ऐसे संयुक्त राष्ट्र संघ का औचित्य क्या है?

ऐसे  संयुक्त राष्ट्र संघ का औचित्य क्या है?
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अशोक मधुप

पिछले एक माह से ज्यादा समय से हमास पर इस्राइल के हमले जारी हैं। रूस- यूक्रेन युद्ध एक साल दस माह से ज्यादा से जारी है। तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में की गई बरबादी पूरी दुनिया ने देखी। संयुक्त राष्ट्र संघ मानव जीवन की बरबादी देख रहा है। यह असहाय बना बैठा है। मानव जीवन का विनाश रोकने के लिए वह कुछ नहीं कर पा रहा। उसकी भूमिका शून्य होकर रह गई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जब संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नहीं कर सकता। युद्ध रोकने की उसकी शक्ति नहीं तो उसका औचित्य क्या है? अब हमास- इस्राइल युद्ध को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र में प्रयास चल रहे हैं। कई बार प्रस्ताव के प्रयास हुए पर वीटो पावर वाले देशों के अडं़गे के कारण कुछ नहीं हो सका। हाल में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस युद्ध को रोकने के लिए सर्वसम्मत प्रस्ताव स्वीकार किया, किंतु इस्राइल ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। होना यह चाहिए था कि प्रस्ताव होता कि हमास ने इस्राइल पर हमला किया है, वह इस्राइल के नुकसान की भारपाई करे। इस्राइल के बंदी रिहा करे। ये भी व्यवस्था होती कि भविष्य में हमास ऐसा दुस्साहस न कर सकें।

सब चाहते हैं कि इस्राइल युद्ध रोके। कोई ये पहल नही कर रहा कि पहले हमास इस्राइल के बंदी रिहा करे। इस्राइल के हमलों में बच्चों और महिलाओं के मरने की बात हो रही है। हमास के हमले में इस्राइल में बच्चों- महिलाओं का जिस तरह कत्ल किया गया, उनकी गर्दन काटी गई। उसका कहीं जिक्र नहीं हो रहा। इस तरह का दोहरा आचरण दुनिया का विखंडित ही करेगा, रोकेगा नही। पिछले एक साल दस माह से रूस -यूक्रेन युद्ध जारी है। इस युद्ध में मरने और घायल होने वाले दोनों देशों के सैनिकों की संख्या पांच लाख के आसपास है।अपने सैनिकों की मौत के बारे में न रूस कुछ बता रहा है, न ही यूक्रेन। अनुमान के मुताबिक युद्ध से रूस के तीन लाख सैनिक प्रभावित हुए हैं। एक लाख तीस हजार सैनिक की मौत हुई है। वहीं एक लाख सत्तर हजार से एक लाख अस्सी हजार तक सैनिक घायल हैं। वहीं यूके्रन के 70 हजार के आसपास सैनिकों की मौत हुई है। जबकि एक लाख से एक लाख बीस हजार तक घायल हुए हैं। इस युद्ध में पांच लाख से ज्यादा परिवार विस्थापत हुए। इतना सब होने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को नहीं रोक पाया। न रोक पा रहा है। इस युद्ध से दोनों देशों के विकास तो रुका ही। मानव कल्याण के लिए भवन, पुल, स्कूल और उद्योग खंडहर बन गए।

ये दोनों देश बड़े नाज उत्पादक देश हैं। इनके युद्ध के कारण दुनिया के अन्य देशों को होने वाली अनाज की आपूर्ति रुकी है। इससे पूरी दुनिया में मंहगाई बढ़ रही है। आज संयुक्त राष्ट्र महासभा एक ऐसा संगठन बनकर रह गया है जो कुछ देश के हाथों की कठपुतली है। न अपनी ताकत का प्रयोग कर सकता है ना अपनी क्षमता का। संयुक्त राष्ट्र महासभा के गठन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विश्व में शांति कायम करना है। आज के हालात को देखते हुए लगता है कि अपने सबसे बड़े कार्य का दायित्व निभाने में वह सक्षम नहीं है। पांच वीटो पावर देश उसे अपनी मर्जी से नचा रहे हैं। उनके एकजुट हुए बिना संयुक्त राष्ट्र महासभा कुछ नहीं कर सकता। ये पांचों विटो पावर देश खुद खेमों में बंटे है। ऐसे में सर्व सम्मत प्रस्ताव पास होना एक प्रकार से नामुमकिन हो गया है।

म्यांमार में सेना का जुल्म कायम है। चीन में उइगर मुसलमानों पर जुल्म जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। यह इन्हें रोकने के लिए कुछ नहीं कर रहा। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान की बरबादी दुनिया ने देखी। पूरा विश्व सब देखता रहा। कोई कुछ नहीं कर सका। आज जरूरत आ गई है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की उपयोगिता पर विचार किया जाए। इसे उपयोग उपयोगी बनाने पर कार्य किया जाए। खड़ा किया जाए ऐसा ढांचा कि एक देश दूसरे देश का मददगार बने। मुसीबत में उसके साथ खड़े हो, उसकी रक्षा कर सकें। ऐसा नहीं आपदा के समय सिर्फ तमाशा देखें। सब दुनिया के सभी देश बराबर हैं तो पूरी दुनिया के पांच देशों को ही वीटो पावर का अधिकार क्यों? इस पर विचार किए जाने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र संघ में डिक्टेटरशिप लागू नहीं है जो किसी का निर्णय फाइनल होगा। किसी निर्णय को रोक सकेगा। आज के हालात में सामूहिकता बढ़ाने ,सामूहिक निर्णय पर चलने, सामूहिक विकास का सोचने की जरूरत है। और एक ऐसे संगठन की दुनिया को जरूरत है जो निष्पक्ष और तटस्थ होकर के पूरी दुनिया में शांति स्थापना के लिए काम कर सके। ऐसे संगठन की जरूरत नहीं है जिसमें चार या पांच दादाओं का ही निर्णय चलें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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