क्यों किसिंजर से दिल्ली में नहीं मिली थीं इंदिरा गांधी

क्यों किसिंजर से दिल्ली में नहीं मिली थीं इंदिरा गांधी
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विवेक शुक्ला

हेनरी किसिंजर के निधन से अमेरिका ने चोटी स्टेट्समैन और कूटनीति के गहन जानकार को खो दिया है। अमेरिका की विदेश नीति में हेनरी किसिंजर की दशकों छाप रही। पर उन्हें भारत में पसंद नहीं किया जाता था क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग के समय अमेरिका का पाकिस्तान के साथ खड़ा होने के बाद हेनरी किसिंजर की छवि एक काईंया या कहें कि धूर्त नेता की बनी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और जेरल्ड फोर्ड की सरकार में हेनरी किसिंजर के पास ही विदेश नीति की कमान थी। इस पृष्ठभूमि में अमेरिका के विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर 27 अक्टूबर 1974 को भारत आए। तब तक जंग की यादें ताजा थीं। भारत की जनता और सरकार किसिंजर को नापसंद करते थे। पालम एयरपोर्ट पर उनका बहुत ठंडा स्वागत हुआ। हां, उन्हें एयरपोर्ट विदेश मंत्री वाई.बी. चव्हाण लेने पहुंचे थे। पर उनके दिल्ली आते ही प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी कश्मीर की यात्रा पर चली गईं थीं। उन्हें सीमावर्ती इलाकों में सैनिकों से मुलाकात करनी थी। इसके अलावा उनका तिब्बतियों के शिविरों में जाने का भी कार्यक्रम था। हमेशा विवादों में रहे हेनरी किसिंजर के गुरुवार को निधन ने उनकी 1974 की नई दिल्ली यात्रा की यादों को ताजा कर दिया।

हेनरी किसिंजर राजधानी की तीन दिवसीय यात्रा पर अपनी पत्नी नैंसी के साथ पधारे थे। पालम एयरपोर्ट में उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा था-'भारत-अमेरिका के संबंधों में गुणात्मक सुधार हुआ है। दुनिया के दो महानतम लोकतांत्रिक देशों के लक्ष्य समान हैं। हमारे बीच बातचीत जारी रहनी चाहिए। इसलिए ही मैं भारत सरकार और विदेश मंत्रालय के निमंत्रण पर यहां आया हूं।Ó बहरहाल, किसिंजर ने भारत के संबंध में जो कुछ भी राय जाहिर की हो पर उनका यहां पर खासा फीका स्वागत हुआ था। इस बात को अमेरिका के प्रमुख अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने अपनी 28 अक्टूबर, 1974 की रिपोर्ट में साफ लिखा था। किसिंजर अपने भारत दौरे के बाद बांग्लादेश की यात्रा पर चले गए थे। किसिंजर की यात्रा को लेकर भारत के बुझे-बुझे रुख पर कूटनीति के जानकारों का कहना था कि किसिंगर को भारत ने आईंना दिखा दिया है। किसिंजर इससे पहले 1971 में भारत आए थे।

कौन दिखा रहा था किसिंजर को काले झंडे

हेनरी किसिंजर की 1974 की भारत यात्रा सच में काफी कठिन थी। एक तो उनका यहां पर भारत ने कायदे से आदर-सत्कार नहीं किया जिसकी वे उम्मीद कर रहे थे, दूसरा जब वे पालम एयरपोर्ट से राष्ट्रपति भवन आ रहे थे तब सड़क पर उन्हें काले झंडे दिखाए जा रहे थे। प्रदर्शन कारियों के हाथों में बैनर थे। उन पर लिखा था 'भारत की स्वतंत्र नीति का दुश्मनÓ। प्रदर्शनकारी नारेबाजी के दौरान उन्हें चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे का हत्यारा भी कह रहे थे। बता दें 11 सितंबर, 1973 को, चिली सेना के कमांडर-इन-चीफ जनरल ऑगस्टो पिनोशे के नेतृत्व में तख्तापलट के दौरान बंदूक की गोली से चिली के राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे की मृत्यु हो गई। प्रदर्शनकारियों का संबंध वामपंथी संगठनों से था। हेनरी किसिंजर 1974 के बाद भी भारत आते रहे।

अपने दशकों लंबे कॅरियर के दौरान हेनरी किसिंजर ने अमेरिकी विदेश नीति और सुरक्षा नीति में अहम और कई बार विवादित भूमिका निभाई। हेनरी किसिंजर का जन्म 1923 में जर्मनी में हुआ था। नाजी जर्मनी के दौर में उनका परिवार 1938 में भागकर अमेरिका पहुंचा था। किसिंजर 1943 में अमेरिकी नागरिक बन गए। किसिंजर जब अमेरिका आए तो किशोरावस्था में थे और उन्हें अंग्रेज़ी न के बराबर आती थी. लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता, इतिहास पर मज़बूत पकड़ और एक लेखक के रूप में अपनी कला के इस्तेमाल से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र से प्रोफ़ेसर तक का सफ़र तेज़ी से तय किया।

1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त कर दिया। इस पद ने उन्हें अमेरिकी विदेश नीति पर ग़हरा प्रभाव दिया। किसिंजर अकेले ऐसे व्यक्ति रहे जो एक ही समय में राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और अमेरिका के विदेश मंत्री रहे। उनकी अमेरिकी विदेश नीति पर ऐसी पकड़ थी जो किसी अन्य व्यक्ति की नहीं रही।

खैर, हेनरी किसिंजर के 100 वर्ष की उम्र में निधन से वर्ष 1971 की यादें ताजा हो गईं। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को फाड़कर बांग्लादेश बनवाया था, उस समय उनके और किसिंजर के बीच छत्तीस का आंकड़ा था। उस दौर में इंदिरा गांधी अमेरिका दौरे पर पहुंची थी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने ना केवल इंदिरा को दबाव में लेने की कोशिश की थी बल्कि मुलाकात से पहले उनके लिए अशोभनीय शब्दों का इस्तेमाल भी किया था। बहरहालल, हेनरी किसिंजर ने एक भरपूर जीवन जिया। उन्हें लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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