म एक्टर दिलीप कुमार को परदे का ट्रेजेडी किंग शायद देवदास टाइप की भूमिकाओं के कारण ही कहा गया होगा। राहुल गाँधी की तस्वीरों को क्रम से देखिए। बचपन से लेकर अब तक की। गौर से। वह दादी की गोद में आँखें सिकोड़कर बैठे राहुल। और वह भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बड़ी खिचड़ी दाढ़ी में। वह एक विरक्त विभूति का मुख मंडल है। वह नरेंद्र मोदी जैसे नेता से मुकाबले के लिए निकले सबसे पुरानी पार्टी के एक खानखानी नेता की मुद्रा नहीं है। मुझे तो उन महान पत्रकारों का ध्यान आता है जो चुनाव के पहले यूट्यूब के ओटलों पर बैठे राहुल का तीन राÓयों में वजन बढ़ाकर 2024 में उनका बड़ा हुआ भार बता रहे थे। जिन्हें राहुल की दाढ़ी का बड़ा हुआ सफेद बाल इस निष्कर्ष पर पहुँचाता आया है कि वे अब पहले से Óयादा परिपक्व हो रहे हैं। नाम नहीं ले सकता। सब आदरणीय हैं। सबके अपने अध्ययन और अनुभव हैं। हमें राहुलजी की भांति उनका भी आदर करना चाहिए। उपहास तो किसी का भी नहीं। भूलकर नहीं। कभी मिले तो उनसे ही बात करेंगे। बहुत लंबा एकालाप हो गया।

(समाप्त)

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