MP बिग स्टोरी: चुनावी वादा बनकर रह गई पुलिस कर्मियों के लिए वीक ऑफ की घोषणा, दो CM के प्रयास के बावजूद कोई फैसला नहीं
चुनावी वादा बनकर रह गई पुलिस कर्मियों के लिए वीक ऑफ की घोषणा
MP Police Week Off System : मध्यप्रदेश। थोथा चना, बाजे घना...कांग्रेस सरकार की कथनी और करनी में फर्क फिर उजागर...पुलिसकर्मियों को एक दिन साप्ताहिक अवकाश देकर ढोल पीटा और अब फिर वही ढपली, वही राग! यह बात शिवराज सिंह चौहान ने 18 जनवरी 2019 को कमलनाथ सरकार पर निशाना साधते हुए कही थी।
शिवराज सिंह चौहान के इस ट्वीट के 17 दिन पहले, 1 जनवरी 2019 - कमलनाथ सरकार ने छाती ठोंकते हुए घोषणा की कि, उन्होंने चुनाव में किया अपना वादा पूरा कर दिया है। मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री के आधिकारिक एक्स हैंडल से बताया गया कि, 'नये साल में पुलिस कर्मियों को मिली सौगात। मुख्यमंत्री कमलनाथ के निर्देश पर 1 जनवरी 2019 से मैदानी स्तर के पुलिस कर्मियों को मिलेगा साप्ताहिक अवकाश। डीजीपी ने इसे लेकर निर्देश जारी किए हैं।
बड़ा सवाल - आखिर घोषणा के 18 दिन के अंदर ही शिवराज सिंह चौहान ने ऐसा क्यों कहा कि, फिर वही ढपली, वही राग...
इस पूरे मसले को समझने के लिए एक साल और पीछे चलिए..., यानी जनवरी 2018, मुख्यमंत्री थे शिवराज सिंह चौहान। उन्होंने जनवरी 2018 में बड़ी घोषणा करते हुए कहा था कि, पुलिसर्मियों को वीक ऑफ/साप्ताहिक अवकाश दिए जाने को लेकर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है। तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान की इस बात के बाद कुछ थानों में साप्ताहिक अवकाश की पहल शुरू की गई लेकिन इस पहल के आड़े आई स्टाफ और फ़ोर्स की कमी और धीरे - धीरे बात ठंडे बस्ते में चली गई।
2019 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे। इसे देखते हुए कांग्रेस तमाम तरह की घोषणा कर रही थी। उन्हीं में से एक घोषणा थी पुलिस कर्मियों के लिए। कमलनाथ ने नेतृत्व में कांग्रेस ने 23 नवंबर 2018 को अपने चुनावी हलफनामे में घोषणा की कि,
पुलिस कर्मचारियों को सप्ताह में एक दिन का अवकाश दिया जायेगा।
50000 पुलिसकर्मियों की भर्ती कर पुलिस बल की कमी को दूर करेंगे।
आवास भत्ता 5000 रुपए प्रतिमाह करेंगे।
प्रतिदिन के ड्यूटी समय को कम करेंगे।
पुलिस को काम करने के लिये तनावमुक्त वातावरण देंगे।
मध्यप्रदेश में चुनाव हुआ और सत्ता मिली कांग्रेस को। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे कमलनाथ। उन्होंने पुलिस कर्मियों से किया एक वादा तो पूरा किया ही। सत्ता में आते ही उन्होंने भी अपने पूर्ववर्ती की तरह पुलिस वालों के लिए साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी। इस घोषणा के 18 दिन के भीतर ही विपक्ष में बैठे भाजपा नेता कांग्रेस सरकार पर सवाल खड़े करने लगे।
चर्चा थी कि, फ़ोर्स की कमी के चलते साप्ताहिक अवकाश की व्यवस्था पुनः अनौपचारिक रूप से बंद कर दी जाएगी। हुआ भी यही, कई थानों में साप्ताहिक छुट्टी की व्यवस्था बंद होने लगी। रिपोर्ट्स की मानें तो मध्यप्रदेश के पुलिस कर्मी जिन्हें ड्यूटी करते हुए तीन दशक से अधिक समय हो गया था उन्होंने पहली बार छुट्टी ली। दुर्भाग्य से यह खुशी पुलिसकर्मियों को एक दिन ही नसीब हुई।
हम इस मामले की चर्चा अब क्यों कर रहे हैं?
आज इस मामले की चर्चा इसलिए की जा रही है क्योंकि एक महिला कॉन्स्टेबल ने इस कारण सुसाइड कर लिया क्योंकि उसे शादी में जाने के लिए छुट्टी नहीं मिल रही थी। महिला कॉन्स्टेबल का नाम मानसी था और उसकी उम्र मात्र 23 वर्ष थी। यह स्टोरी लिखे जाने तक मानसी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट या सुसाइड लेटर सामने नहीं आया है लेकिन यह बात स्पष्ट है कि, मध्यप्रदेश की पुलिस व्यवस्था अत्यधिक दबाव में काम कर रही है।
जब भाजपा सरकार की वापसी हुई तो गृह मंत्री रहे नरोत्तम मिश्रा ने खुले मंच से घोषणा की थी कि, 'हमारी भी सोच है कि पुलिस जवानों को भी अपनी सेहत और परिवार का ध्यान रखने के लिए साप्ताहिक अवकाश मिलना चाहिए। इस संबंध में निर्णय के लिए सरकार विधानसभा के अगले सत्र में विधिवत प्रस्ताव लेकर आएगी।' हालांकि ऐसा कोई फैसला बाद में नहीं लिया गया।
5 अगस्त 2023 को एक बार फिर उम्मीद जागी...मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों के वीक ऑफ को लेकर एक गाइडलाइन जारी की गई। इसके तहत वीक ऑफ वाले दिन पुलिस कर्मियों को शहर छोड़कर जाने की अनुमति नहीं थी। वीआईपी मूवमेंट की स्थिति में वीक ऑफ कैंसिल किए जा सकते थे। इस गाइडलाइन के कुछ दिन बाद भी यह व्यवस्था चली लेकिन दोबारा वही ढपली, वही राग!
रिपोर्ट्स की मानें तो मध्यप्रदेश में प्रति लाख आबादी पर 138 पुलिस कर्मी ही तैनात हैं। इनमें सिविल पुलिस 107 है। देश के अधिकतर राज्य मध्यप्रदेश से बेहतर स्थिति में हैं। स्थिति यह है कि, मध्यप्रदेश पुलिस को एक दिन का वीक ऑफ भी नहीं मिल पा रहा है। सरकार नई भर्तियां नहीं निकाल रही जिससे बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
मोहन सरकार के लिए फैसले का सही समय :
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्यप्रदेश के लिए कई बड़े फैसले लिए हैं। उन्होंने लाखों सरकारी भर्ती की घोषणा भी की है। यह सही समय है जब मोहन सरकार को मध्यप्रदेश पुलिस में बड़े सुधार के लिए कदम उठाने होंगे। साप्ताहिक अवकाश की घोषणा से पहले पर्याप्त भर्ती निकाली जानी चाहिए। इसके बाद चरणबद्ध रूप से साप्ताहिक अवकाश और कार्य के घंटे घटाने पर भी सरकार को काम करना चाहिए। तब तक मध्यप्रदेश के पुलिसकर्मी कार्य के बोझ तले दबाव में कार्य करने को मजबूर रहेंगे।