वेद भारतीय सनातन संस्कृति के आधार

वेद भारतीय सनातन संस्कृति के आधार
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डॉ. राघवेंद्र शर्मा

वेद भारतीय सनातन संस्कृति के आधार तो हैं ही, आधुनिक विश्व के लिए भी शोध का विषय हैं। सच तो यह है कि भारत के अलावा विश्व के अनेक विद्वान वेदों में ही भविष्य के विज्ञान की राह तलाशते दिखाई देते हैं। इसके परिणाम और प्रमाण समय-समय पर विभिन्न समाचार माध्यमों में देखने को मिलते हैं। आशय स्पष्ट है, जब तक भारतीय विद्वान, बड़े-बड़े ऋषि महामुनि वेदों का अध्ययन करते रहे, तब तक भारत निरंतर विश्व गुरु बना रहा और विद्वता के क्षेत्र में सर्वोच्च शिखर पर सुशोभित रहा। हम ब्रह्मांड के प्रादुर्भाव काल से ही विश्व का मार्गदर्शन करते रहे। यह सत्य इस बात से परिलक्षित होता है कि मुगलों और अंग्रेजों द्वारा किए गए हमले से पूर्व बड़े-बड़े देशों के विद्यार्थी भारत में ही विद्या अध्ययन हेतु आया करते थे। इस बात पर हमारे पूर्वजों ने भले ही ध्यान नहीं दिया, लेकिन विदेशी आक्रांता हमारी इस सनातन कालीन धरोहरों को यहां से अपने देशों को ले जाते रहे। आज हमारे देश के स्वयंभू बुद्धिजीवियों को भले ही अपनी संस्कृति के आधार वेदों, पुराणों, शास्त्रों और ग्रंथों को पढ़ने में पिछड़ेपन की अनुभूति होती हो, लेकिन जो विदेशी आक्रांता इन अनमोल धरोहरों को अपने यहां ले गए थे, अब वे वहां बैठकर हमारे मार्गदर्शक बनने के उद्यम में लगे हुए हैं। क्योंकि उनके पास अब उन वेदों के अंश हैं जिनमें केवल धर्म ही नहीं अपितु चिकित्सा विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन और खगोल विज्ञान तक समाए हुए हैं। यही नहीं, ज्योतिष विद्या का मूल मंत्र भी वेदों में ही समाहित है। संभवत: इसीलिए ज्योतिषीय ज्ञान को वैदिक ज्योतिष के नाम से पहचाना जाता है। जिसमें आकाश मंडल के ग्रह राशियां और नक्षत्र अपने समस्त रहस्यों के साथ विराजमान हैं। वैदिक ज्योतिष के रूप में वेद यह भी बताते हैं कि इन तत्वों से पृथ्वी समेत समस्त ब्रह्मांड पर रहने वाले जीव जंतु और खासकर मनुष्य किस प्रकार प्रभावित होते हैं। कैसे राशि चक्र, नवग्रह आदि व्यक्ति की जन्म राशि को प्रभावित करते हैं। किंतु यह सब समझना इतना आसान भी नहीं होता। इसके लिए हमें वैदिक ज्योतिष का अध्ययन करना होता है। अध्ययन करने पर हम पाएंगे कि वैदिक ज्योतिष में राशि चक्र के निर्धारण हेतु 300 डिग्री का एक आभासीय पथ निश्चित है। इस पथ पर आने वाले तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाता है और ऐसे नक्षत्रों की कुल संख्या 27 बताई गई है। यदि इन 27 नक्षत्रों को 360 डिग्री के आभासीय पथ पर विभाजित करें तो प्रत्येक भाग अर्थात नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का होता है।

