भोजशाला: धार में हिंदू समाज ने मनाया उत्सव, 22 साल पहले संघर्ष से खुलवाए थे ताले, अब दोहराया पूर्णमुक्ति का संकल्प

मध्यप्रदेश। धार में हिंदू समाज ने मंगलवार को उत्सव मनाया। लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाई और आतिशबाजी भी की। 8 अप्रैल का यह दिन हिंदू समाज के लोगों के लिए उत्सव से कम नहीं है। भोजशाला में वाग्देवी के मंदिर के संघर्ष के समय हिंदू समाज के सामने वह दिन भी आया था जब भोजशाला में उनका प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था। लगातार प्रदर्शन करने के बाद आज यानी 8 अप्रैल 2003 में दोबारा हिन्दुओं को भोजशाला में प्रवेश की इजाजत मिली थी।
8 अप्रैल 2003 को भोजशाला का ताला खोला गया था। 22 साल पूरे होने पर हिन्दू समाज ने धार में न केवल उत्सव मनाया बल्कि पूर्ण मुक्ति के अपने संकल्प को भी दोहराया। साल 1997 में विवाद के बाद कलेक्टर ने आदेश निकालकर हिन्दुओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
क्या है भोजशाला का विवाद :
भोजशाला पर हिन्दू और मुस्लिम पक्षकार दोनों ने ही दावा किया है। मुस्लिम यहां नमाज पढ़ते हैं तो हिन्दू देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस ने मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में याचिका लगाकर इसे राजाभोज द्वारा स्थापित वाग्देवी का प्राचीन मंदिर बताया था। मुस्लिम पक्षकार इसे कलाम मौला मस्जिद मानते हैं। भोजशाला का धार्मिक कैरेक्टर क्या है यह जानने के लिए कोर्ट ने ASI सर्वे का आदेश दिया था। अब सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट तय करेगा कि, भोजशाला राजा भोज द्वारा स्थापित वाग्देवी (देवी सरस्वती) का प्राचीन मंदिर है या कलाम मौला मस्जिद।
भोजशाला का क्या है इतिहास :
परमारवंश के महान शासक राजा भोज द्वारा भोजशाला का निर्माण कराया गया था। 1034 ईस्वी में भोजशाला एक महाविद्यालय था। यहां छात्र अध्ययन किया करते थे। राजा भोज द्वारा यहां वाग्देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। लंबे समय तक यह शिक्षा का एक महान केंद्र रहा। मुगलकाल में यहां सबसे पहले आक्रमण किया अलाउद्दीन खिलजी ने। 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने शिक्षा के केंद्र और वाग्देवी के मंदिर भोजशाला को पूरी तरह तबाह कर दिया।
भोजशाला में किसने बनवाई मस्जिद :
मंदिर को ध्वस्त करने के बाद यह स्थान सालों तक वीरान रहा। 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला में मस्जिद का निर्माण किया। 1514 ईस्वी में महमूद शाह खिलजी ने मस्जिद के दूसरे हिस्से का निर्माण किया। इस तरह राजा भोज द्वारा स्थापित प्राचीन भोजशाला में मस्जिद बना दी गई।
वाग्देवी की मूर्ती कहां हैं ?
जानकारी के अनुसार 1875 में भोजशाल की खुदाई की गई। कहा जाता है कि, इस खुदाई में वाग्देवी की वह मूर्ती मिली जिसकी स्थापना परमार वंश के शासक राजा भोज द्वारा कराया गया था। इस मूर्ती को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज इंग्लैंड ले गया। लंदन के एक संग्रहालय में वाग्देवी की यह मूर्ती सुरक्षित है। इसे वापस लाए जाने के लिए भी कोर्ट में याचिका लगाई गई है।
धार रियासत ने साल 1935 में भोजशाला में मुस्लिमों को शुक्रवार की नमाज पढ़ने की अनुमति दी थी। समय - समय पर यहाँ लोगों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध भी लगाया गया। इसके बाद तय हुआ कि, शुक्रवार को मुस्लिम यहां नमाज पढ़ेंगे और हिन्दू मंगलवार और बसंत पंचमी को देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।
ASI की रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश कर दी गई है लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा रिपोर्ट पर रोक लगा दी गई है। ASI सर्वे में कई देवी - देवताओं की प्रतिमा पाए जाने का दावा भी किया गया है।