विश्वकर्मा जगत की अभियांत्रिकी तथा सृजन ऊर्जा के वाहक
यह एक अद्भुत संयोग है कि नवीन भारत निर्माण के प्रथम भारतीय अभियंता के जन्मदिन पर अभियंता दिवस 15 सितंबर को मनाते है, तथा 2 दिन बाद ही 17 सितम्बर को इस धरा के प्राचीनतम अभियंता जो कि निर्माण एवं सृजन के देवता के रूप में पूज्य हैं, श्री विश्वकर्मा को विश्वकर्मा दिवस के रूप में स्मरण करते हैं। भारत भूमि को जीवन विकास की हर विधा के शोध, सिद्धांत तथा नवाचार हेतु सदैव अग्रणी रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। श्री विश्वकर्मा की दैवीय ऊर्जा से उस समय जीवन विकास के आवश्यक शिल्पों का रूपांकन व क्रियान्वयन हुआ,जब अभियांत्रिकी के कोई भी सिद्धांत तथा अवधारणाएं विश्व के अन्य क्षेत्र में प्रचलित नहीं थी।
श्री विश्वकर्मा की सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, शक्ति-सम्पन्ता और अनन्तता प्राचीन वेदों में दर्शाई गयी है। इसी अवधारणा के आधार पर देव विश्वकर्मा के गुणों को धारण करने वाले श्रेष्ठ पुरुष को विश्वकर्मा की उपाधि से अलंकृत किया जाने लगा। भारतीय संस्कृति के अंतर्गत शिल्प संकायो, कारखानों, उद्योगों में देव विशवकर्मा की महता को आत्मसात करते हुए प्रत्येक वर्ष 17 सितम्बर को श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस उत्पादन-वृदि ओर राष्ट्रीय समृद्धि के लिए एक संकल्प दिवस है तथा जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान नारे को भी श्रम दिवस का संकल्प समाहित किये हुऐ है। यह पर्व श्री विश्वकर्मा की आशीर्वाद को प्राप्त करने तथा उनके आभार के लिए श्रद्धापूर्वक अभियांत्रिकी, शिल्पियों, वास्तु शास्त्रियों तथा सृजन कर्ताओं के लिए विशेष रूप से पूज्यनीय है।
वास्तुपुरूष की ऊर्जाओं की संकल्पना तथा प्रत्येक शिल्प व सृजन के लिए देव विश्वकर्मा की पवित्र दिव्य ऊर्जा के साथ को भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्व दिया गया है। कोई भी नवीन नवाचार, संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए दोनों देवताओं की चेतना के सहारे सृजन तथा उपरांत सृजित उपकरणों, मशीनों, निर्माण के निरंतर कार्यरत रहने की मान्यता के प्रति आभारी होने के लिए श्री विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है। आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा भी ये तथ्य स्थापित हो चुका है कि दिव्य की ऊर्जा तथा भौतिक स्वरूप परस्पर परिवर्तनीय होते हैं। अर्थात प्रत्येक सृजन जो भौतिक स्वरूप में है वह ऊर्जा का ही परिवर्तित स्वरूप है। इसी निर्माण तथा सृजन ऊर्जा के अधिष्ठाता श्री विश्वकर्मा है। सम्पूर्ण विश्व में जितने भी प्रकार के सृजन तथा निर्माण अथवा यांत्रिक उपकरण उत्पादित या निर्मित किए गए हैं, सबकी सफलता की पृष्ठभूमि में श्री विश्वकर्मा की दिव्य ऊर्जा का आशीर्वाद निहित है। यह अभुपूर्व संकल्पना भारतीय विचारकों तथा सर्वोच्च ज्ञान के पुरोधाओं द्वारा ही स्थापित की गई है। जब कभी भी या कहीं भी सृजन का निर्माण पूरा नहीं हो पाता अथवा असफल रह जाता है तो, वह इस तथ्य का संकेत है कि सृजन के देव की दिव्य ऊर्जा को समाहित करने में कहीं न कहीं कोई कमी रह गई है।
इसी संदर्भ में आधुनिक भारत के प्रथम निर्माण अभियंता को भी निश्चित रूप से देव विश्वकर्मा का आशीर्वाद प्राप्त था, जिसके सानिध्य में उनकी भूमिका ज्ञान तथा कौशल अभियांत्रिकी के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुई। आधुनिक भारत के समस्त अभियंता उनके कौशल ज्ञान गरिमा को अपने जीवन में अनुकरणीय मानते हुए अभियंता दिवस पर उन्हें स्मरण करते हैं। आज जितने भी अभियंता, शिल्पकार, निर्माण से जुड़े समस्त मानव तथा औद्योगिक क्षेत्र के व्यक्ति हैं, सभी देव विश्वकर्मा की दिव्य ऊर्जा के वाहक हैं, तथा इस दिव्य ऊर्जा की गरिमा को बनाए रखने की प्रबल आवश्यकता है। विकास के क्षेत्र में निरंतर विभिन्न चुनौतियों ने सभी सृजनकर्ता बल के वाहकों का मनोबल प्रभावित कर रहीं है, परंतु समय की मांग है कि अपने कौशल, ज्ञान तथा समर्पण को नष्ट न होने दें तथा देव विश्वकर्मा की आराधना कर उनकी दिव्य ऊर्जा का सानिध्य प्राप्त करें।