शुरू करने वाले तो बहुत थे खत्म करने वाला 'एक ही था'
जब कभी भी भारतीय टीम परेशानी में होती थी तो आपने अक्सर सुना होगा अभी तो धोनी बचा है संभाल लेगा। पर अब हमें ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिलेगा क्योंकि लोगों के दिलों में बने रहने के लिए माही ने टीम में अपनी जगह छोड़ दी। नि:संदेह किसी युवा को टीम में स्थान देने के लिए जिस तरह से उन्होंने कप्तानी छोड़ी थी विराट के लिए।
हो सकता है आप सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी, साहित्यकार, कवि, अभिनेता, राजनेता या अन्य किसी क्षेत्र में दिग्गज हों। पर यह आवश्यक नहीं कि आप सर्वमान्य हो और आम जनता के दिलों पर राज करें। इसके लिए कुछ और गुणों का होना आवश्यक है। देश में कई उद्योगपति हैं पर रतन टाटा का अपना ही स्थान है। इसी प्रकार देश में कई सफल अभिनेता हैं पर अक्षय कुमार और सोनू सूद का अपना ही स्थान है। वह आम जनता के दिलों पर राज करते हैं। हो सकता है कि वो सबसे सफल अभिनेता ना हों। इसी क्रम में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी का नाम लिया जा सकता है। उनके नाम पर बैटिंग और बॉलिंग के सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड नहीं हैं पर उनकी लोकप्रियता वास्तव में अद्वितीय है जो कि अभी हाल ही में क्रिकेट से लिए गए उनके संन्यास पर देशभर में जो प्रतिक्रियाएं मिलीं उससे विदित हुआ। यदि आपका पुरुषार्थ खुद के लिए है तो इतिहास की किताबों में राज करते हैं पर यदि आपको पुरुषार्थ दूसरों के लिए है, समाज के लिए है, देश के लिए है तो दूसरों के दिलों पर राज करते हैं। यह बात महेंद्र सिंह धोनी पर अक्षरश: चरितार्थ होती है। आइए आज उन बातों पर चर्चा करें जिन्होंने महेंद्र सिंह धोनी को लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाया।
समाज में हमेशा ही एक गलत धारणा रही है कि सफलता के शीर्ष तक पहुंचने के लिए आपको किसी महंगे और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय से शिक्षित होना चाहिए। आपको किसी उच्च वर्गीय परिवार का सदस्य होना चाहिए और सबसे बड़ी बात आपको किसी बड़े शहर से आना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि बड़े शहरों में रहने वाले व्यक्तियों का व्यक्तित्व अलग ही होता है। पर माही ने इसे गलत सिद्ध किया। झारखंड के एक छोटे से शहर रांची से आने के बाद भी वह देश के सबसे लोकप्रिय व्यक्तियों में शुमार रहे। उन्होंने इस भ्रांति को तोड़ा। यह वास्तव में उन लोगों के लिए प्रेरणास्पद है जो कि छोटे शहरों में रहते हैं और जीवन में एक मुकाम हासिल करना चाहते हैं। बड़े सपने देखते हैं वह उन्हें साकार करना चाहते हैं। माही उनके रोल मॉडल हो सकते हैं ड्डअवसर मिला उन्होंने ऐसा ही किया। 2008 श्रीलंका दौरे के दौरान वीरेन्द्र सहवाग घायल हुए। उनकी जगह पर धोनी ने विराट कोहली को अवसर दिया और उन्हें पारी की शुरुआत करने के लिए पूछा। कोहली तैयार हो गए पर सिर्फ 12 रन बनाकर आउट हुए। युवाओं की प्रतिभा को सिद्ध करने के लिए उन्हें पर्याप्त अवसर देना धोनी की हमेशा की विशेषता रही। उन्होंने पूरी सीरीज में कोहली को टीम में बनाये रखा। यदि वह ऐसा नहीं करते और शुरुआत के दिनों में कोहली को अवसर नहीं देते तो आज विराट कोहली इस मुकाम पर नहीं होते। एक बेहद प्रतिभाशाली खिलाड़ी भारत को ना मिलता। विराट कोहली खुद इस बात को स्वीकार करते हैं।
