मप्र में भाजपा को मिलेगा अल्पसंख्यक समुदाय की आधी आबादी का साथ!
- प्रदेश में जीत की राह होगी आसान, कांग्रेस के पास नहीं इसका जवाब
भोपाल । मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव-2023 के मतदान के लिए अब महज कुछ ही घंटे शेष रह गए हैं। ऐसे में सभी दल अपने चुनाव प्रचार में पूरा दमखम झोंक रहे हैं। मप्र की 230 सीटों में से करीब 47 सीटों पर अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं की बहुलता है। इनमें से 22 ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका में रहता है।
भाजपा और कांग्रेस के लिए मुस्लिम वोट भले ही उत्तर प्रदेश और बिहार जितना महत्व नहीं रखता, लेकिन आगामी 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर होने की स्थिति में कम से कम 22 सीट पर इस अल्पसंख्यक समुदाय के वोट अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसीलिए भाजपा व कांग्रेस की रातों की नींद उड़ी हुई है। हालांकि हाल ही में हिन्दुस्थान समाचार के एक सर्वे में यह निकल कर आया है कि अल्पसंख्यक समुदाय की आधी आबादी भाजपा की चिंता को दूर कर सकती है। पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिलाओं का ऐसा मानना है कि भाजपा से बेहतर सुरक्षा और अधिकारों की स्वतंत्रता किसी और दल के बस में नहीं है। इस बात की पुष्टि महिला अधिवक्ता द्वारा भी की गई।
अल्पसंख्यक समुदाय चाहता है सुकून भरी जिंदगी
इस आधुनिक वैज्ञानिक युग में हर वर्ग व समुदाय का के महिला व पुरूष सुकून व स्वाभिमान से भरपूर जीवन चाहते हैं। ऐसे में भला अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं पीछे क्यों रहें। उनके भी अपने स्वच्छंद विचार होना लाजिमी हैं। और यह स्वतंत्रता उन्हें भाजपा में महसूस होती है। नौकरी पेशा से लेकर अध्ययन, अध्यापन चिकित्सा या फिर प्राइवेट क्षेत्र में काम कर रहीं महिलाओं के यही विचार हैं। यहां तक कि वे भाजपा को समुदाय के पुरुषों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने वाली पार्टी बताती हैं। उनका मानना है कि किसी भी देश या वर्ग की महिलाओं का किया जाने वाला सम्मान उस देश के स्तर को निर्धारित करता है। भाजपा इस संस्कृति को अक्षरशः जीने का प्रयास करती दिखाई देती है। खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के तीन तलाक मामले को सभी बेहतर बताती हैं।
मध्यप्रदेश की इतनी विस सीटों को सीधे प्रभावित करते हैं अल्पसंख्यक मतदाता
मतदाताओं के आंकड़ों के अनुसार 47 सीटों पर मुस्लिम वोटर 5 हजार से 15 हजार के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15 हजार से 35 हजार के बीच है। कांटे की टक्कर की स्थिति में 22 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इन सीटों में भोपाल की तीन, इंदौर की दो, बुरहानपुर, जावरा और जबलपुर समेत अन्य सीटें शामिल हैं।
मुस्लिम नेताओं की मानें तो कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख कमलनाथ ने 2018 में कहा था कि अगर 90 फीसदी अल्पसंख्यक वोट पार्टी के पक्ष में आते हैं तो पार्टी सरकार बना सकती है। कमलनाथ की अपील पर अल्पसंख्यकों के वोट कांग्रेस को मिले और इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी की झोली में 10-12 सीट और जुड़ गईं, जिन्हें पार्टी 2008 और 2013 में जीतने में विफल रही थी।
तीन तलाक के कानून ने कई घर बचाए टूटने से
इस संबंध में भोपाल की महिला अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता निखत अली का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार और खास तौर पर मोदी जी ने तीन तलाक के अधिनियम को पारित कर मुस्लिम महिलाओं को अपना हक दिलाया है। उन्होंने कहा कि न्यायालय में आज ऐसे कई परिवार हैं जो टूटने से बच गए। यही नहीं पुरुषों में इसका डर भी स्पष्ट दिखाई देता है। हालांकि शुरू में पुरुषों ने इस कानून को लेकर महिलाओं को भ्रमित किया था,लेकिन बाद में जब महिलाओं की समझ में आया तो वह इसके प्रति आश्वस्त हो गई। उन्होंने बताया कि मुस्लिम महिलाएं इस कानून को लेकर भाजपा की पक्षधर भी है और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी हो रही हैं। इस चुनाव में यह मतदान के रूप में देखने को भी मिलेगा।
कांग्रेस का पारंपरिक वोट नहीं हो पा रहा ट्रांसफर
अपने एक साक्षात्कार में मुस्लिम समुदाय के नेता माहिर ने दावा करते हुए चिन्ता जताई थी कि कांग्रेस का पारंपरिक वोट, जिसमें गैर-मुस्लिम भी शामिल हैं। उनके उम्मीदवारों को ट्रांसफर नहीं हो पा रहा है और अल्पसंख्यक समुदाय से उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए ऐसे मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर ले जाना पार्टी की जिम्मेदारी है। माहिर के मुताबिक, मध्य प्रदेश विधानसभा में मुस्लिम प्रति पिछले कुछ सालों में उत्तर भोपाल और मध्य भोपाल की सीटों पर कही सीमित रहा है।
गौरतलब है कि पूर्ववर्ती चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत (41.02 प्रतिशत) कांग्रेस से (40.89 प्रतिशत) से थोड़ा अधिक रहा था, लेकिन कांग्रेस 230 सीट में 114 सीट पर जीत हासिल कर सबसे अधिक सीट हासिल करने वाली पार्टी बनी थी, जबकि भाजपा को 109 सीट मिली थीं। इसके बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और अन्य विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ विधायकों के दल बदल लेने के कारण 15 महीने बाद यह सरकार गिर गई थी। वर्तमान में भी मत प्रतिशत का करीब यही हाल है। अधिकांश सर्वे भी दोनों दलों में कांटे की टक्कर बता रहे हैं। ऐसे में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं का यह रुझान भाजपा के रास्ते की अड़चनों का सफाया करने में कारगर हो सकता है।