भारत नाम पर आपत्ति किन्हें है
जी 20 के नेताओं के सम्मान में राष्ट्रपति द्वारा भोज के आमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखने के साथ तूफान खड़ा हुआ है। अभी तक नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से नहीं कहा गया है कि 18 सितंबर से 22 सितंबर तक के संसद के विशेष सत्र में वे देश का नाम केवल भारत रखने के लिए संशोधन ला रहे हैं। हालांकि यह दुखद स्थिति है कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया तो हमें स्वीकार्य है लेकिन प्रेसिडेंट ऑफ भारत नहीं। संविधान के अनुच्छेद 1 में भी लिखा है, इंडिया दैट इज भारत। यानी इंडिया जो भारत है। इस तरह संविधान ने दोनों नाम को मान्यता दी है। तो इंडिया की जगह भारत लिखने से आपत्ति क्यों?
वास्तव में भारत लिखने पर हो रही राजनीति हतप्रभ करने वाली है। समाजवादी धारा की पुरानी मांग है कि देश का नाम इंडिया नहीं केवल भारत होना चाहिए। डॉ. राम मनोहर लोहिया संपूर्ण जीवन इसके लिए आवाज उठाते रहे। वे अंग्रेजी और अंग्रेजियत यानी अंग्रेजों के संपूर्ण अवशेषों को समाप्त करने के पक्ष में थे। कहा जा रहा है कि इसके नाम तो कई थे, आर्यावर्त, जंबूद्वीप, अजनाभवर्ष, हिंदुस्तान, भारतखंड, भारतवर्ष आदि-आदि। वाकई था क्या इंडिया इन्हीं सब नामों का पर्याय है? भारत नाम कब और क्यों पड़ा इसके इतिहास में न जाएं तो भी यह प्रश्न तो किया ही जा सकता है कि इंडिया रखे जाने के पूर्व भारत के नाम से यह भूखंड प्रचलित था या नहीं? अंग्रेजों के पहले इस देश को भारत नाम से जाना जाता था या नहीं?
पिछले 2000 वर्ष का किसी भारतीय भाषा का प्राचीन ग्रंथ उठा लीजिए, भारत नाम ही मिलेगा। क्या तमिल लोग भारत नाम का उपयोग नहीं करते थे? क्या कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, उड़िया, मराठी, पंजाबी आदि में भारत की जगह और नाम था? फिर आपत्ति क्यों? कहा जा रहा है कि संविधान निर्माताओं ने जब दोनों नाम रख दिया तो एक पर जोर क्यों? संविधान सभा में इस पर मतभेद था। पर बहस देखें तो अनेक सदस्यों ने इंडिया दैट इज भारत पर आपत्ति उठाई। फारवर्ड ब्लॉक के सदस्य हरि विष्णु कामथ से लेकर सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, के. वी. राव, श्रीराम गुप्ता , हरगोविंद पंत आदि ने भारतीय वांग्मय का उल्लेख करते हुए आग्रह किया कि भारत नाम हमारे होने का अर्थ स्पष्ट करता है। संविधान सभा में कुछ ऐसे प्रस्ताव भी पारित हुए जिनके पक्ष में मत देने वाले भी उससे सहमत नहीं थे। कई बार परिस्थितियां कुछ बातों का समर्थन करने को विवश करती हैं और उस समय सोच यही होती है कि आगे इसमें बदलाव लाया जाएगा।
इंडिया नाम औपनिवेशिक मानसिकता का द्योतक है। औपनिवेशिक अवशेष खत्म करने पर भारत में आम सहमति होनी चाहिए थी। दुर्भाग्य से हमारी शिक्षा प्रणाली तथा राजनीति में तीखे मतभेद ने इस स्वाभाविक स्थिति को उत्पन्न ही नहीं होने दिया। संविधान सभा में यह बहस आने तक गांधी जी की दुखद हत्या हो चुकी थी। भारत राष्ट्र संबंधी उनके विचारों को देखें तो साफ लगेगा कि वो इंडिया पर सहमत नहीं होते।
लाखों वर्ष पूर्व संस्कृत ग्रंथों में भारत का उल्लेख मिलता है। दो उदाहरण लीजिए। श्रीमद्भागवत पुराण के पंचम स्कंद के सप्तम अध्याय के मन्त्र तीन में कहा है। - अजनाभम् नामैलद्धर्शम् ,भारत निति यत आरम्भ व्यपदिषन्ति। अर्थात:- इस वर्ष ( राष्ट्र) को जिसका नाम पहले अजनाभवर्ष था, राजा भरत के समय से ही भारतवर्ष कहते हैं।
भारत वर्ष (भारत राष्ट्र) के विषय में सतयुग अर्थात आज से लाखों वर्ष पूर्व जब भारत में वैदिक चिन्तन प्रकट हो रहा था उस समय कहा गया - (श्रीमद्भागवत पंचम स्कंद अध्याय -7)
तत्रापि भारतमेव वर्ष कर्म क्षेत्रम् अन्यान्यष्ट वर्षाणि स्वर्गिणाम्।पुन्यशेषोप योगस्थानानि भौमानि स्वर्गपदानि व्यपदिषन्ति ।।
अर्थात-इन सब वर्षों (राष्ट्रों) में भारतवर्ष ही कर्म भूमि है। शेष आठ वर्ष (राष्ट्र) तो स्वर्गवासी पुरुषों के पुण्यशेष को भोगने के स्थान हैं। इसलिये उनको भूलोक का स्वर्ग भी कहते है।
विष्णु पुराण में भारत की भौगोलिक सीमा भी स्पष्ट की गई है। उत्तरं यत् समुद्रस्य,हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्ष तद् भारतं नाम, भारती यत्र सन्तति:।।
अर्थात्- समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसका नाम है भारत, जिसकी सन्तति भारती के नाम से प्रसिद्ध है अथवा जहां भरत की सन्तति का वास है। विष्णुपुराण में भारत के पर्वतों, प्रदेशों, नदियों, निवासियों के वर्णन के बाद बताया गया है कि भारत कर्मभूमि है जबकि अन्य सभी भूमियां भोगभूमि हैं। अत: जम्बूद्वीप में भारत सर्वश्रेष्ठ देश है।
इस श्लोक को देखिए -गायन्ति देवा: किल गीतकानि
धन्यास्तु ते भारतभूमि भागे। स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
भवन्ति भूय:पुरुषा: सुरत्वात््।।
भारत की प्रशंसा में गीत गाते हुए देवगण भी कहते हैं कि वे धन्य हैं, जिनका जन्म भारत में हुआ है क्योंकि यहां के निवासी उत्तम सकाम कर्म करते हुए स्वर्ग की ओर ज्ञान या भक्ति से युक्त निष्कामम कर्म करते हुए मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। अत: वे देवताओं से भी श्रेष्ठ हैं।
क्या इंडिया नाम से ये अर्थ प्रकट हो सकते हैं? भारत केवल भूखंड नहीं ऐसी सभ्यता - संस्कृति और जीवन दर्शन का नाम था इस क्षेत्र के लोगों ने जिसे अपनी जीवनशैली के रूप में अपनाया था। यही भारत की पहचान है जो संपूर्ण सृष्टि के कल्याण का रास्ता दिखाता है। भारतबोध के अभाव में ही यह स्थिति पैदा हुई है। राजनीतिक दलों को आपसी मतभेद भुला कर औपनिवेशिक सोच वाले नाम इंडिया को खत्म कर केवल भारत रहने देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)