2016 में हार्दिक पांड्या ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया और पहले ही ओवर में 21 रन दे बैठे। उन्हें लग रहा था कि अब उन्हें दूसरे ओवर का अवसर नहीं मिलेगा। पर धोनी ने उन्हें दूसरा और डालने को कहा। इस ओवर में हार्दिक पंड्या ने दो विकेट लिए। और वह मैच भारत ने जीता। सचमुच किसी की सफलता पर तालियां बजाने से बेहतर है मुश्किल के समय में उसका हाथ थामना और धोनी ने इसे सतत चरितार्थ किया।
माही पारिवारिक मूल्यों और भारतीय संस्कृति में बेहद विश्वास करते हैं।
आज भी वह अपने माता-पिता के साथ रांची में रहते हैं। वह हमेशा ही कहते हैं कि माता-पिता ने हमारा ख्याल रखा जब हम छोटे थे अत: यह हमारा कर्तव्य कि हम वृद्धावस्था में उनका ख्याल रखें।
यदि कोई हमारे साथ अच्छा करता है तो उसके
एहसानों को कभी न भूलो और उसके एहसानों को चुकाने का अवसर कभी मत चूको। धोनी जिस शॉट के लिए विख्यात रहे वह था हेलीकॉप्टर शॉट। यह शॉट उन्होंने अपने दोस्त संतोष से सीखा था। 2013 में संतोष की तबीयत खराब हुई। धोनी ने उन्हें यथासंभव सहायता दी। उन्हें किसी अच्छे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराने के लिए उन्होंने एक प्राइवेट हेलीकॉप्टर तक भेजा था। पर दुर्भाग्यवश इसके पहले ही संतोष अंतिम सांस ले चुके थे।
किसी भी टीम गेम में अच्छा प्रदर्शन तभी किया जा सकता है जब टीम के कप्तान पर बाकी सभी सदस्य विश्वास करें। उसका सम्मान करें। धोनी टीम के सभी सदस्यों को बेहद सम्मान दिया करते थे यही कारण था कि सब एकजुट होकर उनके लिए अपना 100 प्रतिशत दिया करते थे। अपना अच्छे से अच्छा प्रदर्शन देने का प्रयत्न करते थे। इस एकजुटता व विश्वास के कारण उनकी कप्तानी में भारत ने आईसीसी के तीनों मेजर टूर्नामेंट जीते। 2007 में टी-20 वल्र्ड कप, 2011 में वनडे वल्र्ड कप तथा 2013 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी। टीम के सदस्यों को एकजुट रखने की धोनी में विलक्षण क्षमता थी।
ऐसा कहा जाता है कि 'लीडर शुड लीड बाय एग्जांपलÓ धोनी ने इसे साक्षात सिद्ध किया। भारतीय टीम जब 2015 का वल्र्ड कप खेल रही थी। तब धोनी के घर में बेटी ने जन्म लिया। माही कुछ दिनों के लिए भारत वापस जा सकते थे अपनी बेटी को देखने। यह उनके लिए संभव था। पर वो भारत वापस नहीं गए। उनका कहना था कि मैं नेशनल ड्यूटी पर आया हूं। कर्तव्य के प्रति यह अद्वितीय समर्पण रांची के एक साधारण से लड़के को इन ऊंचाइयों पर ले गय। अभ्यास के दौरान वो अपना मोबाइल अपने साथ नहीं रखा करते थे। उनकी धर्मपत्नी साक्षी को यह सूचना धोनी को पहुंचानी थी। साक्षी को यह समाचार सुरेश रैना के माध्यम से माही तक पहुंचाना पड़ा।
माही कभी भी व्यक्तिगत रिकॉर्ड्स के लिए नहीं खेले। उनके लिए कोई भी व्यक्तिगत उपलब्धि इतनी आवश्यक नहीं थी जितना कि टीम का प्रदर्शन। यही कारण था कि 90 टेस्ट खेल कर उन्होंने संन्यास ले लिया। जबकि क्रिकेट में 100 टेस्ट मैच खेलना एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। माही ने इसका इंतजार नहीं किया। उन्हें दूसरों को अवसर देना था।
यह एक कटु सत्य है और सभी को ना चाहते हुए भी स्वीकारना पड़ेगा कि भारतीय टीम का एक बेहद प्रतिभाशाली और विलक्षण खिलाड़ी माही क्रिकेट से रिटायरमेंट ले चुका है। पर यह बात भी उतनी ही सत्य है कि वह लोगों के दिलों से कभी रिटायर नहीं हो सकते। उन्होंने असंख्य लोगों के दिलों पर राज किया है और हमेशा करते रहेंगे।
अपने संन्यास की घोषणा के लिए उन्होंने साहिर लुधियानवी लिखित व मुकेश का गाया कभी-कभी फिल्म का यह गाना चुना मैं पल दो पल का शायर हूं... पल दो पल मेरी कहानी है... सत्य है जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं होता। पर भारतीय क्रिकेट को दिया गया तुम्हारा योगदान अमिट है, अमर है।
( लेखिका कवयित्री, स्तंभकार व सामाजिक कार्यकर्ता हैं।