जमीन से ऑक्सीजन क्यों नहीं उगाते?
दिल्ली एनसीआर समेत 30 के आसपास नगर आज बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में हैं। इंडिया गेट, अक्षरधाम, रोहिणी, आनंद विहार समेत 13 इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 के ऊपर दर्ज किया गया। एक्यूआई 300 से ऊपर की रेंज बेहद खतरनाक कैटेगरी में मानी जाती है। हवा की क्वालिटी खराब होने पर कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (ष्ट्रक्तरू) ने दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (त्रक्र्रक्क) के थर्ड स्टेज को लागू कर दिया। त्रक्र्रक्क का स्टेज ढ्ढढ्ढढ्ढ तब लागू किया जाता है जब एक्यूआई 401-450 की सीमा में गंभीर हो जाता है। इसके चलते गैर-जरूरी निर्माण-तोड़फोड़ और रेस्टोरेंट में कोयले के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। बीएस-3 पेट्रोल और बीएस-4डीजल चार पहिया वाहनों के इस्तेमाल पर सरकार ने 20 हजार रुपए चालान काटने का निर्देश दिया है। प्रदूषण के कारण दिल्ली-एनसीआर में रहने वालों में अस्थमा जैसी बीमारी विकसित हो रही हैं । दिल्ली एनसीआर में सरकारी स्तर के प्रयास असफल होते देख हर वर्ष सर्वोच्च न्यायालय को दखल देना पड़ता है। सर्वोच्च न्यायालय प्रदेश सरकारों से प्रदूषणा रोकने के किए जा रहे उपाय पूछता है। प्रदेश सरकार उपाय के नाम पर की गई खानापूरी से अवगत करा देती हैं। मामला अगले साल के लिए टल जाता है। अगले साल शीत का मौसम आते ही फिर प्रदूषण की समस्या खड़ी हो जाती है। प्रदूषण की इस समस्या के स्थाई निदान के प्रयास क्यों नही होते? प्रदूषण वाले क्षेत्र में ऑक्सीजन क्यों नहीं उगाई जाती। क्यों नहीं सांसों के लिए जमीन से ऑक्सीजन उगाने के प्रबंध होते। प्रदूषण दूर करने के हमारे प्रयास कृत्रिम होते हैं। प्रकृति प्रदत्त संसाधन बढ़ाने की ओर हमारा ध्यान क्यों नहीं? इसके लिए हम अभियान क्यों नहीं चलाते?
ऑक्सीजन उगाने का प्रयोग उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में एक भगीरथ ने शुरू किया। पिछले तीन साल में बिजनौर में इतनी ऑक्सीजन उगा दी कि आने वाली संतति भी उसका लाभ उठाएंगी। कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर मारामारी मची थी। पूरी दुनिया ऑक्सीजन के लिए परेशान थी। एक -एक सिलेंडर के लिए हाय- तौबा मची थी, तब उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में कार्यरत बिजनौर नगर के विक्रांत शर्मा के मस्तिष्क में जमीन से ऑक्सीजन उगाने का विचार आया कि आज इंसान की सांसों का संकट है। सांसों के लिए ऑक्सीजन चाहिए। ऑक्सीजन को मशीन से पैदा करने की जगह जमीन से क्यों न पैदा किया जाए। इसके लिए उन्होंने पढ़ा और सोचा कि शहर के आसपास ऐसे वृक्ष लगाए जाएं जो 24 घंटे ऑक्सीजन देतें हैं। बस वह इस भगीरथ अभियान में लग गए। कोरोना काल में जब लोग घरों में बंद थे। वे अपने बेटे को लेकर सवेरे रेलवे लाइन और सड़क से निकल जाते। यहां उन्हें पीपल, बरगद, नीम आदि के 24 घंटे ऑक्सीजन देने वाले जो पौधे दिखाई देते, उन्हें आराम से निकाल लेते। इन पौधों को लाकर ये शहर की सड़कों के किनारे खाली जगह पर लगाने लगे। विक्रांत शर्मा ने ये पौधे लगाए ही नहीं उन्हें पानी दिया और पाला भी। पौधों की सुरक्षा के लिए ये बांस खरीदते। उसकी खप्पच बनाते। इन खप्पचों को पौधे के चारों ओर जमीन में गाड़कर ऊपर सबको आपस में बांध देते। पौधों की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर पुराना कपड़ा लगा देते। इनके इस जुनून को देख काफला बनना शुरू हो गया। इस काफले को इन्होंने नाम दिया पर्यावरण प्रहरी। आज इस काफले में 150 के आसपास कार्यकर्ता हैं। इन पर्यावरण प्रहरियों ने दो-ढाई किलोमीटर में बसे बिजनौर शहर में आज साढे ़ चार हजार से कहीं से ज्यादा ऑक्सीजन देने वाले पौधे लगा दिए।
जो काम बिजनौर शहर में विक्रांत शर्मा ने अकेले किया। वही काम सरकारी स्तर पर क्यों नहीं होता। सरकार प्रत्येक वर्ष बरसात में पौधरोपण करती हैं। करोड़ों पौधे लगाती हैं। यदि इनकी जगह 24 घंटे ऑक्सीजन देने वाले पौधे लगाए जाएं तो कितना बेहतर हो। नोएडा में कुछ मार्गों पर पीपल लगाने का काम हुआ भी है। विज्ञानियों का कहना है कि बरगद पेड़ अन्य पेड़-पौधे की अपेक्षा चार-पांच गुना अधिक ऑक्सीजन देता है। जाड़ों में आने वाली सांसों के संकट को खत्म करने के लिए ऑक्सीजन उगाने और नगरों को ऑक्सीजन बैंक में बदलना होगा। ये भी ध्यान रहे कि आज का लगाया पौधा आगे 50-60 साल तक जीवित रहकर जनता को मुफ्त में ऑक्सीजन देगा। पीपल, बरगद और नीम की आयु तो अन्य वृक्षों से और भी ज्यादा होती है। हमारा आज का लगाया पौधा हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी भरपूर ऑक्सीजन देता रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)