शस्त्र ,शास्त्र एवं स्वास्थ्य विज्ञान के विलक्षण वैज्ञानिक भारत रत्न डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम

शस्त्र ,शास्त्र एवं स्वास्थ्य विज्ञान के विलक्षण वैज्ञानिक भारत रत्न डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम
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डॉ.सुखदेवमाखीजा स्वास्थ्य प्रशिक्षक तथा समसामयिक लेखक एवं समीक्षक

स्वदेश वेबडेस्क। सामरिक रूप से शत्रु संहारक घातकीयआधुनिकशस्त्रोंकी संकल्पना ,संयोजन तथा सरंचना के लिए विश्व विख्यात "मिसाईलमेन",पूर्व महामहिम राष्ट्रपति , भारत रत्न डॉ.अब्दुल कलाम की मानवीय संवेदनाओं के अनेक प्रसंगों में से एक है उनकी जन स्वास्थ्यके प्रति अभिरुचि | उन्होंनेजनसामान्यके लिए लाभदायक स्वदेशी तकनीक पर आधारित जीवन रक्षक "मेडीकलडिवाइस" की संकल्पना भी की थी | देश के अग्रणी ह्रदय विज्ञान विशेषज्ञ पद्म श्री डॉ. बी.सोमाराजू के सहयोग से भौतिक, अन्तरिक्ष,आणविक विज्ञानी डॉ. अब्दुल कलाम नेदिल की बंद रक्त धमिनियों को खोलकर ह्रदयके निरंतर रक्त संचार प्रवाह के उपयोग हेतु वर्ष1998मेंएक स्वदेशी "कोरोनरीस्टेंट" कीसंरचना का विकास भी किया | बहुत ही कम मूल्य के इस स्वदेशीचिकत्सीय उपकरण का नाम "कलाम–राजूस्टेंट" रखा गया है | इसके अतरिक्त डॉ.सोमाराजूकी सहभागिता से ही वर्ष2012में डॉ.कलाम ने ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में उपयोग हेतु अतिसाधारण"हेल्थकंप्यूटर टेबलेट " की" डिजाइन" भी विकसित की ; इस सरल स्वदेशी इलेक्ट्रो-मेडिकल लघु उपकरण कानामकरण भी "कलाम–राजू-टेबलेट" रखा गया |

त्रिशूल, अग्नि,पृथ्वी,आकाश, नाग एवं ब्रह्मोज़ प्रक्ष्येपास्त्रों(मिसाईल) कीसरंचनाओं के जनक, आणविक शक्ति विज्ञानी, विज्ञान एवं मनोविज्ञान लेखक ,दर्शनशास्त्री"डॉ.अवूर पारिक ज़ैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम" का जीवन सशक्तइच्छाशक्ति तथाविलक्षण विद्वतासेपरिपूर्ण होने के साथ साथ "मनसा, वाचा,कर्मणा"रूप से सादगीतथा मानवीय सम्वेदनाओं से ओतप्रोत भी था | उनके नैसर्गिक बहुमुखी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनेक विश्व विख्यात प्रसंगों में से एक है उनका जीवदया पूर्ण व्यवहार | " रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के संचालनकेकार्यकाल में संगठन के मुख्यालय भवन की चारदीवारी के निर्माण के समय उन्होंने दीवार के ऊपर कांच के नुकीले टुकड़े इस कारण नहीं लगवाएकि पक्षी बिना घायल हुए दीवारों पर विश्राम कर सकें |

15 अक्टोबर 1931 के दिन रामेश्वर (तमिल राज्य ) में जन्में, कर्तव्यनिष्ठा के प्रतिरूप " श्रीमदभगवतगीताज्ञान मर्मज्ञ" कर्मयोगी 84 वर्षीय डॉ अब्दुल कलाम ने अंतिम श्वास भी शिलोंग,मेघालयमें27 जुलाई 2015के दिन आयोजित एक वैज्ञानिक संगोष्ठी में सक्रिय सहभागिता करते हुए ली | उनकी कर्मठ विचारधारा के अनुरूप उनकी इच्छानुसार उनके देहावसान के शोक में भी बिना किसी घोषित अवकाश के देश के सभी कार्यालयों एवं प्रतिष्ठानों में सभी कार्य निरंतर रूप से होते रहे |

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