राशियों की दृष्टि से देखें तो उन्हें भी इसी 360 डिग्री के आभासीय पथ पर 12 भागों में बांटा गया है। जिसे भचक्र कहते हैं। भचक्र में कुल 12 राशियां होती हैं। प्रत्येक राशि 30 डिग्री लिए हुए रहती है, जिसमें सबसे पहला नक्षत्र है अश्विनी। इसीलिए इसे पहला तारा माना जाता है। इसके बाद भरणी फिर कृतिका, इस प्रकार क्रमबद्ध 27 नक्षत्र आते हैं। पहले दो नक्षत्र अश्विनी और भरणी से पहली राशि मेष का निर्माण होता है। इसी क्रम में शेष नक्षत्र भी अन्य राशियों का निर्माण करते हैं। यह तो सभी जानते हैं कि सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि और राहु केतु को नवग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है। सभी ग्रह अपने गोचर में भ्रमण करते हुए राशि चक्र में कुछ समय के लिए ठहरते हैं। इस दौरान यह सभी उक्त राशि चक्र को प्रभावित करते हैं जिसे राशिफल कहा जाता है। वैदिक ज्योतिष स्पष्ट करता है कि राहु केतु आभासीय ग्रह हैं। आधुनिक विज्ञान के मुताबिक नक्षत्र मंडल में इनका वास्तविक अस्तित्व नहीं है। जबकि वैदिक ज्योतिष अनुसार यह दोनों राशि मंडल में गणितीय बिंदु के रूप में स्थित हैं।

अब सवाल उठता है कि हमें आकाश में स्थित सूर्य, चंद्रमा, तारे घूमते दिखाई क्यों देते हैं? इस बाबत भी वैदिक ज्योतिष स्पष्ट करता है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। यही कारण है कि सभी ग्रह नक्षत्र और राशियां 24 घंटे में एक बार पूर्व से पश्चिम की ओर घूमते प्रतीत होते हैं। इस प्रक्रिया में सभी राशियां और तारे 24 घंटे में एक बार पूर्वी क्षितिज पर उदित और पश्चिमी क्षितिज पर अस्त होते नजर आते हैं। इसी का प्रभाव है कि एक निश्चित बिंदु और काल के दौरान राशि चक्र में एक विशेष राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित होती है। इस दौरान जो जातक जन्म लेता है। उस समय उस अक्षांश और देशांतर में जो राशि पूर्व दिशा में उदित होती है वह राशि उक्त जातक का जन्म लग्न कहलाती है। जातक के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में अवस्थित होता है, उस राशि को जन्म राशि अर्थात चंद्र लग्न के नाम से पहचाना जाता है।

लिखने का आशय यह कि वेदों की तरह वैदिक ज्योतिष भी आधुनिक विज्ञान से किसी भी दृष्टि में दोयम दर्जे का नहीं ठहराया जा सकता। बल्कि वैदिक ज्योतिष इसलिए भी श्रेष्ठ है क्योंकि जहां आधुनिक विज्ञान ग्रहों नक्षत्रों से ब्रह्मांड पर पड़ने वाले भौतिक प्रभावों को ही प्रामाणिकता प्रदान कर पता है। जबकि वैदिक ज्योतिष सनातन काल से ही उन प्रभावों का छिद्रांवेषण करने में समर्थ रहा है, जो आधुनिक विज्ञान के बूते की बात नहीं। आशय स्पष्ट है कि आधुनिक विज्ञान के हवाले से धीरे-धीरे जो कुछ सामने आ रहा है अथवा आने वाला है। वह पूर्व से ही वेदों अथवा वैदिक ज्योतिष में अन्वेषित है। उदाहरण के लिए एआई यानि कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी की बात करें तो यह तकनीक वस्तु दृश्य अथवा जीव में आभासीय परिवर्तन करने की क्षमता रखती है। जबकि वेदों के बाद सृजित अनेक ग्रंथों में इस प्रकार के चमत्कार लेखी में दर्ज हैं। उदाहरण के लिए शिव जी के शाप से कामदेव का अनंग (अदृश्य) हो जाना। अर्जुन द्वारा बृहनल्ला (किन्नर) का रूप धारण किया जाना अथवा कुबेर द्वारा बगैर श्रम किए ही क्षण भर में सर्व सुविधा संपन्न लंका का निर्माण कर दिया जाना। वेदों सहित अन्य सनातन पुराणों, शास्त्रों और ग्रंथों का अध्ययन करने के बाद सहज ही यह दावा किया जा सकता है कि भविष्य में जो भी अत्याधुनिक प्रमाण आधुनिक विज्ञान और एआई के माध्यम से सामने आने वाले हैं, उन पर पूर्व से ही हमारे वेद शास्त्र आधिपत्य स्थापित किए हुए हैं, इसमें संशय नहीं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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